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चुनाव परिणाम: विकल्प के अभाव में यह तो होना ही था….!

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ओमप्रकाश मेहता

इतिहास स्वयं को दोहराता है, आज देश में ठीक वही राजनीतिक स्थिति है, जो आजादी के बाद तीसरे आम चुनाव (1962) में थी, उस समय भारत के मतदाताओं की वैकल्पिक राजनीति के अभाव में पंडित जवाहरलाल नेहरू को ही प्रधानमंत्री चुनने की मजबूरी थी और आज भी वैकल्पिक राजनीति के अभाव में नरेन्द्र भाई मोदी को ही पुनः चुनने की मजबूरी है और इसलिए जो परिणाम सामने आए है, वे इसी संकेत के परिचालक है।

आजादी के बाद लगभग तीन दशक तक कांग्रेस के सामने कोई राजनीतिक चुनौती नही थी, कांग्रेस के सामने तत्कालिक जनसंघ (मौजूदा भारतीय जनता पार्टी) अवश्य था, किंतु उसकी पहचान राजनीतिक दल के रूप में नही बल्कि एक स्वयं सेवी संगठन के रूप में थी, सन् 1980 में जन संघ ने अपना नाम भारतीय जनता पार्टी रखकर राजनीति के अखाड़े में उतरने का फैसला लिया और उसके बाद से अब तक देश में दो ही राष्ट्रीय पंजीकृत राजनीतिक दल है, एक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और दूसरा भारतीय जनता पार्टी और अब ये ही दोनों दल अपनी स्थिति व राजनीतिक ताकत के अनुरूप भारत पर राज कर रहे है और एक-दूसरे के विकल्प बने हुए है।

जहां तक कांग्रेस का सवाल है, इसकी उम्र करीब एक सौ चालीस साल है और भारत की आजादी में योगदान से लेकर अब तक अधिकांश समय तक भारतीय प्रशासन पर इसी का अधिकार रहा है, किंतु अब यह उचित संरक्षण व नेतृत्व के अभाव में अंतिम सांस लेने को मजबूर है और वैकल्पिक रूप में भाजपा इसका स्थान ग्रहण करने को आतुर है और अब तो देश में यह राजनीतिक स्थिति निर्मित हो गई है कि भाजपा ही एकमात्र विकल्प के रूप में उभर कर सामने आ गई है, किंतु अब मौजूदा राजनीतिक माहौल आम जागरूक भारतीय के दिल-दिमाग में चिंता की लहर पैदा कर रहा है,

जब देश के आम मतदाता को विकल्प के अभाव में भारतीय जनता पार्टी का ही नेतृत्व स्वीकार करने को मजबूर होना पड़ रहा है और इन ताजा चुनावी परिणामों में वही परिलक्षित हो रहा है, आज जो चुनाव परिणाम सामने आए है उसमें भाजपा के नेतृत्व वाले दलीय संगठन ‘एनडीए’ का वरण करना पड़ रहा है और कांग्रेस नेतृत्व वाले ‘इण्डिया’ को निराश करना पड़ रहा है। इसका मुख्य कारण यही है कि आज देश में ऐसा कोई सक्षम विकल्प नही रहा है, उम्मीद की जा सके। मौजूदा चुनाव परिणाम ये ही राजनीतिक संकेत प्रस्तुत कर रहे है। इस प्रकार कुल मिलाकर अब अगले पांच साल हमारे देश में जो सरकार होगी, वह मजबूरी में चुनी गई वैकल्पिक सरकार होगी दिल-दिमाग या आम जनता के मन से चुनी गई सरकार नही, यह राजनीतिक स्थिति किसी भी स्वतंत्र प्रजातांत्रिक देश के भविष्य के लिए ठीक या उचित नही कही जा सकती।

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