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वाह रे सभ्य समाज !

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समय पुराना था
तन ढँकने को कपड़े न थे,
फिर भी लोग तन ढँकने का
प्रयास करते थे ।
आज कपड़ों के भंडार हैं,
फिर भी तन दिखाने का
प्रयास करते हैं
समाज सभ्य जो हो गया हैं !

समय पुराना था, आवागमन
के साधन कम थे।
फिर भी लोग परिजनों से
मिला करते थे।
आज आवागमन के
साधनों की भरमार है।
फिर भी लोग न मिलने के
बहाने बनाते हैं ।
समाज सभ्य जो हो गया हैं !

समय पुराना था,
घर की बेटी, पूरे गाँव की बेटी होती थी।
आज की बेटी पड़ोसी से ही असुरक्षित हैं ।
समाज सभ्य जो हो गया हैं !

समय पुराना था, लोग
नगर-मोहल्ले के बुजुर्गों का
हालचाल पूछते थे ।
आज माँ-बाप तक को
वृद्धाश्रम में डाल देते हैं ।
समाज सभ्य जो हो गया हैं ।

समय पुराना था,
खिलौनों की कमी थी ।
फिर भी मोहल्ले भर के बच्चों के
साथ खेला करते थे ।
आज खिलौनों की भरमार है,
पर बच्चे मोबाइल की जकड़ में बंद हैं ।
समाज सभ्य जो हो गया हैं ।

समय पुराना था,
गली-मोहल्ले के पशुओं
तक को रोटी दी जाती थी ।
आज पड़ोसी के बच्चे भी
भूखे सो जाते हैं ।
समाज सभ्य जो हो गया हैं ।

समय पुराना था,
नगर-मोहल्ले में आए
अपरिचित का भी पूरा
परिचय पूछ लेते थे ।
आज तो पड़ोसी के घर
आए अतिथि का नाम भी
नहीं पूछते ।
समाज सभ्य जो हो गया हैं ।

वाह रे सभ्य समाज !

     - रचयिता -अज्ञात

        प्रस्तुकर्ता - शेख सादुल्लाह,नान्देड़,महाराष्ट्र, स्वामी अग्निवेश विचार मंच,संपर्क - 98909 08391

        संकलन - निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र
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