(रवीश कुमार का विश्लेषण)
प्रस्तुति : पुष्पा गुप्ता
एसबीआई द्वारा सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गयी सूची में काफ़ी झोल है। उनमें से एक धोखाधड़ी का उदाहरण नीचे दे रहे हैं। अगर पूरा सच सामने लाना हो तो सुप्रीम कोर्ट को अभी कई बार चाबुक फटकारने होंगे। सवाल है कि क्या वह ऐसा करेगा?
इलेक्टोरल बॉन्ड, यानी बीजेपी को चंदे का खेल एक नए आयाम से जुड़ गया है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट को स्टेट बैंक ने जो सूची दी है, उसमें बड़ी गड़बड़ है। कई जानकारियांँ छिपाई गई हैं। मिसाल के लिए, कोटक परिवार की इकाई, इन्फिना कैपिटल प्राइवेट लिमिटेड।
इस एनबीएफसी कंपनी ने 2019 से 2022 के बीच कुल 1.3 बिलियन रुपए का चुनावी चंदा बीजेपी को दिया। यानी 760 करोड़ रुपए।
मगर, एसबीआई की सूची में 350 करोड़ के चंदे की बात लिखी है।
अगस्त 2018 में भारतीय रिजर्व बैंक ने कोटक महिंद्रा बैंक के उस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था, जिसमें प्रेफरेंशियल शेयर के जरिए बैंक में उदय कोटक अपनी हिस्सेदारी कम करना चाहते थे।
उदय ने आरबीआई को सुप्रीम कोर्ट में घसीटा। आरबीआई यह मुकदमा जीत जाती, उससे पहले ही उदय ने बॉन्ड, यानी बीजेपी को चंदे में घूस देकर मामला अदालत के बाहर सुलटा लिया।
यानी, आरबीआई को कोटक बैंक के आगे झुकना पड़ा। भारत के प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री के सिवा यह डील करना किसकी औकात में है?
बदले में आरबीआई को कोटक महिंद्रा बैंक को अभूतपूर्व रियायतें देनी पड़ी। इससे इन्फिना का मुनाफा माइनस से 100 गुना बढ़कर 5000 करोड़ से ऊपर जा पहुंचा।
अब अगर एसबीआई की सूची को सही मानें तो 300 करोड़ की दलाली का मामला बनता है। जरा सोचें कि यह दलाली किनकी जेब में गई होगी?
आज बीजेपी का बस चले तो देश का हर टुकड़ा बेचकर अपनी झोली भर ले।
इस घूसखोर पार्टी और इसकी भ्रष्टाचारी सत्ता के केंद्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज भ्रष्टाचार खत्म करने की फेंक रहे हैं।
असल में इस एक व्यक्ति ने पैसे के लिए आरबीआई सहित देश के तमाम संस्थानों को दलाली और झूठ की दुकान बना दिया है।
भ्रष्टाचार की गंगोत्री उन्हीं के घर से निकली है। भक्त गण वह सूची खोजकर देखें, जो एसबीआई ने छिपाई है.
इलेक्टोरल बॉण्ड के ऐतिहासिक महाघोटाले पर रवीश कुमार की लम्बी सीरीज़ ज़रूर देखें और लोगों को देखने के लिए कहें। दृष्टिकोण तो लिबरल ही है लेकिन तथ्य काफ़ी दे रखे हैं।
(देवेंद्र सुरजन की फेसबुक वाल से साभार)
याद रखें, इलेक्टोरल बॉण्ड घोटाले के साथ अगर पीएम केयर फण्ड घोटाला, रफायल खरीद घोटाला, सभी हथियार खरीदी में सत्तासीन पार्टी की कमीशनखाेरी और राज्यों की सभी भाजपा सरकारों के व्यापम जैसे पचासों घोटालों की सूची तैयार की जाये तो मोदी सरकार आधुनिक इतिहास की सबसे भ्रष्ट और घोटालेबाज़ सरकार साबित होगी।
इस मामले में इसने सोमोज़ा, बतिस्ता, दुबालियर, मारकोस, इदी अमीन आदि कुख्यात तानाशाहों को भी पीछे छोड़ दिया है। यही नहीं, आतंकराज, दमन, अंधाधुंध गिरफ़्तारियों, साजिशाना हत्याओं और जनसंहार में भी यह उनसे पीछे नहीं है।
इसकी महाधूर्तता यह है कि यह बुर्जुआ संविधान और लोकतंत्र का लबादा उतारे बग़ैर यह सबकुछ कर रहा है।
मोदी सभी सैनिक जुण्टाओं और निरंकुश तानाशाहियों से कई गुना अधिक ख़तरनाक इसलिए है क्योंकि पूंँजीपतियों के बहुलांश की आम सहमति इसके पक्ष में है.
इसके पीछे निम्न बुर्जुआ वर्ग के एक रोमानी पॉपुलिस्ट उभार और धुर-प्रतिक्रियावादी सामाजिक आन्दोलन की ताकत है, एक कैडर आधारित फासिस्ट सांगठनिक ढाँचा है और एक सामाजिक आधार है। यह क्लासिकी फ़ासिज़्म का ही एक सटीक और परिष्कृत माडल है।
इमरजेंसी तो इसके आगे कुछ भी नहीं है क्योंकि राज्यसत्ता की उस बोनापार्टिस्ट टाइप दमनकारी निरंकुश सत्ता का व्यापक सामाजिक आधार नहीं था, उसके पीछे न तो कोई कैडर आधारित फासिस्ट सांगठनिक ढाँचा था और न ही निम्न बुर्जुआ वर्ग का कोई धुर-प्रतिक्रियावादी सामाजिक आन्दोलन।
हम यह बतलाये दे रहे हैं कि चुनाव जीतने के लिए मोदी सारी हदें पार करेगा और अगर हारेगा भी तो फासिस्ट कैडर आधारित सांगठनिक ढाँचा देश को अराजकता और ख़ून के दलदल में डुबोने के लिए अपनी जघन्य आपराधिक कार्रवाइयांँ लगातार जारी रखेगा।
हम एक बार फिर ज़ोर देकर कह रहे हैं कि इन बर्बर हत्यारे फासिस्टों के साथ आखिरी फ़ैसला तो सड़कों पर ही होगा। एक अवामी सैलाब इन्हें डुबो देगा और बहा ले जायेगा। लेकिन अभी बहुत कुछ करना होगा। लम्बा काम है। इस मुल्क़ के अवाम को अभी बहुत कुछ झेलना है।
फिर एक दिन भारतीय फासिस्ट हिटलर और मुसोलिनी से भी बुरी मौत मरेंगे और इनके बचे हुए लगुओं भगुओं के ख़िलाफ़ नूरेम्बर्ग इण्टरनेशनल ट्रायल से भी बड़ा ट्रायल होगा।
सच कहने के ज़ुर्म में अगर मोदी सत्ता हमें मार भी दे या गिरफ़्तार करके अंडा सेल में भी डाल दे तो इस बात को याद रखियेगा और कलेजा अगर पुकपुकाने न लगे तो यह सच हर घर और आम लोगों के हर दिलोदिमाग़ तक पहुँचाते रहिए।
एक दिन ऐसा होगा कि आज जिसतरह हिटलर का नाम लेते हुए आम जर्मन नागरिक आत्मग्लानि और शर्म में डूब जाता है, वेसा ही भारत में भी होगा।