शहर इंदौर ने एक जश्न चंद सालों मनाया था, जिसकी कामयाबी की पताकाएं इतने ऊंचे तक लहरा गई थीं कि उनका मुकाबला अब तक किसी मुशायरा महफिल से नहीं हो पाया। यह दुनिया के मकबूल शायर डॉ. राहत इंदौरी की 70वीं सालगिरह का जश्न था, जो उनके जीवनकाल में मनाया गया था। इसके पांच बरस बाद जब जब अमृत महोत्सव मनाने का मौका आया, तो राहत अपने चाहने वालों के बीच मौजूद नहीं हैं। लेकिन शहर ए इंदौर ने अपनी मुहब्बत का परचम लहराए रखा और शायर की याद में मनाए जाने वाले आयोजन को यादगार कार्यक्रम का तमगा थमा दिया। इंदौर में डॉ. राहत इंदौरी की याद में “जश्न ए राहत” आयोजन हुआ, जिसमें शायरी, साहित्य और संगीत का संगम रहा। कार्यक्रम में उनके जीवन और शायरी पर चर्चा, किताबों का विमोचन, दास्तानगोई, सूफियाना महफिल और गजलें पेश की गईं। यह आयोजन सोशल मीडिया पर भी वायरल रहा।
राहत इंदौरी फाउंडेशन और इंदौर शहर के साथ पूरे प्रदेश एवं देश की मिलीजुली कोशिशों का नतीजा था, जश्न ए राहत : बात राहत की। राहत साहब से जुड़ी और उनकी पसंद की विभिन्न गतिविधियों से सजे इस आयोजन का हिस्सा बनने की लोगों की ललक वैसी ही थी, जैसे राहत साहब के दौर वाले जश्न में रही थी। तब राहत साहब को सुनने की होड़ थी, अब उनके बारे में बातें सुनने, जानने, समझने और अपने मन मस्तिष्क में सहेजने की कसक ने उन्हें कार्यक्रम स्थल तक पहुंचा दिया था।
सोशल मीडिया प्रचार ने बढ़ाया उत्साह
नए साल की पहली शाम को होने वाले आयोजन के लिए सोशल मीडिया प्रचार लंबे समय से जारी था। इस आयोजन को एप्रिशिएट करने के लिए जहां बड़े साहित्यकारों, शायरों और राहत को जानने वालों ने अपनी शुभकामनाएं सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म पर शेयर कीं, वहीं फिल्मों, टीवी और रंगकर्म से जुड़ी बड़ी हस्तियों ने भी राहत साहब के लिए अपने मन की बात कही और इस प्रोग्राम का हिस्सा बनने की अपील की। शहर इंदौर से आगे चलकर प्रदेश के कई शहरों तक इस कार्यक्रम के पोस्टर्स की मौजूदगी ने भी लोगों में उत्साह भर दिया। यही वजह रही कि पहले आओ, पहले जगह पाओ की आसानी के बावजूद एंट्री पास हासिल करने की होड़ मच गई। आयोजकों को हॉल की सीटिंग क्षमता से अधिक पास बांटने की मजबूरी तक बन गई। लाभ मंडपम के बैठक हॉल के अलावा बाहर भी बड़े स्क्रीन और बैठक व्यवस्था भी करने की स्थिति बन गई।
शाम से रात तक चलीं महफिलें
जश्न ए राहत अपने नियत समय शाम चार बजे से थोड़ी देर से शुरू हुआ। प्रसिद्ध उद्घोषक संजय पटेल की सुरमई आवाज के साथ पहला बातचीत सत्र शुरू हुआ। शमा रौशन करने की रस्म अदायगी के बाद राहत साहब के बड़े भाई एमए कुरैशी ने अतिथियों का शॉल, स्मृति चिन्ह और पुष्प गुच्छ से मेहमानों का इस्तकबाल किया। डॉ अजीज इरफान, डॉ दीपक रूहानी और हिदायत उल्लाह की इस स्वागत बेला में राहत साहब के दोनों बेटे फैसल राहत और सतलज राहत भी शामिल रहे। इस दौरान डॉ. राहत इंदौरी पर पीएचडी करने वाले डॉ. अजीज इरफान की किताब ख्वाब की खेतियां का विमोचन भी किया गया।
राहत जानते थे लोगों तक कैसे पहुंचे शायरी : डॉ दीपक रूहानी
जश्न ए राहत के पहले चरण में डॉ राहत इंदौरी की शख्सियत और फन पर बात हुई। कार्यक्रम के सूत्रधार बने सतलज राहत को जवाब देते हुए डॉ. दीपक रूहानी ने कहा कि राहत साहब में यह फन था कि अपने श्रोताओं तक शायरी कैसे पहुंचाई जाए। उन्होंने राहत इंदौरी को राहत ए दुनिया बनने में शहर इंदौर की बड़ी भूमिका बताई। उन्होंने कहा कि राहत साहब की शायरी को साम्प्रदायिक सौहाद्र वाली शायरी कहा जा सकता है। डॉ. दीपक का मानना है कि जो भी शख्स राहत साहब से दो मिनट भी मिल लेता तो उनका होकर रह जाता था। अपने से छोटों को सम्मान देने का हुनर भी उनमें खूब रहा है। डॉ. इरफान अजीज और हिदायत उल्लाह ने भी डॉ. राहत इंदौरी की कई अनछुई बातों को साझा किया।
हिमांशु ने सुनाई दास्तां
दुनिया के मशहूर दास्तानगो डॉ. हिमांशु वाजपेई ने राहत साहब की जिंदगी के विभिन्न पहलुओं को रोचक दास्तान में पिरोकर सुनाया। उन्होंने राहत साहब के पहले मुशायरे से लेकर शिखर सम्मान तक से जुड़े किस्से सुनाए।
और मिला यह बड़ा तोहफा
डॉ. राहत इंदौरी के शायरी जीवन में कागज से उतरी पंक्तियों से लेकर मंचों पर सुनाई गजलों के बीच कुछ सुखद और अनकहे पढ़े शेर ऐसे भी हैं, जो मंजर ए आम पर नहीं आ पाए। राहत इंदौरी फाउंडेशन ने इन सभी बचे हुए लम्हों को एक किताब की शक्ल दी है। जश्न ए राहत के दौरान रेखता पब्लिकेशन की इस किताब “मैं जिंदा हूं” का विमोचन भी किया गया। इस नई किताब से राहत साहब के कई नए कलाम उनके चाहने वालों को पढ़ने को मिलेंगे।
सूफियाना महफिल और गजलों की बारिश
जश्न ए राहत के दौरान कलाम ए राहत के दौरान आफताब कादरी और साथियों ने राहत साहब की ग़ज़लों को सूफियाना अंदाज़ में पेश किया। जश्न के आखिरी रंग में महफिल ए मुशायरा सजाई गई। जिसमें देश दुनिया के नामवर शायरों ने अपने कलाम पेश किए।
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