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300 साल पहले योआन येसुआ केतलार ने लिखा हिंदी का व्याकरण

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अभिषेक अवतंस
हिंदी के सबसे पुराने व्याकरण के रचयिता योआन येसुआ केतलार का जन्म साल 1659 में पोलैंड के एलब्लांग शहर में एक जर्मन मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। केतलार के पिता योसुआ केतलार जिल्दसाज थे। उन्नीस वर्ष की उम्र में केतलार को एलब्लांग शहर छोड़ना पड़ा। उन पर पैसे चोरी करने का आरोप लगाया गया था। इस कारण उन्होंने जिल्दसाजी में अपने उस्ताद की शराब में आर्सेनिक मिलाकर उनकी हत्या करने का असफल प्रयास किया था। 1682 के आरंभ में केतलार बाल्टिक सागर के व्यापारिक जहाजों के रास्ते स्टॉकहॉम से एम्सटर्डम आ गए। फिर 1682 में उन्होंने डच ईस्ट इंडिया कंपनी में बतौर सिपाही काम शुरू किया। लगभग एक साल बाद डच ईस्ट इंडिया कपंनी ने क्लर्क का काम करने के लिए केतलार को भारत के सूरत शहर भेज दिया। 1700 ईस्वी में डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने उन्हें आगरा स्थित अपने व्यापारिक केंद्र का प्रमुख बनाया। इसके 11 साल बाद डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने उन्हें मुगल बादशाह बहादुर शाह से मिलने लाहौर भेजा। दो साल लंबी अपनी इस यात्रा के बाद केतलार मुगल बादशाह से मिले और उनसे डच ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए आदेशपत्र हासिल किया।

भारत में अपने प्रवास के दौरान केतलार ने न सिर्फ हिंदी सीखी बल्कि आगरा में रहते हुए मुगल काल में बोली जा रही संपर्क भाषा हिंदी का व्याकरण भी लिखा। केतलार ने यह पुस्तक डच भाषा में साल 1698 के पूर्व लिखी थी। आज इसकी केवल तीन हस्तलिखित प्रतियों के बारे में जानकारी है। इनमें से एक नीदरलैंड के देन हाख शहर स्थित राष्ट्रीय अभिलेखागार में है, जबकि दूसरी और सबसे पुरानी प्रति उत्रेख्त यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में है। तीसरी और आखिरी प्रति पेरिस के Fondation Custodia संग्रहालय में रखी हुई है। देन हाख के राष्ट्रीय अभिलेखागार में रखी हुई प्रति लखनऊ में रह रहे डच व्यापारी इसाक फन दर हुफेन (Isaac van der Hoeven) ने 1698 में मूल प्रति से नकल कर तैयार की थी। इसाक आगरा में केतलार का सहायक था। शोधकर्ताओं के अनुसार, उत्रेख्त यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में जो प्रति है, उसे खुद केतलार ने तैयार किया था। दूसरी ओर पेरिस में सुरक्षित हस्तलिखित पांडुलिपि सबसे नई पांडुलिपि बताई जाती है। यह प्रति 1714 में डच व्यापारी खिदेओन बाउदि (Gideon Boudaen) ने सूरत में तैयार की थी। डच भारतविज्ञ डेविड मिल्स ने 1743 में इसका लैटिन अनुवाद लायडन शहर से प्रकाशित किया था।

केतलार ने अपनी पुस्तक सूरत, अहमदाबाद से लेकर आगरा और लखनऊ तक में बोली जाने वाली संपर्क भाषा हिंदी को केंद्र में रखकर लिखी थी। पुस्तक 53 अध्यायों में विभाजित है। अध्याय 1 से 42 तक हिंदी की शब्दावली का संग्रह है। इस शब्दावली में धर्म, प्रकृति, शरीर के अंग, परिवार, व्यवसाय, पशु, पक्षी, खान-पान, वस्त्र, भवन, घर, पेड़, पौधे, फल, सब्ज़ी, युद्ध सामग्री, मसाले, खनिज, मुद्रा, संख्या, पंच इंद्रियां, रंग, महीने, समय आदि से जुड़े शब्द संग्रहित हैं। यह शब्दावली केतलार ने डच शब्दों के साथ हिंदी और फारसी में प्रस्तुत की है। कई जगहों पर फारसी शब्दावली नहीं दी गई है। अध्याय 42 में हिंदी की अन्य संज्ञाओं और विशेषणों के बारे में बताया गया है। अध्याय 43 में क्रियाविशेषण और अध्याय 44 में क्रियाओं की सूची दी हुई है। अध्याय 45 में हिंदी की महत्वपूर्ण क्रियाओं का प्रयोग सर्वनाम ‘मैं’ के साथ पेश किया गया है। अध्याय 46 एवं 47 में फारसी व्याकरण पर चर्चा है। अध्याय 48 से 49 में हिंदी व्याकरण पर चर्चा हुई है। अध्याय 51 और 52 में हिंदी के कुछ सांस्कृतिक शब्दों पर विशेष चर्चा है। अध्याय 53 में ईसाई प्रार्थनाओं जैसे Lord’s Prayers; The Twelve Christian Beliefs; Our Father का हिंदी अनुवाद है।

केतलार का व्याकरण अपने आप में नायाब इसलिए था कि इससे पहले हिंदी का कोई लिखित व्याकरण नहीं मिलता। केतलार ने यह व्याकरण लैटिन की तर्ज पर डच ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मियों को हिंदी सिखाने के लिए लिखा था। भारत की संपर्क भाषा हिंदी को पश्चिमी व्याकरण के नजरिए से देखने की यह पहली कोशिश थी।

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