कुमार चैतन्य
विज्ञान कहता है : एक स्वस्थ पुरुष यदि सम्भोग करता है तो, उससे जितने परिमाण में वीर्य निर्गत होता है उसमें चालीस से नब्बे करोड़ शुक्राणु होतें हैं। यदि इन्हें स्थान मिलता, तो इतनी ही संख्या में बच्चे जन्म ले लेते.
वीर्य से निकलते ही ये अस्सी- नब्बे करोड़ शुक्राणु पागलों की तरह गर्भाशय की ओर दौड़ पड़ते है. भागते-भागते लगभग तीन सौ से पाँच सौ शुक्राणु पहुँच पाते हैं मुख्य स्थान तक। बाकी सभी भागने के कारण थक जाते हैं. बीमार पड़ जाते हैं और मर जातें हैं।
जितने डिम्बाणु तक पहुंच पाया, उनमे सें केवल एक महाशक्तिशाली, पराक्रमी, महावीर शुक्राणु ही डिम्बाणु को फर्टिलाइज करता है. यानी अपना आसन ग्रहण करता है। यही परम वीर, शक्तिशाली शुक्राणु आप हो, मैं हूँ, हम सब हैं.
कभी सोचा उस महान युद्ध के विषय में ? आप उस समय भाग रहे थे, जब आपकी आँखें नहीं थी. हाथ, पैर, सर, दिमाग कुछ भी नही था. फिर भी आप विजय हुए थे.
आप तब दौड़े थे जब आप के पास कोई सर्टिफिकेट नही था। आपसे जुडा किसी नामीदामी कॉलेज का नाम नही था।आप की कोई पहचान ही नही थी। फिर भी आप जीत गए थे.
आप तब दौड़े थे, जब आप न हिन्दू थे न मुसलमान. न भक्त न भगवान. फिर भी आप जीत गए. बिना किसी से मदद लिए बिना किसी का सहारा पाए. खुद अपने बलबूते पर विजय को प्राप्त हुए थे.
उस समय आप भागे थे दौड़े थे जब आप का एक निर्दिष्ट गन्तव्य स्थल था. उसी की ओर लक्ष्य था. आप का संकल्प बस उस तक पहुंचना था. थके बिना एकाग्र चित्त से आप भागे दौड़े और उद्देश्य पूरा किये, गन्तव्य तक पहुंच गए.
अस्सी-नब्बे करोड़ शुक्राणुओं को आप हरा दिए थे न ? अब आज देखो : थोड़ी-बहुत भी तकलीफ या परेशानी आई, और आप घबरा जाते हैं. निराश हो जातें है. हाथ पर हाथ धरे बैठ जातें हैं. क्यों आप अपने उस आत्मविश्वास को गँवा बैठते हैं?
अभी तो सब है आप के पास. मष्तिष्क से लेकर परिवार भाई बहन सब हैं. मेहनत करने के लिए हाथ पैर हैं. प्लानिंग के लिए समझ है. बुद्धि है शिक्षा है. सहायता के लिए लोग हैं. फिर भी आप निराश हो जीवन को नरक बना बैठते हैं.
जब आप जीवन के प्रथम दिन प्रथम युद्ध नही हारे तो आज भी हार मत मानिये. आप पहले भी जीते थे. आज भी जीतेंगे और कल भी जीतेंगे.
जिंदगी के किसी भी मोड़ पर असफलता मिले तो हताश होकर अपनी जिंदगी से खिलवाड़ मत करना : फिर चाहे वह प्यार हो, कॅरियर हो या व्यापार. आप नहीं हारेंगे, ऐसा मुझे विश्वास है आप पर.