सुसंस्कृति परिहार
पिछले दिनों राजस्थान के डूंगरपुर से आई एक खबर ने इस सत्य को उजागर किया है कि भाजपा सरकार आदिवासियों पर हिंदुत्व लादने का काम आज भी जारी रखे हुए है यहां मानगढ़ में आयोजित एक आदिवासी महारैली में एक महिला शिक्षिका मेनका डामोर ने कहा कि वे लोग हिंदू नहीं है इसलिए ना सिंदूर लगाते हैं और ना ही मंगलसूत्र पहनते हैं इससे राजस्थान शिक्षा विभाग इतना नाखुश हुआ कि उसे नौकरी से निलम्बित कर दिया गया। यह विचारणीय मुद्दा है जिस बात पर भारत का सर्वोच्च न्यायालय कह चुका हो उसे कोई शिक्षिका या अधिकारी कह दे तो ग़लत कैसे हो सकता है? क्या सरकार की मंशा के ख़िलाफ़ बोलना अपराध है ?जबकि शिक्षिका ने न्यायपालिका यानि संविधान की सहमति से प्रेरित होकर यह उल्लेख किया था।
आपको याद होगा 9 अक्टूबर 2019 को आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के केतका गांव में जितेंद्र मरावी (सोनू मरावी) ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली थी क्योंकि उसके घर में जबर्दस्ती दुर्गा पूजा कराई गई। जितेंद्र के मित्र रूपेश मरकाम ने बताया कि स्थानीय स्तर पर दुर्गा पूजा समिति का गठन हुआ था, इसमें जितेंद्र के पिता धनसाय मरावी भी शामिल थे। रूपेश ने कहा, “समिति की बैठक में जितेंद्र के पिता पर दबाव डाला गया कि उनका बेटा दुर्गा का विरोध करता है और वह उसे समझाएं.” रूपेश का कहना है कि जितेंद्र के पिता को “अपने घर में दुर्गा पूजा करने का संकल्प” लेने को भी कहा गया।जितेंद्र को जानने वाले लोगो बताया था कि करीब 16 साल की उम्र में वह गोंड संस्कृति और परंपराओं को लेकर चल रहे आंदोलन में कूद पड़ा था। कम उम्र में ही जितेंद्र ने आदिवासी विरासत और इतिहास की वैकल्पिक समझदारी विकसित कर ली जो इन विषयों में मुख्यधारा के वर्चस्व को तोड़ती है. अपनी कविता “मेरा आदिवासी होना ही काफी है!” में जितेंद्र ने लिखा मेरा आदिवासी होना ही काफी है मेरी हत्या के लिए।
दरअसल,यह फंडा बहुत लंबे अर्से से संघ उठा रखा है उसे तो आदिवासी शब्द से ही नफ़रत है इसलिए उन्हें वनवासी कहना शुरू किया गया और कई संगठन वनवासी नाम से बनाए गए जो आदिवासी हलकों में हिंदुत्व का बीजारोपण भाजपा सरकार की मदद से कर रहे हैं ताकि इनकी आदि पहचान को समाप्त किया जा सके वा इनकी तमाम सुविधाएं छीनी जा सकें। लेकिन अब आदिवासियों की युवा पीढ़ी जागरूक हो रही है वे एकलव्य और शबरी की तरह नहीं अपना अलग व्यक्तित्व गढ़ रहे और प्रतिकार करने लगे हैं।उनका समाज अब अपने पुराने आईकान को सम्मान दिलाने में भी लगा है। विदित हो प्राकृतिक जीवन के नज़दीक रहने वाले आदिवासी हमारे पुरखे हैं जिन्हें प्रकृति संरक्षण के बारे अद्भुत ज्ञान है। संग्रह वृत्ति उनमें नहीं है।कम से कम प्रकृति को नुकसान पहुंचाए वे अपना जीवन यापन करते हैं उनके इसी भोलेपन की वजह से पूंजीपतियों ने उनके जल जंगल और जमीन पर मिलनेवाले खनिज संसाधनों पर कब्जा कर रखा है।जो बिना सरकारी संरक्षण के संभव नहीं है।इसे बचाने वाले आदिवासियों को नक्सली कहा जाता है उनको सहयोग देने वाले सामाजिक कार्यकर्ता को अर्बन नक्सली कहकर जेल में डाल दिया जाता है। उनका प्रकृति प्रेम अपराध है। जबकि आदिवासियत के संरक्षण की पहल भारतीय भारतीय संविधान में की गई है। वे प्रकृति के सच्चे प्रेमी है। इसलिए वृक्ष,नदी ,जंगल और उसमें रहने वाले जानवरों से ,उनके गोत्र और नाम होते हैं।इनके गुम होते ज्ञान विज्ञान पर शोध और उनके संरक्षण हेतु मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ सीमा के पास अनूपपुर जिले के लालपुर गांव में तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय आदिवासी जनजाति विश्वविद्यालय की स्थापना की जिसकी एकमात्र शाखा मणिपुर के इम्फाल में है जहां पर पूर्वांचल के आदिवासियों की तमाम जानकारियों को जुटाकर उसे बचाने का काम हो रहा है।दूसरी ओर हम पाते हैं कि विकास के नाम पर उनकी आदिवासियत मिटाने का उपक्रम तेजी से चल रहा हैू बताया जाता है कि उन्हें आज़ादी से पूर्व ईसाई, बनाने का अभियान चला। आज़ादी के बाद तो इन्हें मुसलमान और हिंदू बनाने का सिलसिला भी चल रहा है। ख़ासकर वर्तमान सरकार के कार्यकाल में उन्हें जबरिया हिंदू कहा जाने लगा।यह विवादित मामला सुप्रीम कोर्ट भी गया उसने साफ़ कर दिया कि आदिवासी हिंदू नहीं है। इसलिए जबरिया उन्हें हिंदू बनाने और कथित तौर पर ईसाई बने लोगों का धर्मपरिवर्तन भी जोर शोर से चल रहा है इनमें बाबा बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र शास्त्री भी शामिल हैं।कहा जाता है कुछ लोगों को नाटकीय तौर पर ईसाई या मुसलमान बताकर हिंदू बनाया जाता है। ताकि इसका भरपूर प्रचार किया जा सके। दमोह में कथित तौर पर। ऐसे हिन्दू बने लोगों ने बताया भी था कि वे तो हरिजन यानि हिंदू पहले से ही हैं। ऐसी घटनाएं शर्मनाक हैं।वहीं अडानी के लिए हंसदेव जंगल पर आरी सतत् जारी है। आदिवासियों पर लगातार हमले हो रहे हैं। इधर पिछले दो साल पहले द्रौपदी मुर्मू जी को राष्ट्रपति बनाकर आदिवासियों की वोट पाने का षड्यंत्र रचा गया इसके अलावा आदिवासी नेत्री से कथित तौर पर मनमानी करवाना तथा आदिवासी समाज के प्रति अपनी बफ़ादारी सिद्ध करना है। जबकि प्रारंभ में आदिवासियों ने इस चयन पर खुशी जाहिर की थी किंतु मणिपुर में कूकी आदिवासी जनजाति पर हुई ज्यादतियों को जब उन्होंने नज़र अंदाज़ किया तो यह दांव उल्टा पड़ गया। सीधी के आदिवासी पर मूत्र विसर्जन कांड पर मुर्मू जी की उपेक्षा से आदिवासी समाज आहत हुआ है।इसके अलावा द्रौपदी मुर्मू जी के राष्ट्रपति बनने के बाद आदिवासियों ने एक बार फिर से अपने लिए अलग धर्म कोड की मांग की थी। उसे भी ठुकरा दिया गया।आदिवासी वर्षों से ‘सरना धर्म कोड’ लागू करने की मांग कर रहे हैं। झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार ने भी ‘सरना आदिवासी धर्म कोड’ बिल को पास किया था, लेकिन मंजूरी के लिए ये केंद्र सरकार के पास अटका है। आदिवासियों का एक बड़ा तबका ऐसा है, जो खुद को हिंदू नहीं मानता है. इनमें झारखंड के आदिवासियों की आबादी सबसे ज्यादा है। ये आदिवासी खुद को ‘सरना धर्म’ का बताते हैं।आदिवासी समाज पर आजकल बड़ी तादाद में आपराधिक मामले दर्ज हो रहे हैं उन्हें जंगलों से बाहर किया जा रहा है मारे खदेड़े जब वे शहरों में या आसपास बस्तियां बना लेते हैं तो अतिक्रमण के नाम पर उनकी छाया को ढहा दिया जाता है।उनकी महिलाएं शैतानों की हवस की शिकार होती है कई क्षेत्रों में तो वे स्वयं अपनी देह को सस्ते में बेचकर पेट भरने का काम करती हैं।9अगस्त को विश्व भर में आदिवासी दिवस मनाया जाता है।उसे मनाने के साथ उनके इन गंभीर मुद्दों पर सोचा जाना चाहिए क्योंकि आदिवासी संस्कृति अनुकरणीय है वह प्रकृति की सबसे बड़ी रक्षक है उनसे हमें प्रकृति संरक्षण और कम से कम उपभोग के बारे सीखने की ज़रूरत है।वे धरती के आदि पुरुष ,हमारे पुरखा है उन्हें मत सताइए।उनका अनुसरण कीजिए।