Site icon अग्नि आलोक

आज शर्म तो बहुत आयी होगी तुम्हे मनु

Share

बादल सरोज

🔵 कित्ती परेशानी हुयी होगी आज जब दुनिया भर के सबसे बड़े खेल मुकाबले में दूसरा मैडल भी एक लड़की – एक स्त्री – ही जीत कर लाई है यह खबर मिली होगी।

🔵 बीपी (ब्लड प्रेशर) की एकाध गोली एक्सट्रा ले लेना। नींद न आये तो एकाध ट्रेंक्विलाइजर भी ले लेना। हालांकि मनुष्यता के लिए बहुत ही पुनीत और सभ्य समाज के लिए काफी पवित्र होगा कि ट्रेंक्विलाइजर की पूरी बॉटल ही एक साथ भकोस लो ; मगर पता है, इतना नेक काम तुम करोगे नहीं।
अपने आप तो नहीं ही करोगे।

🔺 तुम्ही थे ना जिसने कहा था कि ;
पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने ।
पुत्रो रक्षति वार्धक्ये न स्त्री स्वातन्त्र्यमर्हति ॥
(स्त्री को बचपन में पिता, युवावस्था में पति और जब उसका पति मर जाता है, तो पुत्र के नियंत्रण में रहना चाहिए। स्त्री कभी स्वतंत्र नहीं रहनी चाहिए। )
🔺 और यह भी कि ;
अशील: कामवृत्तो वा गुणैर्वा परिवर्जित : ।
उपचर्म: स्त्रिया साध्व्या सततं देववत्पत्ति : ।।
(इतनी गंदी बात है कि हिंदी में अनुवाद करने का मन भी नहीं होता। )

🔺 तुम्ही ने कहा था ना कि ;
स्त्रियों में आठ अवगुण हमेशा होते हैं। जिसके चलते उनके ऊपर विश्वास नहीं किया जा सकता है। वे अपने पति के प्रति भी वफादार नहीं होती हैं। और आदेश दिया था उसे कि पति चाहे जैसा भी हो, पत्नी को उसकी देवता की तरह पूजा करनी चाहिए। किसी भी स्थिति में पत्नी को पति से अलग होने का अधिकार नहीं है। कि पति चाहे दुराचारी, व्यभिचारी और सभी गुणों से रहित हो तब भी साध्वी स्त्री को हमेशा पति की सेवा देवता की तरह मानकर करनी चाहिए। )

🔺 तुम ही लिखकर गए थे ना कि ;
कि पुत्री,पत्नी,माता या कन्या,युवा,व्रुद्धा किसी भी स्वरुप में नारी स्वतंत्र नही होनी चाहिए. -मनुस्मृति, अध्याय-9 श्लोक-2 से 6 तक.
🔺 कि पति पत्नी को छोड सकता हैं, सूद (गिरवी) पर रख सकता हैं, बेच सकता हैं, लेकिन स्त्री को इस प्रकार के अधिकार नही हैं. किसी भी स्थिती में, विवाह के बाद, पत्नी सदैव पत्नी ही रहती हैं. – मनुस्मृति, अध्याय-9 श्लोक-45
🔺 कि संपति और मिलकियत के अधिकार और दावो के लिए, शूद्र की स्त्रिया भी “दास” हैं, स्त्री को संपति रखने का अधिकार नही हैं, स्त्री की संपति का मलिक उसका पति,पूत्र, या पिता हैं. – मनुस्मृति, अध्याय-9 श्लोक-416
🔺 कि ढोर, गंवार, शूद्र और नारी, ये सब ताडन के अधिकारी हैं, यानी नारी को ढोर की तरह मार सकते हैं….तुलसी दास पर भी इसका प्रभाव दिखने को मिलता हैं, वह लिखते हैं-“ढोर,चमार और नारी, ताडन के अधिकारी.”

धरीरहगयीतुम्हारीसीखेंऔरस्त्रियांजीतलाईं एककेबाददूसरा मैडल

Exit mobile version