,मुनेश त्यागी
पिछले काफी सालों से शेख हसीना का भारत चीन के साथ सहयोग बढ़ रहा था। शेख हसीना की सरकार का चीन और रूस के साथ भी सहयोग बढ़ता जा रहा था। वह ब्रिक्स की सदस्यता लेने की बात कर रही थी। चीन ने काफी पैसा बांग्लादेश में लगाया था और उसने अपनी “बेल्ट एंड रोड” योजना भी लागू कर दी थी। अमेरिका शेख हसीना की इन नीतियों से लगातार चिढता रहा है। वैसे भी जब 1971 में बांग्लादेश बना तब भी अमेरिका ने उसका विरोध किया था।
बांग्लादेश में तीन प्रमुख पार्टियों हैं ,,,बीएनपी, जमाते इस्लामी और अवामी लीग। बांग्लादेश नेशनल पार्टी एक कट्टरपंथी इस्लामी पार्टी है, जमाते इस्लामी भी कट्टरपंथी इस्लामी पार्टी है। अवामी लीग एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी है जिसका नेतृत्व पहले शेख मुजीबुर रहमान और अब शेख हसीना कर रही थी। जमाते इस्लामी ने 1971 के आंदोलन का विरोध किया था और बाद में अपनी कट्टर पंथी नीतियों के कारण बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने इसे प्रतिबंधित कर दिया था।
अमेरिका काफी समय से वहां की सरकार पर जिसका नेतृत्व है शेख हसीना कर रही थी, बांग्लादेश के एक आइसलैंड पर अपना नियंत्रण चाहता था, जिसका शेख हसीना लगातार विरोध कर रही थी। इस आइसलैंड का नाम है सेंट मार्टिन आइसलैंड। अमेरिका इस आइसलैंड पर अपना नियंत्रण चाहता था ताकि वह वहां अपना एक सैन्य अड्डा बना सके और वहां उस क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व कायम कर सके ताकि उस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को राका जा सके। मगर उसकी इस राह में शेख हसीना की सरकार और शेख हसीना आड़े आ रही थी।
वास्तविकता यह है कि बीएनपी अमेरिका की इस नीति से अनुभूति रखती है और उसका कहना था कि अगर उसकी सरकार आ गई तो वह इस आइसलैंड को अमेरिका को दे देगी। मगर हसीना ने कभी इसे स्वीकार नहीं किया, जिस वजह से वह अमेरिका की आंख की किरकिरी बनती चली गई। बाद में अमेरिका ने बांग्लादेश के चुनाव पर सवाल उठाए और कहा कि वह यहां फ्री एंड फेयर चुनाव कराना चाहता है।
यह बड़े अचंबे की बात है कि जब पाकिस्तान और सऊदी अरब में तानाशाहों के नेतृत्व में चुनाव हो रहे थे तो अमेरिका ने कभी इन पर एतराज नहीं किया। उसने इसकी कोई परवाह नहीं की। हकीकत यह है कि बांग्लादेश के चुनाव में अमेरिका किसी तरह से बीएनपी को जीतना चाहता है। उसने शेख हसीना को सत्ता छोड़ने की बात भी कही थी। अमेरिका ने अपने बहुत सारे अधिकारी बांग्लादेश भेजें जिन्होंने बांग्लादेश के विरोधी दलों से बात की। जमाते इस्लामी के नेताओं से भी बात की गई। कुछ दिन पहले हुए चुनावों में बांग्लादेश नेशनल पार्टी और जमाते इस्लामी ने भाग नहीं लिया जिस वजह से शेख हसीना इन चुनाव में जीत गई।
यहीं पर एक नाम आता है डोनाल्ड लू जो अमेरिका का डिप्लोमेट है तथा वह बांग्लादेश का तीन चार बार दौरा कर चुका है।वह बांग्लादेश में हो रही गतिविधियों पर नजदीक से नजर रखे हुए था और मौके की तलाश में था। पाकिस्तान चुनाव में भी उसने इमरान खान के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की बात की थी। शेख हसीना का कहना था कि “अमेरिका हमारे देश में एक “वाईट स्टेट” बनाना चाहता था, मैं इसका लगातार विरोध कर रही थी और अमेरिका को मेरा यह विरोध पसंद नहीं था।”
इस आंदोलन में बांग्लादेश के छात्र जो मांग कर रहे थे, सरकार के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सारी बातें मान ली थीं। इसके बाद छात्रों ने अपना आंदोलन वापस ले लिया था। छात्रों की मांगे मानने के बाद कुछ दिन बाद यह प्रदर्शन फिर शुरू हो जाता है। मगर यहीं पर सवाल उठता है कि ऐसा क्यों किया गया? छात्रों की मांग स्वीकार करने के बाद उन्होंने फिर से एक सोची समझी चाल के तहत नौ सूत्री प्रोग्राम सरकार के सामने रखा और जो बाद में “एक सूत्रीय प्रोग्राम” में बदल गया और यह एक सूत्री प्रोग्राम था “शेख हसीना को हटाओ।”
बाद में यह शांतिपूर्ण आंदोलन एक उग्र हिंसक आंदोलन में बदल गया और यह शेख हसीना के घर की तरफ चल पड़ा। इसके बाद वहां की सेना के जनरलों के समझाने के बाद शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर वहां से जाना पड़ा। उन्हें आखिरकार भारत में शरण लेनी पड़ी।
कमाल की बात यह है कि बांग्लादेश नेशनल पार्टी अमेरिका के डिप्लोमेट और एंबेसडर पीटर हर्स को एक अवतार बताती है यह एक बहुत बड़े अचंम्भे की बात है कि एक देश की पार्टी, अमेरिका के डिप्लोमेट को अपना अवतार बता रही है। ऐसा दुनिया में कहीं नहीं हुआ और इसी की अगली कड़ी देखिए कि शेख हसीना के द्वारा पद छोड़ने के बाद इंग्लैंड और अमेरिका ने उनका वीजा रद्द कर दिया और उन्हें अपने देश में “असाईलम” यानी पनाह देने से मना कर दिया।
अब बांग्लादेश के नोबल पुरस्कार विजेता यूनुस खान को नेता बनने की मांग हो रही है जो उन्होंने स्वीकार कर ली है। यह यूनुस खान अमेरिका के चहेते हैं, उनके इशारों पर काम करते हैं। यह जनाब युनूस खान हसीना सरकार को पसंद नहीं करते थे, उनकी नीतियों को पसंद नहीं करते थे। बंगलादेश में सत्ता परिवर्तन हो चुका है। नए चुनाव होने जा रहे हैं। अमेरिका ने दूर बैठकर बांग्लादेश में अपनी चहेती पार्टियों के साथ अपना काम शुरू कर दिया है।
अब वहां पर बंग बंधु, शेख मुजीबुर रहमान की मूर्तियां तोड़ी जा रही हैं। शेख हसीना का घर लूट लिया गया है। हिंदू अल्पसंख्यकों और मंदिरों पर हमले हो रहे हैं। यहां पर सबसे बड़ा सवाल उठता है कि यह सब क्यों हो रहा है? इसका क्या कारण है? बंग बंधु की मूर्तियां आखिर क्यों तोड़ी जा रही है? इनके पीछे कौन लोग हैं? यह बात सीधे-सीधे सामने आ रही है कि शेख हसीना से कुछ गलतियां हुई है जिनसे उनकी जनता और खासकर छात्र और नौजवान उनसे परेशान थे, मगर इसके साथ यह बात भी खुलकर सामने आ गई है कि यदि शेख हसीना अमेरिका की इशारों पर नाचती, उसकी बात मान लेती और उसे वह आइसलैंड दे देती तो, उसका कुछ नहीं बिगड़ा और वह वहां की सत्ता में बनी रहतीं।
यह बिल्कुल सीधे-सीधे समझ में आता है कि बांग्लादेश में हो रही है प्रिया घटनाओं के पीछे बीएनपी, जमाते इस्लामी और तमाम कट्टरपंथी ताकतें हैं। ये सब अमेरिका के इशारों पर काम कर रही हैं और इस प्रकार एक सोची समझी साजिश के तहत बंगलादेश में तख्तापलट की कार्रवाई की गई है।अमेरिका ने और अमेरिका के इशारों पर काम कर रही वहां की कट्टरपंथी पार्टियों ने बांग्लादेश की सीधी सादी और पीड़ित जनता को और खासकर वहां के अधिकांश छात्रों और नौजवानों अपने जाल में फंसा लिया है और परेशान छात्र और वहां के दूसरे प्रदर्शनकारी जाने अंजाने में अमेरिका और वहां की कट्टरपंथी ताकतों का मोहरा बन गए हैं और पूरी तरह से उनके जाल में फंस गए हैं।