सरकार ने 30 साल पहले गठित राष्ट्रीय महिला कोष (आरएमके) को इस सिफारिश के बाद बंद कर दिया है कि इसकी प्रासंगिकता खत्म हो गई है। एक गजट अधिसूचना के अनुसार इसकी वजह ये है कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए पर्याप्त वैकल्पिक ऋण सुविधाएं उपलब्ध हैं। राष्ट्रीय महिला कोष को 1993 में लॉन्च किया गया था। इसकी वजह ये थी कि अनौपचारिक क्षेत्र में महिलाओं को संपार्श्विक-मुक्त ऋण (कोलेट्रल लोन) प्रदान किया जाए। इस बारे में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि प्रधान आर्थिक सलाहकार द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में राष्ट्रीय महिला कोष को बंद करने की सिफारिश की गई है। इसकी वजह ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय सेवाओं का विस्तार होना है। इसके अलावा कोलेट्रल लोन की आसान उपलब्धता के बाद इसकी प्रासंगिकता खो गई है।
राष्ट्रीय महिला कोष बंद करने की वजह
अधिसूचना के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत बैंकों से मुफ्त माइक्रो क्रेडिट भी मिल रहा है। ये भी बताया गया कि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन और पीएम मुद्रा योजना जैसी सरकारी योजनाओं ने लाखों स्वयं सहायता समूहों का सफलतापूर्वक पोषण किया है। ऐसे में ये स्वयं सहायता समूह विशाल बैंकिंग नेटवर्क और सस्ते ऋण सुविधाओं तक पहुंच सकते हैं।
दिसंबर 2023 से बंद हैं गतिविधियां
अधिसूचना में कहा गया है कि वर्तमान परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए, राष्ट्रीय महिला कोष के सभी संचालन और गतिविधियां 31 दिसंबर, 2023 से बंद हैं। मंत्रालय ने कहा कि राष्ट्रीय महिला कोष के कर्मचारियों को विशेष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (एसवीआरएस) के तहत विशेष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी गई है। इसके अलवा आरएमके के अधिशेष फंड को भारत के समेकित कोष यानी सीएफआई में वापस कर दिया गया है। राष्ट्रीय महिला कोष का बकाया ऋण पोर्टफोलियो भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) को हस्तांतरित कर दिया गया है।