पुष्पा गुप्ता
यदा कदा आप सभी को मेरे लेख महिलाओं की स्थिति बताते और आप सबसे अपील करते मिलेंगे जहां मैं चाहूंगी कि आप सब भी मेरा साथ दें क्योंकि हम सब साथ होंगे तभी हमारे समाज में जो बुराइयां आ चुकी हैं उन्हें दूर किया जा सकता है।
. आज बात फिल्मी गीतों में महिलाओं की स्थिति की।
1990 के दशक में करिश्मा कपूर पर फिल्माया एक गाना आया था जिसके बोल थे ” सेक्सी सेक्सी मुझे लोग बोलें.”
भारतीय जनता ने उस गाने पर इतना एतराज़ जताया कि उसके बोल बदल दिए गए और फिर वो गाना बन गया “बेबी बेबी मुझे लोग बोलें.”
उस समय एक शब्द को लेकर सभी को बुरा लगा कि एक औरत के लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग निंदनीय है।
आज की स्थिति इससे बिल्कुल उलट है। आज गीतों में महिलाओं का सम्मान घटता जा रहा। उन्हें एक उपभोग की वस्तु से अलग कुछ लिया नहीं जा रहा। आज वेश्या की प्रतिरुप करीना कपूर खान पर फिल्माया एक गाना जिसमें औरत को ” तंदूरी मुर्गी” की उपमा दी जा रही और अल्कोहल से गटकने की बात हो रही है पर आज इन शब्दों से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।
स्थिति बद से बदतर होती चली गई और अब सभी को ऐसा लगने लगा है कि अब तो कुछ हो ही नहीं सकता। पर मुझे ऐसा नहीं लगता , अगर कुछ बुरा हुआ भी है तो उसे सुधारा जा सकता है।
फिल्म इंडस्ट्री का ये कहना कि हम वो दिखाते हैं जो समाज में चल रहा होता है। हां कुछ मुद्दों पर ऐसा कहा जा सकता है पर कितना कुछ है जो उनकी कल्पना होती है जिसे समाज अपनाता है। हमारे ही पैसे से फिल्म इंडस्ट्री चलती है और हमारे ही युवाओं को बर्बाद करने का काम करती है।
इन गीतों की धुन ऐसी होती हैं जो सबके मुंह चढ़ जाती हैं और सब उन्हें गुनगुनाने भी लग जाते है और उन पर थिरकने भी।
अगर आप देखें तो घरों में शादी – ब्याह या कोई भी अवसर हो , घरों में यही गाने बज रहे होते हैं और उन गानों के शब्दों पर ध्यान न दे उन गानों पर महिलाएं , बच्चे यहां तक कि घर के बड़े भी थिरक रहे होते हैं। शायद कोई ध्यान भी नहीं देता कि शब्द क्या हैं।
वैसे तो भारत में “नारी सम्मानीय है” जैसी बड़ी – बड़ी बातें कही जाती हैं पर वो सिर्फ लिखने के लिए ही होती हैं। स्थिति हर जगह उलट ही है।
यहां पर जिम्मेदारी घर के बड़ों की हैं , घरों में ये गाने न बजने दिए जाएं। अब ये न कहा जाए कि बच्चे नहीं मानते। बच्चे मानते है। हमारे भारतीय बच्चे बड़ों की बातें अभी भी मानते हैं। एक दिन नहीं मानेंगे , दो दिन नहीं मानेंगे पर जब बार – बार बोला जायेगा तो मानेंगे। आप पहले की तरह विरोध जताए तो सही। अपनी ताकत को पहचानिए।
एक पंक्ति जो मैं खुद से बोलती हूं
“जो बात मन में आ गई वो पूरा होने का सामर्थ्य रखती है।”
तो ऐसा न कहा जाए कि अब कुछ हो नहीं सकता।
धीरे – धीरे ही सही परिस्थिति बदलेगी पर कोशिश तो करनी ही होगी। हाथ पर हाथ धर बैठ कर बस ये राग अलापते जाएं कि कुछ हो नहीं सकता ये सही नहीं।
गंदे गानों का , फिल्मों में बढ़ती अश्लीलता का विरोध किया जाए। वो इंडस्ट्री हमसे चलती है। हमारे पैसे के बल पर फल – फूल रही है और हमारे ही युवाओं को बर्बाद करने का सामान तैयार कर रही है। उन्हें औकात दिखानी होगी उनकी। वो हमसे हैं हम उनसे नहीं।