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इंदौर में भाजपा ने अपनाया राजनीति का छिंदवाड़ा माॅडल

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मध्य प्रदेश का छिंदवाड़ा जिले में कांग्रेस का जमीनी नेटवर्क तगड़ा है। भाजपा ने इस चुनाव में भी कोशिश की, लेकिन जिले में एक भी विधानसभा सीट भाजपा को नहीं मिल पाई। छिंदवाड़ा के राजनीतिक माॅडल की तर्ज पर इंदौर को भाजपा अपना अभेद किला बनाना चाहती है। इस विधानसभा चुनाव में एक भी सीट कांग्रेस को नहीं मिल पाई।

इसे बरकरार रखने के लिए भाजपा ने एक माह में इंदौर कांग्रेस के तीन पूर्व विधायक और एक नेता को भाजपा में शामिल किया है, ताकि अगले विधानसभा चुनाव में उनकी दावेदारी कमजोर हो जाए। इंदौर नगर निगम परिषद से लेकर विधानसभा और लोकसभा में भाजपा ही चुनाव जीती है।

छिंदवाड़ा जिला पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ का गृह क्षेत्र है। वहां उन्होंने भाजपा के नेतृत्व को पनपने नहीं दिया। यही कारण है कि भाजपा को विधानसभा और लोकसभा चुनाव मेें मजबूत उम्मीदवार नहीं मिलते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में छिंदवाड़ा लोकसभा सीट ही कांग्रेस के पास थी, बाकी 28 सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार चुनाव जीते थे।

देपालपुर, एक नंबर और महू में नहीं बचे कांग्रेस के बड़े नेता
पूर्व विधायक विशाल पटेल के भाजपा में जाने से देपालपुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस कमजोर हो गई। अब वहां विधानसभा चुनाव के लिए इक्का-दुक्का दावेदार ही बचे हैं। एक नंबर विधानसभा क्षेत्र में संजय शुक्ला के अलावा विधानसभा चुनाव में गोलू अग्निहोत्री और कमलेश खंडेलवाल दावेदारी करते थे। खंडेलवाल पहले ही भाजपा का हिस्सा बन चुके हैं और शुक्ला भी भाजपा में शामिल हो गए।

अब वहां भी कांग्रेस के बड़े नेता नहीं बचे। पांच नंबर विधानसभा सीट से भी पंकज संघवी अक्सर विधानसभा चुनाव में दावेदारी करते रहे हैं। वे कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा, विधानसभा और नगर निगम मेयर का चुनाव भी लड़ चुके हैं, लेकिन अब वे भाजपा का हिस्सा बन चुके हैं।

महू में भी भाजपा को अब चुनौती नहीं
महू विधानसभा सीट पर अंतर सिंह दरबार कांग्रेस विधायक रह चुके हैं और लगातार 20 सालों से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े। इस बार विधानसभा चुनाव मेें उन्हें टिकट नहीं मिला तो वे कांग्रेस के बागी उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े। कैलाश विजयवर्गीय के जरिए उन्होंने भी भाजपा का दामन हाल ही में थाम लिया है। अब महू मेें भी कांग्रेस का बड़ा नेता नहीं बचा है। भाजपा के बड़े नेता अब अपने भाषणों मेें इस बार पर भी जोर दे रहे हैं कि इंदौर जिले में कांग्रेस के बड़े नेता नहीं बचे। कांग्रेस बहुत कमजोर हो चुकी है।

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