*लोकसभा चुनाव में मतदाताओं से लेखक, कलाकारों, बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ताओं और जागरूक नागरिकों की एक अपील*
हम भारत के लोग 18 वीं लोकसभा के लिए मतदान करने जा रहे हैं। ये आम चुनाव इन मायनों में महत्वपूर्ण हैं कि आज देश का जनतंत्र संकट में है। हमारा संविधान दांव पर है, जोकि भारत को धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक गणराज्य बनाता है। नागरिकों के मौलिक हकों पर लगातार हमले हो रहे हैं।
पिछले दस बरसों से जो हुकूमत इस देश में है, छद्म मुद्दों और निरर्थक दावों से जनता को भ्रमित करने में व्यस्त है। देश के जागरूक नागरिक और प्रगतिशील-जनवादी, सामाजिक -सांस्कृतिक आन्दोलन, लेकिन उनके झूठे दावों और गुमराह करने वाले आश्वासनों की सचाई सामने लाने के लिए दृढ़ संकल्प हैं। यह जानना जरूरी है कि खुद सरकार के आंकड़े ही चुगली कर रहे हैं कि इन दस बरसों में देश के किसान, मजदूर, महिला, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक वर्गों का जीवन अधिक मुश्किल होता गया है।
खेती-किसानी बर्बाद होती गयी है। मुल्क की बहुसंख्यक आबादी की जिन्दगी अधिक कठिन बना देने और सरकारी नीतियों से चंद अरबपतियों का अकूत मुनाफा और बढ़ाने वाले कानूनों के विरोध में किसानों को करीब साल भर तक राजधानी दिल्ली को घेरे रखना पड़ा, तब कहीं सरकार कुछ झुकाने पर मजबूर हुई । कर्जों से दबे हज़ारों गरीब किसान इस कदर परेशान रहे कि उन्हें खुदकुशी कर लेना ही उपाय जान पड़ा ?
मतदान करते समय हमें ये तथ्य याद रखने होंगे:
मजदूरों और कर्मचारियों की लगातार असहनीय होती गयी स्थितियां याद रखनी होंगी। तीस-पैतीस बरस पहले तक वे अपनी मेहनत के वास्तविक मूल्य का 30-35 फिसद तक पा जाते थे, जो आज घटकर 10 प्रतिशत से भी नीचे चला गया है। ठेकेदारी-प्रथा और रोजगार की अस्थिरता ने उन्हें लगभग बंधुआ बना दिया है। रोज़गार की अनुपलब्धता ने खेत-मजदूरों और उनके परिवारों को भुखमरी की कगार तक पहुंचा दिया है।
अर्थव्यवस्था को कई लाख करोड़ रुपयों का बना देने के नाम पर जो नीतियां लादी जा रही हैं, उनसे चंद कारपोरेट कंपनियां बेहिसाब मुनाफा कमाने की छूट पा गई हैं । जबकि अब तक की सर्वाधिक बेरोजगारी के कारण बहुमत जनता का जीवन गरीबी, भूख, कुपोषण और बीमारी की गहरे संकटों में है। उनके बच्चो को न्यूनतम पोषण तक नहीं मिल पा रहा है। जाहिर है, वर्तमान नीतियां देश का भविष्य ही चौपट कर रही हैं।
मतदाता को याद रखना होगा उन हज़ारों लोगों को जो कोरोना महामारी में सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलते हुए अपने-अपने गांवों तक पहुंचने को विवश कर दिए गए थे। लचर इंतजामात के कारण महामारी से हज़ारों लोग असमय अपनी जान से हाथ धों बैठे। उन सैकड़ो लाशों को याद रखना होगा, जो नदियों में ही बहती पाई गयी थीं।
सरकार इस बात का प्रचार करते नहीं थकती कि भारत दुनिया की सर्वाधिक युवा आबादी वाला देश है। मगर, युवकों और छात्रों के साथ किये जा रहे दुर्वव्हार के उदहारण हम रोज़ देख रहे हैं । महंगी कर दी गयी शिक्षा आम जनता की पहुंच से बाहर हो चुकी है। रोजगार की अनुपलब्धता के इस दौर में अग्निवीर जैसी योजना युवाओं और भारत की सेना, दोनों के साथ, क्या किसी विश्वासघात से कम है ?
वोट देते समय हमें याद रखना होगा कि जीएसटी, खुदरा व्यापार में विदेशी-निवेश और देसी कार्पोरेट्स के प्रवेश की इजाजत से छोटे और मंझोले व्यापारी तबाह हो रहे हैं। मगर, चुनावी-बांड्स के नाम पर वसूले गए अरबों रुपयों की एवज में सरकार चंद अमीरों के पक्ष में नीतियां बनाती जा रही है । मतदाता को याद रखना होगा कि चुनावी-बांड्स कुछ और नहीं बल्कि बेईमानी और भ्रष्टाचार का खुला प्रमाण है। मोदी-राज में देश के महत्वपूर्ण साधन-संसाधन औने-पौने में इक्का-दुक्का लाडले घरानों के हवाले कर दिए गए हैं । कारपोरेट-कंपनियों से वसूले, ऐसी भ्रष्ट रकम से ही सांसदों, विधायकों या कि पूरी सरकारों को ही खरीदा गया। जनादेशों को बेशर्मी से नकारा गया है। तमाम तिकड़मों के बाद भी अपने आपराधिक मकसद में विफल रह जाने की दशा में निर्वाचित मुख्यमंत्रियों को जेल में डाल देने के कारनामें भी अब किये जा रहे हैं। ठीक चुनाव-पूर्व झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारियां उदहारण हैं ।
मतदाता को भूलना नहीं चाहिए कि संवैधानिक संस्थाओं की निष्पक्षता और स्वतंत्रता खत्म कर दी गयी है। ईडी, सीबीआई और इनकमटैक्स जैसे विभाग विपक्ष को डराने और लोकतान्त्रिक तरीकों से काम करने से रोकने के लिए इस्तेमाल किये जा रहे हैं ।
मतदान के समय याद रखना होगा कि देश की महिला पहलवानों के यौन उत्पीडन के अलावा बलात्कार के अनेक मामलों में भाजपायी नेताओं के नाम आये, जिनका बेशर्मी से बचाव किया जाता रहा। गुजरात में तो बिलकिस बानो के साथ सामूहिक हैवानियत करने वाले भाजपाई सजयाफ्ताओं को सजा पूरी होने से पहले ही जेल से रिहा करवा दिया गया था। इतना ही नहीं उनका फूल-मालाओं से स्वागत भी किया गया। सुप्रीम अदालत ने उस सजा माफी को गलत करार दिया है।
मतदान देने के वक्त याद रखना होगा कि जघन्य अपराधों के लिए सजा काट रहे गुरमीत राम रहीम हो अथवा आसाराम, इनके साथ भाजपाईयों के रिश्ते कितने करीबी रहे हैं । हाथरस में दलित युवती के साथ अथवा प्रधानमंत्री के अपने संसदीय क्षेत्र बनारस में विश्वविद्यालय कैंपस में आईआईटी छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार की दिल दहला देने वाली घटनाएं, कठुआ में नन्ही आसिफा के साथ की बर्बरता को क्या भुला दिया जा सकता है ?
याद रखना होगा कि मुद्दा केवल किसी व्यक्ति से सम्बंधित दुराचार का भर नहीं, बल्कि स्त्री मात्र को दोयम और भोग्या मानने वाली विचारधारा का है। उसे पराजित किये बिना क्या सभ्य समाज का निर्माण संभव है ?
वोट देने वाले को याद रखना होगा कि भारत के संविधान और आजादी के आन्दोलन से हासिल स्वतन्त्रता, समानता, सोहार्द्र, न्याय तथा मानवीय-गरिमा जैसे जीवन-मूल्यों में इस गिरोह का कभी भी भरोसा नहीं रहा। इसी कारण सत्ता पा जाने के बाद ये समता, समानता, भाईचारे और मानवाधिकारों के पक्षधरता संविधान को हटा कर उसकी जगह कुख्यात मनुस्मृति स्थापित करना चाहते हैं। वही मनुस्मृति जो देश के बहुसंख्यक नागरिकों को जाति, वर्ण, लिंग, भाषा, के आधार पर नीचे की दर्जे का घोषित करती है। दलितों, आदिवासियों और पिछड़ी जातियों पर बढ़ते अत्याचार, आरक्षण का विरोध और ओबीसी की जनगणना से नकार की मानसिकता को याद रखना होगा।
वोट देते समय भूले नहीं कि हजारों सालों में विकसित अपनापे और प्रेम की साझी संस्कृति को लगातार नष्ट किया जा रहा है। विज्ञान और वैज्ञानिक चेतना पर हमला किया जा रहा है। अनुसन्धान, तर्क और असहमति को नकारा जा रहा है। छद्म-विज्ञान और अंधविश्वास को बढ़ावा दिया जा रहा है । ठहर कर सोचें कि इस तरह आखिर भविष्य में कैसा समाज बनेगा ?
मतदान करते समय यद् रखना होगा कि बुद्धिजीवियों, विचारकों, बेबाक पत्रकारों, वैज्ञानिकों को जेलों में डाला जा रहा है। मीडिया को पालतू बनाया जा रहा है। अपनी नापाक राजनीति के लिए करोड़ों भारतीयों की धार्मिक आस्था का दोहन अपराध हैl तो मतदाता को भी सोचना होगा कि धर्म के नाम पर किसी भ्रष्टचारी, बलात्कारी, हत्यारे अथवा गुंडे को वोट देकर जिताना भी उतना ही बड़ा गुनाह है। हम यदि मनुष्यता, लोकतंत्र, संविधान और सभ्यता को बचाना चाहते हैं तो भाजपा को हराना होगा । संघर्षो और कुर्बानियों से हासिल आजादी, एकता, सोहार्द और साझी संस्कृति को बचाना है तो भाजपा को हराना होगा ।
इतिहास के किसी भी दौर में जनता से बड़ी कोई ताकत नहीं होती। तय कर लें तो हम देश-विरोधी साम्प्रदायिक गिरोह का अहंकार चकनाचूर कर सकते हैं। याद रखना होगा कि हमारे किसान-मजदूरों ने ही भूमि अधिग्रहण को वापस लेने के लिए सरकार को मजबूर किया था। देश के किसानों के करीब एक बरस के एतिहासिक संघर्ष के बाद ही 2020 में लाये गए तीन कृषि कानून मोदी-सरकार को वापस लेने पड़े थे। चार लेबर कोड्स लागू करने से सरकार को अब तक रोके रखना भी इसी मेहनतकश जनता के संघर्ष से ही मुमकिन हो सका है। अपने वोट से आप संविधान की हिमायती और वैकल्पिक नीतियों वाली जनपक्षधर सरकार चुन सकते हैं, जो भाजपा और उसके संगी-साथियों को पराजित करने से ही संभव होगा।
आइये, एक साथ हम इस काम को अंजाम दें।
निवेदक
*सांस्कृतिक मोर्चा, भोपाल*