डॉ. विकास मानव
_आदिम युग से अब तक हम निरंतर विकास से यहां तक आए हैं। मगर भौतिक प्रगति की अंधी दौड़ में हम आधिभौतिक प्रगति भूल गए।_
*जीवन सिर्फ पंच-भौतिक तत्वों पर आधारित नहीं। इनसे आपका शरीर बना है, आप नहीं। आप भावना-संवेदना-चेतना का समुच्चय यानी आत्म-रूप हैं।*
जीवन की गाड़ी एक पहिए पर दौड़ाने की कोशिश हुई, दुर्घटना सामने है। तमाम संसाधन-सुविधाएं हैं: मगर प्रेम-अपनत्व,वास्तविक खुशी-तृप्ति नदारत।
हम यंत्र बन गए, खुदगर्जी की आग में तपकर। *बचपन में खुश थे। यह खुशी क्रमश: बढ़ती तो विकास होता। डेललपमेंट की थ्योरी तब हम सही सिद्ध कर पाते।*
_समय तो जहां का तहां। हम बदल गए: केवल नकारात्मक पहलुओं के तहत।_
तमाम उम्र बर्बाद होती रही, हम दुख और अतृप्ति की ओर ही बढ़ते रहे।
अब 2020 के साथ एक वर्ष और कम हुआ। *जीवन का अनमोल समय व्यर्थ जाने का अफ़सोस नहीं। उलटे हम नशे में, जड़ता में, वेहोशी में जश्न मनाते हैं। इससे बड़ा गधापन और क्या होगा:* जरा सोचकर देखिए।
यूं ही चलता रहा तो बचपन से कफन तक का सफर महा-दुख,निपट अतृप्ति के अंबार में ही समाप्त होगा।
*दृष्टिकोण बदलें, राह बदलें और जरूरी हो तो हमराह भी।*
खुद को शरीर मानकर, शरीर आधारित संबंघ-संसार-बाजार को ही सच मानकर वहुत घिसट लिए।
_अब आप ‘स्व’ के स्वीकारें। अंतस की सुनें और उसके कहे अनुसार आत्म- कल्याण, लोक-कल्याण को लक्ष्य बनाकर अपनी खुशी-तृप्ति के लिए जीएं।_