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 डीप फेक तकनीक आज के समय की सबसे बड़ी चुनौती?

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मोनू सिंह राजावत

आज का युग डिजिटल युग माना जा सकता है, जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक तेजी से प्रगति कर रही है। आजकल, लोग अपने रोजमर्रा के छोटे-से-छोटे कामों के लिए भी डिजिटल तकनीक और उपकरणों पर पूरी तरह निर्भर हो चुके हैं। जहां डिजिटल तकनीक की क्रांति ने मानव सभ्यता के विकास में चहुँमुखी योगदान दिया है, वहीं दूसरी ओर इसका व्यापक स्तर पर दुरुपयोग भी देखा जा रहा है। आज समाज के सामने प्रमुख चुनौतियों में से एक है डीपफेक तकनीक का गलत इस्तेमाल।

दरअसल, यह एक ऐसी समस्या बन चुकी है, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक का उपयोग करके फर्जी फोटो, वीडियो और ऑडियो तैयार किए जा रहे हैं, जिससे किसी भी व्यक्ति के चेहरे, आवाज़ और हाव-भाव को बदलकर नकली सामग्री बनाई जा सकती है। इससे बृहद स्तर पर समाज में राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। एक प्रकार से डीपफेक का इस्तेमाल गलत जानकारी फैलाने, व्यक्तियों की छवि धूमिल करने और गलत उद्देश्य से लोगों को गुमराह करने के लिए किया जा रहा है।

डीपफेक में विभिन्न बदलाव, जैसे चेहरे बदलना, लिप सिंकिंग या बॉडी मूवमेंट्स करवाना, इस तकनीक के माध्यम से संभव हो पाते हैं। ऐसा देखा जाता है कि इससे संबंधित कई मामलों में लोगों की अनुमति के बिना उनके चेहरे बदलने, लिप सिंकिंग करवाने आदि की घटनाएं सामने आती हैं, जो मनोवैज्ञानिक सुरक्षा, राजनीतिक अस्थिरता और व्यावसायिक व्यवधान का खतरा उत्पन्न करती हैं। आए दिन सोशल मीडिया पर किसी बड़ी हस्ती, राजनेता, अभिनेता, खिलाड़ी आदि का डीपफेक वीडियो और फोटो सामने आ जाता है।

एक प्रमुख उदाहरण के तौर पर वर्ष 2018 में बराक ओबामा का फेक वीडियो वायरल हुआ था। यह वीडियो डीपफेक तकनीक का इस्तेमाल करके तैयार किया गया था। इसमें ओबामा की छवि का उपयोग करके उन्हें झूठे शब्द बोलते हुए दिखाया गया, जिससे डीपफेक तकनीक के दुरुपयोग की गंभीरता को दर्शाया गया।

डीपफेक नामक तकनीक की शुरुआत 2017 के अंत में एक Reddit यूज़र द्वारा हुई, जिसका नाम “deepfakes” था। इस यूज़र ने इस तकनीक का उपयोग करके कई वीडियो बनाए, जिनमें अश्लील फिल्म की अभिनेत्रियों के चेहरों पर प्रसिद्ध हस्तियों के चेहरे लगाए गए थे, जो देखने में बिल्कुल वास्तविक लगते थे।इसके बाद धीरे-धीरे ऐसे वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से वायरल होने लगीं। खासतौर पर भारत जैसे देश में, जहां अभी भी literacy rate कम है, इस कारण लोग इन वीडियो और ऑडियो के सही-गलत को समझने में कठिनाई महसूस करते हैं, जिससे इसका प्रभाव व्यापक स्तर पर देखा जा रहा है।

असामाजिक तत्व इसका इस्तेमाल समाज में सांप्रदायिक तनाव और सामाजिक विद्वेष बढ़ाने के लिए भी कर रहे हैं। वहीं, चुनावों में भी राजनीतिक पार्टियों की छवि को धूमिल करने के लिए इसका उपयोग हो रहा है। इसके साथ ही, डीपफेक तकनीक का उपयोग करके साइबर अपराधी लाखों और करोड़ों की ठगी कर रहे हैं। महिलाओं के साथ ऑनलाइन उत्पीड़न में भी यह प्रमुख रूप से प्रयोग हो रहा है, जहां महिलाओं के नकली अश्लील वीडियो और तस्वीरों के माध्यम से उन्हें बदनाम किया जा रहा है। डीपफेक से संबंधित मामलों में न केवल किसी व्यक्ति विशेष या संस्था को, बल्कि एक पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी कई प्रकार से क्षति पहुंचाई जा सकती है।

इसी से संबंधित मैक्एफी द्वारा हाल के वर्षों में किए गए एक शोध सर्वेक्षण से हैरान करने वाले तथ्य सामने आए हैं, जिनमें प्रमुख रूप से यह पाया गया कि 55 प्रतिशत मामलों में डीपफेक सामग्री का इस्तेमाल ऑनलाइन धमकी देने के लिए, 52 प्रतिशत सामग्री पोर्नोग्राफिक और 49 प्रतिशत सामग्री धोखाधड़ी के लिए तैयार की गई है। वहीं इसके अलावा 27 प्रतिशत एआई द्वारा निर्मित सामग्री ऐतिहासिक तथ्यों को प्रभावित करने के लिए तैयार की गई है। इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण बात सामने आई कि ऑनलाइन धोखाधड़ी के लिए इस्तेमाल किए गए 64 प्रतिशत एआई जेनरेटेड सामग्री की पहचान करना बेहद मुश्किल रहा है।

वहीं दूसरी ओर 31 प्रतिशत यूजर्स इसकी वजह से अपने पैसे गंवा चुके हैं। इस प्रकार कहें तो, भारत जैसे देश में यह समाज के लिए एक बड़ी चुनौती पैदा कर रहा है। भारत की बड़ी आबादी अभी भी डिजिटल साक्षरता से वाकिफ नहीं है, ऐसे में सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से वायरल हो रहे डीपफेक वीडियो की पहचान करना बहुत चिंताजनक है। भारत में यह खासतौर पर राजनीतिक हेरफेर, फेक न्यूज़ का प्रसार, साइबर सुरक्षा जोखिम, मानहानि और उत्पीड़न, कानूनी चुनौतियाँ जैसी कई प्रमुख समस्याएँ उत्पन्न कर रहा है।

डीपफेक से संबंधित मामलों से बचने के लिए लोगों को विभिन्न सावधानियाँ बरतनी चाहिए। जब भी किसी के पास सोशल मीडिया से कंटेंट आता है, तो यह आपकी जिम्मेदारी बन जाती है कि उस सोशल मीडिया पर वायरल मैसेज को संदेह की दृष्टि से देखें और उसे क्रॉस वेरीफाई करें। वहीं, सोशल मीडिया पर फोटो शेयरिंग के मामले में लोगों को अपने फोटो कम से कम सोशल मीडिया पर शेयर करने चाहिए और साथ ही यह ध्यान रखना चाहिए कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अलग-अलग एंगल से फोटो और वीडियो नहीं डालें, ताकि डीपफेक बनाने वाले इसे आसानी से इस्तेमाल न कर सकें।

इसके अलावा, सरकार के लिए यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों को मीडिया साक्षर बनाने पर जोर दे, ताकि लोग फोटो और वीडियो के संदेशों को विश्लेषणात्मक तरीके से मूल्यांकन कर सकें। इसके अलावा, अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स के पासवर्ड को मजबूत रखें और द्विस्तरीय प्रमाणीकरण अपनाएं।इसके अलावा, सोशल मीडिया कंपनियों की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे डीपफेक वीडियो को विभिन्न तरीकों से स्वयं वेरीफाई करें और उन्हें तुरंत अपने प्लेटफॉर्म से हटा दें। यदि कोई व्यक्ति डीपफेक का शिकार हो जाता है, तो वह तुरंत साइबर अपराध सम्बंधित शिकायत दर्ज कराये।

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