पुष्पा गुप्ता
मातृभाषा शब्द को लेकर दुनियाभर में ज्यादातर लोग भ्रांति पालते हैं। अक्सर मातृभाषा शब्द का अभिप्राय उस भाषा से लगाया जाता है जिसे माँ बोलती है। मुद्दा बहुत जटिल नहीं है। सिर्फ मातृ शब्द की वजह से मातृभाषा का सही अर्थ और भाव समझने में हमेशा से दिक्कत हुई है।
मातृभाषा बहुत पुराना शब्द नहीं है, मगर इसकी व्याख्या करते हुए लोग अक्सर इसे बहुत प्राचीन मान लेते हैं। हिन्दी का मातृभाषा शब्द दरअसल अंग्रेजी के ‘मदरटंग’ मुहावरे का शाब्दिक अनुवाद है। मेरा अनुमान है कि यह अनुवाद भी हिन्दी के संदर्भ में सामने नहीं आया बल्कि इसका संदर्भ बांग्लाभाषा और बांग्ला परिवेश था।
*मातृकुल नहीं, परिवेश महत्वपूर्ण :*
मातृभाषा शब्द की पुरातनता स्थापित करनेवाले ऋग्वेदकालीन एक सुभाषित का अक्सर हवाला दिया जाता है-
मातृभाषा, मातृ संस्कृति और मातृभूमि ये तीनों सुखकारिणी देवियाँ स्थिर होकर हमारे हृदयासन पर विराजें।
मैने इसके मूल वैदिकी स्वरूप को टटोला तो यह सूक्त हाथ लगा-
इला सरस्वती मही तिस्त्रो देवीर्मयोभुवः।
इसका अंग्रेजी अनुवाद कुछ यूं किया गया है-
One should respect his motherland, his culture and his mother tongue because they are givers of happiness.
यहां दिलचस्प तथ्य यह है कि वैदिक सूक्त में कहीं भी मातृभाषा शब्द का उल्लेख नहीं है। इला और महि शब्दों का अनुवाद जहां संस्कृति, मातृभूमि किया है वहीं सरस्वती का अनुवाद मातृभाषा किया गया है।
*सरस्वती का अर्थ सिर्फ वाक् :*
तात्पर्य यही कि ये विभिन्न पाकृतें ही अपने अपने परिवेश में मातृभाषा का दर्जा रखती होंगी और विभिन्न जनसमूहों में बोली जाने वाली इन्ही भाषाओं के बारे में उक्त सूक्त में सरस्वती शब्द का उल्लेख आया है।
*मातृभाषा यानी माँ की भाषा नहीं :*
मातृभाषा शब्द मदरटंग mother tongue का अनुवाद है और मदरटंग के बारे में सन्दर्भ क्या कहते हैं, ज़रा देखें-
In the wording of the question on mother tongue, the expression “at home” was added to specify the context in which the individual learned the language.
*जन्मदायिनी से न जोड़ें रिश्ता :*
भारत समेत ज्यादातर सभ्यताओं में भी, कोई स्त्री, विवाहोपरांत ही बच्चे को जन्म देती है। बच्चे की भाषा के लिए अगर सिर्फ मां ही उत्तरदायी मान ली जाए, तब अलग-अलग भाषिक पृष्टभूमि वाले दम्पतियों में बच्चे की भाषा मातृपरिवार की होगी और बच्चे को वह भाषा सीखने के लिए माता का परिवेश ही मिलना भी चाहिए।
*शिशु का जन्म-परिवेश महत्वपूर्ण :*
एक बच्चा मां की कोख से जन्म जरूर लेता है, मगर मातृकुल के भाषायी परिवेश में नहीं, बल्कि मां ने जिस समूह में उसे जन्म दिया है. उसी परिवेश की भाषा से उसका रिश्ता होता है। इस मामले में नारी मुक्ति या पुरुष प्रधानता वाली भावुकता भी बेमानी है।
*परिवेश में है मातृभाव :*
यही उसका मातृ-परिवेश कहलाएगा। माँ के स्थूल अर्थ या रूप से इसकी रिश्तेदारी खोजना फिजूल होगा। मराठीभाषी होते हुए भी मैं एक मालवी कस्बे में पला-बढ़ा। कामकाजी सदस्यों वाले परिवार की अत्यल्प मराठी की तुलना में मेरा भाषायी विकास हिन्दी के विराट परिवेश में हुआ।
इसलिए चाहे मेरे माता-पिता मराठी हों, मेरी मातृभाषा हिन्दी ही कहलाएगी। क्योंकि मैं अपने सुख-दुख की अभिव्यक्ति इसी भाषा में कर पाता हूँ। सपने भी हिन्दी में ही देखता हूँ।
*सच्चाई क्या है?*
मातृभाषा, राष्ट्रभाषा जैसे विशेषणों को हम केवल काग़ज़ी खानापूर्ति या बेहद ज़रूरी वर्गीकरणों के लिए सुरक्षित छोडें।
यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि किसे वह मातृभाषा का दर्जा देना चाहता है.