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Zoo- पशुवाटिका- चिड़ियाघर।

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शशिकांत गुप्ते

Zoo में विभिन्न जाति-प्रजाति के देशी और विदेशी पशु और पक्षियों को दर्शनार्थ रखा जाता है। जब यहाँ विभिन्न वन्यप्राणियों को दर्शनार्थ रखा जाता है तो, इसे सिर्फ चिड़ियाघर ही क्यों कहा जाता है?
यह एक सामान्यज्ञान का लेकिन अहम प्रश्न है?
मेरे मित्र सीतारामजी ने प्रश्न के जवाब में मुझे एक कविता का स्मरण कराया।
प्राणी मात्र में सबसे खतरनाक,
इंसान
जीता जागता सबूत
सर्कस
जहाँ खतरनाक वन्य प्राणियों को
कोड़े की सिर्फ आवाज पर
नचाया जाता है
अर्थात
उन्हें बेवकूफ बनाया जाता है।

कविता सुनाने के बाद सीतारामजी ने पूछा समझे,प्राणी मात्र में सबसे खतरनाक इंसान ही है। इसलिए Zoo में रखे तमाम प्राणी चाहे वे पशु हो या पक्षी, मनुष्य के लिए चिड़िया ही तो है।
Zoo में दर्शनार्थ रखे हुए प्राणियों को देखकर मनुष्य स्वयं का मनोरंजन करते हुए अपना टाइम पास भी करता है।
सीतारामजी, उक्त विचार प्रकट करते हुए एकदम दार्शनिक मानसिकता में पहुँच गए। कहने लगे जब मै (सीतारामजी) Zoo जाता हूँ,और वन्यजीवों को देखता हूँ। वन्यजीवों की मानसिकता समझने के कोशिश करता हूँ। मेरे मन मे विचार उठतें हैं। क्या इन वन्य जीवों को ज्ञात है कि इन्हें इंसानों के मनोरंजन के लिए यहाँ दर्शनार्थ रखा है? वन्यप्राणियों को तो शायद यह भी भान नहीं होगा कि, वे कैद हैं?
यह कहतें हुए सीतारामजी कवि प्रदीप रचित भजन गाने लगे।

पिंजरे के पंछी रे,
तेरा दर्द ना जाणे कोए,
कह ना सके तू,
अपनी कहानी,
तेरी भी पंछी,
क्या जिंदगानी रे,
विधि ने तेरी कथा लिखी है
आँसू में कलम डुबोय,
ये पत्थर का देश हैं पगले,
यहाँ कोई ना तेरा होय,
तेरा दर्द ना जाणे कोए।।
सीतारामजी भजन गातें हुए भावुक हो गए।

मैने उन्हें समझाया, सिर्फ वन्यजीवों का ही नहीं इस धरा पर हर एक प्राणी का यही हाल है।
प्राणी मतलब सिर्फ मनुष्य और वन्यजीव ही नहीं तमाम,पेड़,पौधे और वृक्षों की भी स्थिति ऐसे ही है।
किसी ने क्या खूब कहा है।
किसी पेड़ कटने का किस्सा ही नहीं होता,अगर कुल्हाड़ी के पीछे लकड़ी का हिस्सा नहीं होता
यह सब मानव निर्मित ही है।
पता नहीं आदमी में कब आदमीयत जागेगी और वह कब इंसान बनेगा।
इन विचारों के चलते,जहन में अनेक प्रश्न उपस्थित होतें हैं।
सन 1956 में प्रदर्शित फ़िल्म सी आई डी का यह गीत याद आ जाता है। इसे लिखा है गीतकार मजरूह सुलतानपुरी ने
ऐ दिल है मुश्किल जीना यहाँ
ज़रा हट के, ज़रा बच के
ये है बॉम्बे मेरी जान
कहीं बिल्डिंग कहीं ट्रामे कहीं मोटर कहीं मिल
मिलाता है यहाँ सब कुछ इक मिलता नहीं दिल
इंसां का नहीं कहीं नामोनिशाँ
बेघर को आवारा यहाँ केहते हँस हँस
खुद काटे गले सब के कहे इस को बिज़नेस

इस गीत की यह पंक्ति वर्तमान माहौल में विरोधाभाषी है।
जो है करता वो है भरता ये जहां का है चलन
वर्तमान कर्ता कोई है,भरता कोई है।

जिन लोगों की पहुँच ऊपर तक होती है। यह ऊपर तक का मतलब सियासत के साथ जिनके सुमधुर सम्बंध हैं। वे सिर्फ भरते हैं।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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