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*कल आज और कल*

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विजय दलाल

*जब हमारे प्रधानमंत्री मोदीजी फ्रांस के राफेल सौदे के समान अमेरिका से भी ड्रोन खरीदने गए थे। राफेल के समान ही,रुस से सस्ते तेल की कमाई का एक बड़े हिस्से से बाजार कीमत से कई गुना ज्यादा में ड्रोन खरीदने गए थे तो पहले एयरपोर्ट पर तो बाइडेन सरकार ने ठीक वैसा ही व्यवहार किया जैसा पुरानी हिंदी फिल्मों में एक गरीब आदमी जिस पर  पहले से ही खुब कर्ज चढ़ा हो सेठ का ब्याज तक का भुगतान नहीं कर पा रहा हो अपनी लड़की की शादी लिए सुदखोर सेठ के दरवाजे पर मिठाई का डिब्बा लेकर फिर से ॠण के लिए खड़ा हो। अमेरिकी सरकार का एक भी बड़ा राजनयिक मोदीजी को रिसीव करने एयरपोर्ट पर नहीं पहुंचा था। अमेरिकी प्रमुख समाचार पत्रों में उनके आगमन के समाचारों के लिए कोई जगह नहीं थी उधर बाइडेन की पार्टी के ही 70 से ज्यादा सांसदों ने मोदीजी के लिए पहले ही सम्मान पत्र लिख रखा था। ये तो नासमझ अमेरिकियों काम था। जो महान नेता दुनिया के विकासशील देशों के लिए अमेरिकी और यूरोपीय हित की अर्थ नीति का ब्रांड अपनाएं उसको तो सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जाना चाहिए।

देखो मोदीजी कितना बेहतरीन काम करते आ रहे हैं। रूस से जब दुनिया, खासतौर से यूरोप के   रूठे हुए देश हैं ,तब उससे खुब सस्ता तेल भारत खरीद रहा है और उसी जरुरतमंद यूरोप को सप्लाई कर रहा है। उससे कमाई तो खुब कर रहा है लेकिन उस कमाई का बड़ा हिस्सा कहीं चुनाव में वोट के लिए 80 करोड़ लोगों को 5 किलो अनाज बांटने में तो कहीं लाड़ली बहना जैसी योजनाओं में पैसा बांटकर। बचे पैसे से ड्रोन। विकास की जितनी बड़ी योजनाओं की घोषणा, उद्घाटन और शिलान्यास सब विदेशी कर्ज से। देश पर 65-66 साल में 50 लाख करोड़ का कर्ज और मोदीजी के 9 साल के राज में 100 लाख करोड़ का कर्ज। इस नई आर्थिक मंदी और चीन से प्रतिस्पर्धा के लिए अमेरिका और यूरोपीय कंपनियों के राज के लिए 

2024 तक मोदीजी इसे ईस्ट इंडिया कम्पनी के ख़तरे के निशान से ऊपर ले जाएंगे।

सार्वजनिक क्षेत्र के माध्यम से सरकार के हाथ में देश की सबसे अधिक संपत्ति, पूंजी और धन था उसको इस सरकार ने वैसे ही निजी क्षेत्र को लूटा दिया है और लुटाती जा रही है। कार्पोरेट और विदेशी कंपनियों के काम में श्रमिक या उनकी यूनियनें कोई भी बाधा न डाले वो सारे इंतजाम पुख्ता कर दिए हैं। हमें सस्ता से सस्ता लेबर मिले इसके लिए भी जो दोनों काम है बेरोज़गारी इतनी बड़ा देना और बेरोजगारों का चाय, भजिए और सेंडविच के ठेले या बड़ी बड़ी रिटेल कंपनियों से लेकर छन्नू सेठ की मिठाई,पोहे, कचोरी की दुकान तक के लिए 10- 15 हजार के वेतन में मोटरसाइकिल से लोगों के घर तक पहुंचाने में लगा दिया है। इसके लिए धर्म और जाति की रोज रोज घुट्टी पिला कर बहुत बड़े वर्ग का जनमानस तैयार कर दिया है। वैसे भी हम भारतियों का  नई लोकतांत्रिक, समाजवादी , धर्मनिरपेक्ष आधुनिक संसार में आजादी से जीने का इतिहास में समय केवल 75 – 80 साल का है बाकी तो खिलजी से लेकर फिरंगियों तक गुलामी का ही है।

इसलिए हम मोदीजी के इस झांसे को समझ ही नहीं पा रहे हैं कि मोदीजी अपने प्रिय कार्पोरेट्स को अकेले देश को नहीं सौंप रहे हैं बल्कि विदेशों की ईस्ट, वेस्ट,नार्थ और साउथ कंपनियों को देश पर कब्जे के लिए रास्ता तैयार कर रहे हैं। हां कितनी भी मदद करो मगर इस काम में अडानी जैसे मोदीजी के खड़े किए हुए कागज के पूंजी के पहाड़ नहीं चल सकते।

इसलिए हिंडनबर्ग रिपोर्ट और सरकार – अडानी गठबंधन के कारनामों का खुलासा भी अमेरिका में हुआ और इसीलिए मोदीजी के सम्मान में बाइडेन साहब ने भारतीय उद्योगपतियों और बड़े व्यापारियों को भोजन के लिए आमंत्रित किया तो उसमें अडानी का नाम नहीं था। बाकी खरीदें हुए या डरे हुए भारत के मीडिया ने यह बात नहीं बताई।

लेकिन राजनीति के व्यापारी द्वय के दूर्भाग्य से अपनी पार्टी के क़ब्ज़े वाले राज्यों में तो उच्च न्यायालय तक में पुलिस,ईडी, सीबीआई, आयकर और चुनाव आयोग के समान अपने मोहरे बिठा दिए। अभी अभी  राहुल गांधी के मामले में गुजरात के न्यायालयों द्वारा न्याय और कानून का ऐसा मखौल तो ताजा उदाहरण है उच्चतम न्यायालय में जस्टिस चंद्रचूड़ के आने से पहले तक अपने पक्ष में जितना खेल खेलना था खेल लिया लेकिन अब मुश्किलें बढ़ गई। ईडी की अवैध नियुक्ति के फैसले और धारा 370 के बारे में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद अडानी की कंपनियों के लिए सेबी की जांच के लिए बनाई समिति की रिपोर्ट के लिए सालिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा पहले 15 माह के लिए ताकि 2024 का लोकसभा चुनाव निपट जाए और बाद में 6 माह की मांग पर भी सुप्रीम कोर्ट के इंकार ने ऐसा लगता है मोदी सरकार की बिदाई की भले ही तैयारी कर दी हो।

फिर भी चुनाव में हार भी गए तो भी विपक्ष के लिए देश की अर्थव्यवस्था को ऐसे मुकाम पर छोड़ दिया है जहां अभी तो  कंपनी राज पर निर्भर रहने के लिए मजबूरी के हालात पैदा कर दिए हैं।

विजय दलाल , संयोजक मेहनतकश

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