डॉ. प्रिया मानवी
_नारी की गुदा और उपस्थ के मध्य में एक स्थान है जहाँ त्रिकोण यानी त्रिभुजाकार ‘योनि’ नामक यन्त्र है. इसके तीन कोनों से तीन नाड़ियाँ : इडा पिङ्गला और सुषुम्णा ऊपर की ओर जाकर पश्चमस्तिष्क पर मिलती हैं. त्रिकोण का जो केंद्र होता है उस स्थान में कुण्डिलिनी होती है।_
कुण्डलिनी नाम ऊर्जा का है। स्त्री स्वयं शक्ति होती है। यदि मासिक स्राव स्त्रियों में न होता तो अधिक बल बुद्धि और विवेक का स्वामी पुरुष कदापि न होता। पुरुष को शक्ति कहीं नही कहा गया है। शक्ति स्त्रीलिँग शब्द है जो स्वयं शक्ति है। पुरुष की शक्ति स्त्री है।
*दुर्गा सप्तशती भी स्पष्ट करती है :*
विद्या समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रियाः समस्ता: सकला जगत्सु।
त्वयैक पूरितमम्ब यैतत् का ते स्तुतिः परा परोक्ति ।।
अर्थात जगत में जो कुछ है वह स्त्री रूप ही है, अन्यथा निर्जीव है। भगवती शक्ति को योनिरूपा कहा गया है। इसी योनिरूप को अन्य तन््त्र ग्रन्थों में त्रकोण या कामकला भी कहा गया है।
साथ ही योनिरूपा भगवती का सहस्रार से मूलाधार तक (अवरोह क्रम) तथा मूलाधार से सहस्रार पर्यन्त योनिबीज ऐं का जप करते हुए ध्यान करना ही योनिमुद्रा मानी गयी है।
योनिमुद्रा के बिना कोई भी साधन पूजन सफल नहीं हो सकता।
यन्त्र में प्रतीक रूप से मूलाधार से ब्रह्मरन्ध्र पर्यन्त अधोमुख त्रिकोण और ब्रह्मरन्ध्र से मूलाधार पर्यन्त ऊर्ध्वमुख त्रिकोण – इस प्रकार यह षट्कोण बन जाता है। यह समग्र पिण्ड का लोम विलोम प्रतीक भी है।
तात्पर्य यह हुआ कि पिण्ड भी त्रिकोणात्मक और ब्रह्माण्ड के मूल में भी त्रिकोण ही है। जब यह उपर्युक्त षघटकोण बनता है तो मैथुन का प्रतीक भी बन जाता है।