–सुसंस्कृति परिहार
देश में इस बार दस साल से सत्तारूढ़ सरकार का केवल आकार प्रकार ही नहीं बदला है बल्कि वह दो वैशाखियों के सहारे है।कहा जा रहा था कि तेलगु देशम नेता चंद्रबाबू नायडू और जेडीयू नेता केबिनेट के महत्व पूर्ण पदों पर काबिज़ होंगे लेकिन वे दोनों इस दलदल से दूर रहें वे किंगमेकर की भूमिका में। रहे उन्होंने अपने दो दो लोगों को मंत्री परिषद में स्थान दिला के सहयोग दिया ।उनके इस त्याग के पीछे क्या हुआ यह आगे वक्त बताएगा लेकिन यह एक विचारणीय मुद्दा है। लोकसभा अध्यक्ष का पद अपने पास रखने की उत्कंठा को ज़रूर तेलगूदेशम को देकर पूरा किया गया है।
अब देखना यह है कि मोदी के चंगुल में फंसे तेलुगू देशम और जेडीयू नेता कितनी आज़ादी का परिचय देते हैं तृणमूल नेत्री बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो साफ़ कह रही हैं जो मोदी के संजाल में फंसा वो गया यानि की भाजपा का हो गया। वह छोटे दल से सत्तारूढ़ दल में केंद्र सरकार में मंत्री बनकर अपने अरमान पूरे करेगा उनका नमक अदा करेगा या अपनी पार्टी का ख़्याल रखेगा।आज के दलबदल के इस ज़माने से हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे अस्थिर नहीं होंगे।
मुझे तो यही समझ आ रहा है कि मध्यम कद के नेताओं को जिस तरह बड़ी तादाद में मंत्रीमंडल में स्थान दिया गया है उसके पीछे की रणनीति इन दलों को कमज़ोर करने की हो सकती है साथ ही साथ चर्चित और बड़े नेताओं को पूरी तरह समाप्त करने की भी। पार्टी अनुशासन जैसी बात अब बची नहीं है कांग्रेस के बाद अब तमाम छोटे दलों के लोगों को भाजपा में समेटने की तैयारी है। इंडिया गठबंधन को भी कमज़ोर करने की कोशिश निश्चित तौर पर चलेगी।
एक और महत्वपूर्ण बात केबिनेट में भाजपा ने अपने वे सब चेहरे शामिल कर लिए जो संविधान से इतर काम करने में माहिर हैं और भाजपा की पसंद रहे हैं।मसलन अमितशाह,मनोहर लाल खट्टर, जयप्रकाश नड्डा,निर्मला सीतारमण, सर्वानंद सोनोवाल, गिरिराज सिंह वगैरह।सदन में चूंकि इस बार प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी होंगे इसलिए उनकी आवाज़ दबाने भाजपा के, ये मोदी से दबे कुचले शेर दहाड़ते नज़र आएंगे। मंत्रीमंडल में सभी वर्गों को खुश करते हुए इस बात का बराबर ध्यान रखा गया है ताकि वे भाजपा के मुरीद हो जाएं।
अब देखना यह है कि लगभग बराबरी से खड़े विपक्ष के तमाम साथी इसका मुकाबला कैसे कर पाते हैं।यदि तेलुगू देशम की स्पीकर ने निष्पक्ष व्यवहार किया तो तो हरदम हर मामले पर बहस में जीत विपक्ष की होगी। सारा दारोमदार स्पीकर और दो प्रमुख समर्थक दलों के साथियों पर निर्भर करता है। इतना सब होने के बावजूद इंडिया गठबंधन मज़बूत स्थिति में रहेगा और एनडीए गठबंधन हमेशा मज़बूर नज़र आएगा। लोकतांत्रिक व्यवस्था की दृष्टि से प्रतिपक्ष का मज़बूत होना सुखद है।वह निश्चित तौर पर संविधान और जनता जनार्दन के हित में सजग रहेगा।यह बड़ी बात है।मगर सड़ियल सोच के शिखर पुरुष की ओछी रणनीति से सावधान रहना भी जरूरी है।