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शिवलिंग का यौगिक-आध्यात्मिक स्वरूप

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 डॉ. प्रिया

      _शिव का एक रूप अर्धनारीश्वर का है जिसमें आधा पुरुष का और आधा रूप स्त्री का है। जो लोग जीवन के परम रहस्य को जानना चाहते हैं, उन्हें शिव के व्यक्तित्व को गहरायी से समझना होगा। सभी देवों को देव कहा गया है लेकिन शिव को महादेव कहा गया है। उनसे ऊँचा हमारे मनीषियों ने किसी को नहीं रखा।_

       इसके कई कारण हैं क्योंकि उनकी कल्पना में हमने अध्यात्म की दृष्टि से जीवन का सम्पूर्ण सार छिपा दिया है और छिपा दिया है सम्पूर्ण रहस्य भी।

      _अर्धनारीश्वर का अर्थ यह है कि जिस समय परम् सम+भोग अपनी चरमावस्था में पहुंचता है और हमारा आधा व्यक्तित्व पत्नी का हो जाता है, हमारी आधी ऊर्जा पुरुषतत्व की हो जाती है,  आधी ऊर्जा हो जाती है स्त्रीतत्व की और उन दोनों विपरीत ऊर्जाओं के आंतरिक मिलन से जो रस और लीनता घटित होती है उससे शक्ति का विसर्जन नहीं होता, बल्कि उसका उत्थान होता है।_

      जगत द्वन्द्व से निर्मित है। इसलिए हम-आप जब भी होंगे, दो होंगे। हम बाहर खोज रहे हैं स्त्री को, इसलिए कि हमें अपने भीतर की स्त्री का ज्ञान नहीं है।

 स्त्री खोज रही है बाहर पुरुष को क्योंकि उसे भी अपने भीतर के पुरुष का अनुभव नहीं है। जिस समय भीतर के स्त्री-पुरुष का मिलन हो जाता है–यौगिक मिकन, उसी क्षण से बाहर की खोज समाप्त हो जाती है। दूसरा कोई नहीं बचता। द्वन्द्व समाप्त हुआ, निर्द्वन्द्व हो गए हम।

    _द्वैत का अस्तित्व समाप्त और अद्वैत की स्थिति आ गयी। अद्वैत यानी परम मिलन, परम् आलिंगन। ऐसा जो साधक है, वह शिवलिंग स्वरूप है। वह अपने भीतर वर्तुलाकार रूप में पूर्ण हो गया होता है। वह अपने ही भीतर रस का आनंद लेने लग गया होता है जिसके भीतर होने लगता है आत्म-रमण। इस अवस्था को कहते हैं ‘स्वसम्भोग’ –अपने ही भीतर के स्त्री-पुरुष का  ‘सम्भोग’।_

     इस सम्भोग की अवस्था में ऊर्जा की दिशा बाहर की ओर नहीं होती, बल्कि भीतर-ही-भीतर वर्तुलाकार घूमती रहती है और उस वर्तुलाकार का स्वरूप शिवलिंग के समान है।

      (चेतना विकास मिशन)

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