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मरता बचपन : लेखन-भाषण-प्रवचन से पाखंडी नहीं, ‘आचरण’ से अच्छे बनें !

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~ डॉ. नीलम ज्योति

जीवन वाणी-लेखनी का विशेषण नहीं, क्रिया का विज्ञान है। हर कहीं बड़ी-बड़ी, अच्छी-अच्छी बातें हो रही हैं। इंसानियत के, घर्म के, प्रेम-परोपकार के और भलाई के उपदेश दिए जा रहे हैं।

हम अपने को नेक बता रहे हैं, और आचरण?
हम जो लिखते-बकते हैं उसका रत्ती-भर भर भी अपने चरित्र में नहीं लाते। किसे छल रहे हैं हम?
सिर्फ़ खुद को। हमारे़ इसी पाखंड के कारण आधुनिक इंसान दो-पाया जंगली जानवर बनता जा रहा है और उसका समाज मशीनी जंगल।
अगर हमारे़ सामने कोई असहाय-मासूम इंसान मरता रहे और हम उसे अनदेखा कर के अपने में मस्त रहें : तो क्या हम ईश्वर-विश्वासी हैं? क्या हम धार्मिक हैं? क्या हम इंसान कहलाने के हकदार हैं?
अपने लिए तो पशु-पंछी कीड़े-मकोड़े, सैतान-हैवान भी जी लेते हैं! हम भी ऐसे ही हैं तो उनसे किस अर्थ में अलग हैं?
कथनी से परे कुछ करनी की तरकीब निकाली जाए।
अब यह आज की बात बने कल पर न टाली जाए।।
नए निर्माणों की तामीर जऱूरी है मगर !
पहले गिरती हुई दीवार संभाली जाए…!!

शासकीय अनुदान बटोरने वाले N.G.O’s से अलग, बतौर चेरिटेबल ट्रस्ट रजिस्टर्ड ‘ज्योति अकादमी’ चेतना विकास मिशन समर्थित एक ऐसा उपक्रम है, जिसके द्वारा उन मासूमों को बचपन और अध्ययन का अनुभव दिया जा रहा है :
(१).जिन्हें देश का भविष्य नहीं माना जाता।
(२).जिन्हें अपना या अपने मृतवत अपनों का पेट पालने के लिये कूड़ा-कचरा टटोलना पड़ता है।
(३). जिन्हें बंधुआ मजदूर बनना पड़ता है।
(४). जिन्हें पैसे वाले नर-पशुओं को अपना जिस्म सौंपकर उनकी हवस मिटानी पड़ती है।
जो चंद रूपये देकर इन लाचारों से ये सब करवाते हैं, जो उनको भोगते हैं वो भी इंसान हैं। सभ्य इंसान हैं। हमारे-आपके जैसे आम इनसान नहीं, बल्कि खास इंसान।
और हम?
हम जो कर सकते हैं वो भी नहीं करते। तो क्या यही इंसानियत है? यही कहता है हमारा धर्म और मजहब? ऐसे ही हमसे खुश होंगे हमारे़ भगवान, अल्लाह, गॉड?
आपकी रोटी का थोड़ा- सा हिस्सा ऐसे मासूमों को जिंदगी दे सकता है. आपको वास्तविक खुशी/तृप्ति की अनुभूति करा सकता है। संस्थान स्टेशनरी, राशन, वस्त्र आदि भी स्वीकार करता है. एक बच्चे पर दैनिक खर्च का एवरेज सौ रुपया आता है. इससे अधिक लोग नशे में उड़ा देंगे, लेकिन एक बच्चे को जिन्दगी देना स्वीकार नहीं करेंगे. यह इंसानियत तो नहीं है जी.
— ज्योति अकादमी :
A/C नं. 550 372 620 92
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया।
— गूगल-पे :
999 77 41 245

अनेकों मीरा, गौतम, नीराला, सूर हैं जिनमें,
अहर्निश बुझ रही है जिनके जीवन दीप की बाती!
जिन्हें हर मौत मिलती है वसीयत में जनम से ही,
उठो उन दुधमुहें मासूम बच्चों के लिए साथी!!
(चेतना-स्टेमिना विकास मिशन)

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