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*तुम्हारी मर्दानगी : एक बेबाक सच*

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    ~ पुष्पा गुप्ता

मेडिकल सर्वे के अनुसार एक रात में दुनिया भर में जितने भी कपल सेक्स करते हैं उनमें से केवल 0.5% पुरुष ही अपनी महिला साथी को ऑरगैज़्म तक पहुंचा पाते हैं। बाकी की 99.5% महिलाएं अधूरे सेक्स की कुढ़न लेकर यूं ही सो जाती है।

   वे बेचारी इस बात का ज़िक्र कभी अपने पुरुष साथी या महिला मित्र से नहीं करती। यदि उनसे यह पूछ भी लिया जाए, “मजा आया?” तो जवाब में वह शरमाते हुए हां में सिर हिला देती हैं।

   हां में सिर हिलाने के अलावा उनके पास कोई ऑप्शन भी नहीं। यदि ना कहेगी तो बदचलन कहलाएगी और साथ ही पति की मर्दानगी पर भी शक होगा। जो वह कभी ऐसा करना नहीं चाहती।

सेक्स के आनंद से वंचित पत्नी जब चिड़चिड़ी और गुस्सैल हो जाती है। तब भी ये पुरुष अपनी तानाशाही से बाज नहीं आते।

   उनके स्वभाव में आए इस बदलाव के कारण को न खोजने की बजाए उनके इस स्वभाव पर हजारों लाखों चुटकुले गढ़ दिए जाते हैं। क्या वास्तव में इन्हें ‘मर्द’ का नाम दिया जा सकता है? मेरी नजरों में तो नहीं.

    सेक्स संतुष्टि का नहीं बल्कि आत्मसंतुष्टि का नाम है और वह आत्मसंतुष्टि तभी होती है जब दोनों आत्माओं को इससे संतुष्टि प्राप्त हो।

    लेकिन जब भी पुरुष को संतुष्टि हुई तभी खेल खत्म और वह हमेशा इस वहम में ही जीता है कि उसकी साथी को भी संतुष्टि मिल गई होगी।

    एक पुरुष के लिए संतुष्टि तक पहुंचना बहुत आसान है लेकिन अपने साथी को पहुंचाना एक साधना से कम नहीं। निज संतुष्टि के चलते ऐसा साधक कोई भी नहीं बनना चाहता।

एक महिला को चरमोत्कर्ष तक पहुंचने के लिए पुरुष से ज्यादा वक्त लगता है। इतना आनंद उसे हार्ड सेक्स में नहीं आता जितना सॉफ्ट सेक्स (फोरेप्ले)में आता है।

    जब तक अच्छी तरह से फोरप्ले नहीं होगा तब तक उसे संतुष्ट करना कुत्ते की दुम को सीधा करने जैसा है। लेकिन इतना वक्त कोई उसे देना ही नहीं चाहता। क्योंकि खुद की संतुष्टि होनी चाहिए बात खत्म। दूसरे उसका पेनिस मिट्टी का लोथड़ा बन चुका है. वह वीर्य को संभाल नहीं पाता. डालते ही बह जाता है. कई बार इससे भी पहले ही. 

   जब आदमी का दिल किया अपने शरीर का ज़हर या कचरा निकाला और करवट बदल कर सो गया। अब तक पत्नी भी इस रोज के अधूरे खेल की आदी हो चुकी होती है। वह इस काम को भी नित्य कार्यों की तरह फटाफट निपटाने की कोशिश करती है। सेक्स में पति का साथ नहीं देती।

   फिर पुरुष अपने दोस्तों से बात करते हैं कि मेरी पत्नी ठंडी है सेक्स इंजॉय नहीं करती।

   हर पुरुष हर बार स्खलित होता है लेकिन हर औरत हर बार स्खलित नहीं होती। सर्वे के अनुसार हर महिला अपने वैवाहिक जीवन में 0.5% से भी कम बार क्लाइमेक्स तक पहुंचती हैं। जिसका कारण केवल ये नामर्द पुरुष है।

   पत्नी यदि एक बार भी सेक्स को मना कर दे तो पति को गुस्सा आ जाता है लेकिन पत्नी की सहनशक्ति देखो। वह रोज रात को अधूरी सो जाती है लेकिन कभी अपने पति की नामर्दानगी को लेकर शिकायत तक नहीं करती।

औरत से ठंडी चीज कोई नहीं, औरत से गर्म चीज भी कोई नहीं। अब उस ठंडी औरत को कितना गर्म करना है यह पुरुष के हाथ में है। फिर भी अपनी कमी छुपाने के लिए ये पति प्राणी कितनी आसानी से बोल देता है कि औरतों का तो कभी भरता ही नहीं।

    लेकिन वह कभी यह नहीं कहता कि मुझ में इतनी मर्दानगी ही नहीं है कि औरत का भर सकूं।

     तसल्लीबख्श किया गया एक बार का पौरुषयुक्त सेक्स ही संतुष्टि करा देता है। इसके लिए पूरी-पूरी रात लिप्त रहने की जरूरत नहीं। विवाह के शुरुआती दिनों में सभी ऐसा सोचते हैं कि पूरी रात जी जान से जुटे रहकर ही वह पत्नी को संतुष्ट कर सकते हैं। लेकिन एक नवविवाहिता को सेक्स में चरम आनंद तक ले जाना ठंडे तवे पर रोटी सेकने जैसा है।

    इस वक्त युवती को मालूम ही नहीं चलता कि वह सेक्स के दौरान कितनी बार पिघली और कितनी बार फिर से तैयार हो गई? उसे यह बात समझने के लिए महीनों लग जाते हैं। कभी-कभी तो कुछ साल भी। यह पागल पुरुष उसकी आहों से यह समझ बैठता है कि वह उसे क्लाइमेक्स तक ले गया।

अक्सर औरतों की आबरू उतारने की नियत से बहुत से जवान और अधेड़ पुरुष महिलाओं को गाली देते हुए लिखते हैं कि तेरी चू..में अपना ल.. डालकर फसा दूंगा।  यार ये कुत्ते है क्या जो उसका फंस जाता है?

   ऐसे लोग हमेशा पत्नी को हॉर्स राइडिंग पोजीशन में लेकर सेक्स करते हैं और और डिंगे चाहे इनसे कितनी भी हंकवा लो। बातें चो..ने वाले केवल बातें ही चो.. सकते हैं औरत नहीं।

पुरुषों के दिमाग में वहम का कीड़ा घुस जाता है कि उसका लिंग इतना बड़ा है कि वह इसे महिला की बच्चेदानी के सुराख में भी घुसा सकता है।

   खैर तो सेक्स के दौरान साइज मायने नहीं रखता और जिनका यह वहम है

उनको बता दूं कि महिला की बच्चेदानी का छेद इतना छोटा व संकरा होता है कि उसके अंदर पेंसिल की नोक तक भी नहीं घुसाई जा सकती।

साइज़ से ध्यान आया जिस तरह से महिलाओं के स्तनों का साइज अलग अलग होता है उसी तरह पुरुषों के लिंग का साइज भी अलग-अलग होता है और आदमियों के दिमाग में हमेशा यह बात रहती है कि बड़े स्तनों उसे ज्यादा आनंद आएगा।

   देखो यार, अमृत तो किसी भी साइज के स्तनों से नहीं निकलता। फिर बड़ों का इतना सम्मान क्यों? खैर! आपने यह दोहा तो सुना ही होगा ‘रसरी आवत जात ते सिल पर परत निसान।’ इसी तरह हर लिंग अपनी अपनी पर्सनल योनि में अपनी पैठ जमा लेता है और यदि हमेशा छोटा लिंग हजम करने वाली योनि का पाला कभी बड़े लिंग से पड़ जाए तो उसे थोड़ा दर्द हो सकता है।

  लेकिन फटने या फाड़ने वाली बात तो ये नामर्द अपने दिमाग से निकाल ही दे तो बेहतर होगा। क्योंकि संभोग के दौरान एक स्त्री सामान्य अवस्था से 17 गुना ज्यादा दर्द बड़ी आसानी से सहन कर सकती है।

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