मेघा कुमारी
एक स्त्री अपने पूरे जीवन में हर तरह का रिश्ता निभाती है। वह किसी की बेटी या बहन व पत्नी के रूप में अपने सारे फर्ज अदा करती है। हालांकि, इनमे से सबसे ज्यादा महत्व रखने वाला रिश्ता मां का है। जीवन में जिस शब्द को सुनकर सारी थकान दूर हो जाए, हर कदम पर जिसका साथ चाहिए, वो मां है। हम सभी का जीवन कठिन परिश्रम और लाखों प्रयासों से भरा है। हर व्यक्ति जीवन में सफलता हासिल करने के पीछे दौड़ रहा है। पैसा कमाने की धुन में व्यक्ति इतना मगन है कि शायद अपने खान-पान का भी ध्यान न रख पाए। अक्सर काम करने के बाद भारी थकान हो जाती है। इस थकान के साथ जब घर पहुंचे तो मां का पहला शब्द होता है ‘कुछ खाया?’ इस सवाल में मां की ममता होती है। एक बार मां तुम हाथ माथे पर फेर देती हो, तो जन्नत-सा सुकून मिल जाता है।
यूं तो हर कोई मदर्स डे मनाने की राह पर निकल पड़ा है। लेकिन सच कहूं तो ‘मां’ शब्द और मां किसी एक दिन की मोहताज नहीं है। मां ईश्वर का दूसरा रूप हैं। जीवन में सब कुछ दोबारा बनाया जा सकता है, लेकिन मां का साथ छूट जाने पर वह कभी प्राप्त नहीं हो सकता है। हर दिन की शुरुआत मां से होती है। व्यक्ति के जीवन में आगे बढ़ने के लिए जब सब रास्ते बंद हो जाते है, तो मां का साथ एक नई राह दिखाता है। उसके माथे की बिंदी की चमक आंखों में एक प्यार की किरण भेजती है। सच कहूं, तो मेरी मां मेरा सारा सुख है। वो मेरे लिए देवी का रूप है। मेरी मां ने सिखाया कि कैसे अपनी समस्याओं का निवारण किया जाता है। वो कहती हैं कि जीवन में सफलता और असफलता मायने नहीं रखती। जरूरी है, तो वो है तुम्हारा हौसला।
मां से मैंने क्या सीखा?
मेरे जीवन में मेरी मां साहस और जुझारूपन की सबसे बड़ी उदाहरण हैं। विपरित परिस्थिति में धैर्यवान रहकर उसका सामना करना, मुझे मेरी मां ने सिखाया। मां ने मुझमें ये विश्वास पैदा किया कि मैं सबसे अच्छी बेटी बन सकती हूं। संकट के समय संयम और जीवन में संतुलन बनाकर चलने की कला मैंने मां से सीखी है।
मुझे गर्व है इस बात का कि विश्लेषणात्मक सोच और समस्या को हल करने की काबिलियत मां से हमें मिलती है। दुनिया में हर मां अपने बच्चों का भला चाहती है। वह हमें आशावादी होना सिखाती है। साथ ही जीवन की कठिन लड़ाइयों पर विजत प्राप्त करना हमें मां से आता है। घर पर सभी का ध्यान रखने से लेकर अपनी इच्छाओं को दबाकर अपनों की खुशियों में रम जाना, ये मैंने मां से ही सीखा है।
मुनव्वर राणा ने जैसा लिखा है – “लबों पे उसके बद्दुआ नहीं होती, बस एक मां ही है जो मुझसे खफा नहीं होती।”
आज भी मां तमाम शैतानियां और गलती करने के बाद माफ कर देती है। वह हिसाब की कमजोर है इसलिए हर बार माफ कर देती है। कई बार गलतियां देखने-सुनने के बाद भी मां इस कदर नजरअंदाज कर देती है कि जैसे मानो कुछ हुआ ही न हो, क्योंकि वो “मां” है। इस कलयुग में मां ही तो है जिसका एक खरोंच आने पर दिल पसीज जाता है। वही तो है जो मेरा सारा दर्द महसूस करती है। पिता ने हमेशा आकाश की तरह मेरे सिर पर साया बनाए रखा। लेकिन मां ने परछाई की तरह साथ दिया। मेरी मां ने मुझे यूं तो कई सीख दी है, लेकिन ईमानदारी और लगन से अपने काम करना सिखाया, जो मुझे सबसे महत्वपूर्ण लगी।
मां ही बच्चे की पहली और सबसे अच्छी दोस्त होती है। मैं अपनी मां और ऐसी बहुत सी महिलाओं को जानती हूं, जो पुरुष से बेहतर ढंग से अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए अवसर का निर्माण करती हैं। सभी बच्चे मां की गोद में अपने आपको सुरक्षित महसूस करते हैं। जाने-अनजाने में अगर कोई गलती हो जाती है, तो पिता और भाई का डर सताता है, तो मां से ही उम्मीद रहती है वो डांट खाने से बचाएं, जो वो बखूबी करती हैं।
सामने से मां के लिए मैं कभी तारीफ करने का साहस तो नहीं जुटा पाई। लेकिन आज अवसर मिला तो मां के कुछ गुणों का जिक्र कर दिया। अपनी मां के साथ ही दुनिया की हर मां को मेरा प्रणाम और मदर्स डे की ढेर सारी शुभकामनाएं।