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चंपई सोरेन के खेल पर लगा विराम:बीजेपी का ऑपरेशन  फेल

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चंपई जब सीएम हो गए तब उनके लड़के और उनके मीडिया सलाहकार की चलती बढ़ गई। बेटे ने तो बाप को भी पीछे छोड़ते हुए वह सब किया जो आजतक किसे ने नहीं किया था। सीएम का जो काफिला सीएम के बगैर आगे नहीं बढ़ता है उस काफिले के साथ खुद चंपई सोरेन के बेटे घूमते रहे। मस्ती मारते रहे और सत्ता की आँखों में धूल झोंकते रहे। पिछले पांच महीने में चंपई के बेटे और उनके मीडिया सलाहकार ने प्रदेश को कितना चूना लगाया है और कितने अच्छे गलत काम किये हैं अगर इसकी ही जांच करा दी जाए तो खेल बड़ा सामने आ जाएगा। क्या इस खेल की जानकारी चंपई सोरेन को नहीं थी?  बीजेपी ने चंपई के बेटे और मीडिया सलाहकार चंचल चौधरी की महत्वाकांक्षा को जानकर ही ऑपरेशन शुरू किया था और इस काम में दिल्ली के दलालों को शामिल किया गया था। लेकिन अंतिम सच तो यही है कि मौजूदा ऑपरेशन फेल कर गया है। बीजेपी का यह ऑपरेशन हालांकि पांच सालों तक चलता रहा लेकिन सफल नहीं हुआ। बीजेपी के लोग भी इस बात को मानते हैं कि इस बार का ऑपरेशन सॉलिड था। सब कुछ तय हो गया था।

अखिलेश अखिल

बीजेपी को लगा था कि इस बार उसका खेल सफल हो जाएगा। खेल भी सटीक ही था। रांची से कोलकाता तक सब मैनेज था। रांची में दर्जन भर बीजेपी के दलाल और एजेंट चंपई को आगे बढ़ा रहे थे और बंगाल में भी बीजेपी के तीन नेता चंपई को सहयोग कर रहे थे। चंपई जब दिल्ली पहुंचे तो बीजेपी के आधा दर्जन दलाल रूपी नेता उनके साथ थे और हर खबर की जानकारी बीजेपी के रिंग मास्टर तक पहुंचा रहे थे।

और बड़ी बात तो यह है कि ये सारी जानकारी चंपई के साथ चल रहे एक सूत्र ने ही बताया है। सूत्र भी दिल्ली का ही है। बीजेपी का कथित नेता है लेकिन वह असल में दलाल है। बीजेपी के भीतर भी सब लोग यह जानते हैं लेकिन हर पार्टी के भीतर कुछ दलालों और एजेंटों को पाला जाता है ताकि खेल चलता रहे। 

तीन दिनों से दिल्ली से रांची तक सियासत गरमाई हुई है। झामुमो की राजनीति ख़त्म होने की बात की जा रही है। झामुमो के साथ ही कांग्रेस के भी विधायकों को शक के दायरे में खड़ा कर दिया गया है और यह सब बीजेपी और गोदी मीडिया द्वारा तय रणनीति के मुताबिक किया गया है ताकि माहौल ऐसा हो कि लगे इसमें बीजेपी का कोई दोष नहीं। चंपई खुद ही झामुमो छोड़ने वाले थे तो बीजेपी को लेने में क्या दोष है?

लेकिन बीजेपी के भीतर जिस शिवराज सिंह और हेमंत विश्व सरमा ने यह सब खेल रचा था और चंपई और उसके लोगों को जाल में फंसाया था उसमें दिल्ली के ही रहने वाले एक एजेंट की बड़ी भूमिका मानी जाती है। जो जानकारी मिल रही है उसके मुताबिक़ दिल्ली का यह बीजेपी एजेंट भले ही बीजेपी के किसी शाखा से जुड़ा है लेकिन सच तो यह भी है कि इस एजेंट के तार देश के कई राज्यों के आईएएस और वहां की स्थानीय सरकार से जुड़े हैं। दिल्ली में इस आदमी की करोड़ों की संपत्ति मानी जाती है। 

जानकारी के मुताबिक़ चंपई के राज में लाभान्वित होने वाले करीब दर्जन भर आईएएस अधिकारी भी इस ऑपरेशन को अंजाम देने में लगे थे। कहा जा रहा है कि ये अधिकारी हेमंत सोरेन के खिलाफ नहीं हैं लेकिन चंपई के राज में इन्हें बहुत कुछ हासिल हुआ है। सूत्र बता रहे हैं कि चंपई सोरेन के पांच महीने के राज काज की जांच कर दी जाये और राजकाज से जुड़े कुछ अधिकारियों की जांच कर दी जाए तो बहुत कुछ पता चल सकता है। ये अधिकारी चंपई के साथ मिलकर आगे की प्लानिंग भी कर रहे थे। इन्हें लग रहा था कि अगर चंपई की सत्ता में फिर से वापसी हो जाती है तो चुनाव तक बहुत कुछ किया जा सकता है। काफी पैसे बनाये जा सकते हैं और नए सत्ता समीकरण को भी साधा जा सकता है। 

राजनीति ऐसी ही होती भी है। यह बेदर्द होती है और घोर अनैतिक भी। कहते हैं कि जो नैतिक लोग होते हैं उनके बस की राजनीति नहीं होती। ठगों और बेईमानों के साथ ही झूठे और मक्कारों के लिए राजनीति सदाबहार खेल है और वे अक्सर सफल भी होते हैं। लेकिन यहाँ सवाल हेमंत सोरेन के खिलाफ चंपई क्यों चले गए या चले जाने के लिए विवश किया गया यह भी तो एक कहानी हो सकती है। कई लोग अलग -अलग तरीके से इसकी चर्चा कर भी रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे। लेकिन क्या सच में केवल चंपई सोरेन ही इस खेल के लिए दोषी हैं / हरगिज नहीं। 

कांग्रेस के नेता और झारखंड की मौजूदा सरकार में मंत्री बन्ना गुप्ता के उस पत्र को गौर से पढ़िए जो पत्र गुप्ता ने प्रेस विज्ञप्ति के रूप में जारी किया और चंपई सोरेन की राजनीति को नंगा कर दिया। गुप्ता ने वह सब कहा है जो किसी भी नेता को नंगा करने के लिए काफी है। सभी जानते हैं कि झारखंड के आंदोलन को गुरु जी के साथ अंतिम रूप से अमली जामा पहनाने में चंपई सोरेन की बड़ी भूमिका रही है। लोग यह भी जानते हैं कि चंपई सोरेन की हैसियत गुरु जी के बाद दूसरे पायदान पर रही है।

झारखंड के लोग यह भी जानते हैं कि जब भी झामुमो की सरकार झारखंड में बनी है चंपई सोरेन की महत्ता रही है और वे मंत्री बनते रहे हैं। खुद हेमंत सोरेन भी चंपई दादा की मर्जी के खिलाफ आज तक कोई कदम नहीं उठाते रहे हैं। जब हेमंत जेल जा रहे थे तो हेमंत अपनी बीबी या फिर भाई को भी सीएम की कुर्सी दे सकते थे लेकिन उन्होंने यह कुर्सी अपने सबसे विश्वासपात्र नेता और गार्जियन चंपई सोरेन को दे दी। 

चंपई जब सीएम हो गए तब उनके लड़के और उनके मीडिया सलाहकार की चलती बढ़ गई। बेटे ने तो बाप को भी पीछे छोड़ते हुए वह सब किया जो आजतक किसे ने नहीं किया था। सीएम का जो काफिला सीएम के बगैर आगे नहीं बढ़ता है उस काफिले के साथ खुद चंपई सोरेन के बेटे घूमते रहे। मस्ती मारते रहे और सत्ता की आँखों में धूल झोंकते रहे। पिछले पांच महीने में चंपई के बेटे और उनके मीडिया सलाहकार ने प्रदेश को कितना चूना लगाया है और कितने अच्छे गलत काम किये हैं अगर इसकी ही जांच करा दी जाए तो खेल बड़ा सामने आ जाएगा। क्या इस खेल की जानकारी चंपई सोरेन को नहीं थी? 

सच तो ये है कि बीजेपी ने चंपई के बेटे और मीडिया सलाहकार चंचल चौधरी की महत्वाकांक्षा को जानकर ही ऑपरेशन शुरू किया था और इस काम में दिल्ली के दलालों को शामिल किया गया था। लेकिन अंतिम सच तो यही है कि मौजूदा ऑपरेशन फेल कर गया है। बीजेपी का यह ऑपरेशन हालांकि पांच सालों तक चलता रहा लेकिन सफल नहीं हुआ। बीजेपी के लोग भी इस बात को मानते हैं कि इस बार का ऑपरेशन सॉलिड था। सब कुछ तय हो गया था।

सरकार गिरने ही वाली थी। या तो चंपई सीएम बनते या फिर राष्ट्रपति शासन के जरिये बीजेपी- अपने तरीके से चुनाव करवाती और चुनाव में चंपई की राजनीति को ध्वस्त कर दिया जाता। यही वजह है कि आदिवासी के नाम पर इस खेल से अर्जुन मुंडा और बाबूलाल मरांडी को दूर ही रखा गया था। झारखंड और बीजेपी के दोनों इन बड़े आदिवासी नेताओं को यह सब पसंद नहीं था क्योंकि उन्हें यह भी लग रहा था कि बीजेपी के भीतर अगर कोई तीसरा बड़ा आदिवासी नेता चंपई के रूप में आ जाता है तो उनकी राजनीति ख़त्म हो सकती है। 

चंपई सोरेन निश्चित रूप से काफी शांत स्वभाव के नेता हैं लेकिन कोल्हान बेल्ट के वे टाइगर भी माने जाते हैं। इस कोल्हान के लोगों में उनकी पकड़ काफी है और वे लोकप्रिय भी हैं। उनका प्रभाव कई सीटों पर रहा है और सबसे बड़ी बात कि चंपई गुरु जी शिबू सोरेन के साथी रहे हैं और पूरे झारखंड के आदिवासी उन्हें बड़ी इज्जत देते रहे हैं। 

पिछले चुनाव में कोल्हान बेल्ट से बीजेपी साफ़ हो गई थी और यह सब चंपई की राजनीति का ही फल था। झामुमो से हालांकि बहुत से नेता निकल चुके हैं लेकिन चंपई का निकलना कोई मामूली बात नहीं। आज भले ही कुछ लोग कहते हों कि चंपई के जाने से झामुमो पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन सच यह नहीं है। सच तो यही है कि चंपई के जाने से झामुमो का बड़ा वोट बाकी टूट जाएगा और झामुमो की कमर टूट जाएगी। बीजेपी यही चाहती भी थी और आगे भी चाहेगी।

बीजेपी को पता है कि बिना झामुमो को ख़त्म किये उसे लम्बे समय तक सत्ता की कुर्सी हासिल नहीं हो सकती। बीजेपी को यह भी पता है कि अर्जुन मुंडा और मरांडी के साथ झारखंड के आदिवासी और अन्य लोग खड़े नहीं हैं और बाकी जातियों के नेताओं को आगे बढ़ाने से कोई लाभ नहीं मिलने वाला। रघुबर दास को बीजेपी ने आगे बढ़ाया था, सब कुछ नाश ही कर गए रघुबर। अगर मोदी और शाह चाहते तो रघुबर दास नहीं होते। ऐसे में आज उनका नाम लेने वाला तक नहीं होता। लेकिन आज भी रघुबर दास राज्यपाल बने हुए हैं। 

अब मौजूदा राजनीति तो यही है कि चंपई सोरेन ने सभी तरह की चर्चाओं पर विराम लगा दिया है। वे समझ गए हैं की उनके साथ धोखा किया गया है और वे बीजेपी के जाल में फंस गए हैं। लेकिन अब होगा भी क्या। उनके सलाहकार गायब हैं और बीजेपी के एजेंट जो उनसे लगातार बात कर रहे थे वे भी अब संपर्क से गायब हो गए हैं। जानकारी के मुताबिक़ बीजेपी के कई एजेंट इन दिनों असम में पाए गए हैं। 

खैर चंपई आगे क्या कुछ करेंगे यह तो कोई नहीं जानता। चंपई के साथ जाने वाले झामुमो और कांग्रेस के कथित विधायक आगे कौन सा खेल करेंगे या फिर कितने में बिकेंगे इसकी जानकारी अभी किसी को नहीं है लेकिन बीजेपी भी अब शांत हो गई है। उसे लग गया है कि अपने खेल से वह एक्सपोज हो गई है और देश भर में उसकी थू -थू हो रही है।

यही वजह है कि इस बार बीजेपी का कोई भी नेता इस खेल के बारे में अब कुछ भी बोलने से बच रहा है। चूंकि इस खेल के मास्टरमाइंड शिवराज सिंह चौहान थे इसलिए अब वे भी कुछ नहीं बोल रहे हैं। बता दें कि शिवराज सिंह चौहान ने यह बड़ा ऑपरेशन सिर्फ इसलिए किया था ताकि संघ प्रमुख को बताया जा सके कि वह भी किसी सरकार को गिरा सकते हैं और खरीद सकते हैं। और यह सब इसलिए किया गया था ताकि अगले पीएम के रूप में संघ उनके नाम पर भी गंभीरता से चर्चा कर सके।  

खैर, दिल्ली में चंपई सोरेन ने कहा है कि “मेरी किसी से मुलाकात नहीं हुई। मैं यहां (दिल्ली) किसी निजी काम से आया था। मैं उनसे (भाजपा नेता से) मिलना नहीं चाहता था…” भाजपा में शामिल होने की अटकलों पर उन्होंने कहा, “मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि यह सब कौन कह रहा है?…”

बता दें कि रविवार को चंपई सोरेन ने खुलासा किया कि मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, जुलाई के पहले सप्ताह के लिए निर्धारित उनके सरकारी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व ने उनकी जानकारी के बिना अचानक रद्द कर दिया था। उन्होंने कहा कि वह चुप रहे क्योंकि उन्हें सत्ता का लालच नहीं था लेकिन उनके स्वाभिमान को ठेस पहुंची थी।

लेकिन क्या सचमुच उनके स्वाभिमान को ठेस पहुंची थी या फिर बीजेपी के जाल में फंस गए थे। यह लालच का खेल था और यह खेल आगे चलकर कितना रोचक होता जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। सच यही है कि चंपई अकेले फंस गए हैं। वे एक्सपोज भी हो गए हैं और उनकी राजनीति का मर्दन भी इसी बीजेपी ने कर दिया है। अगर वे साफ़ मन से अभी भी झामुमो के साथ जाते हैं तो सब कुछ ठीक ही चलता रहेगा लेकिन उनके बेटे और सलाहकार चंचल के खेल से वे कितना बाहर निकल सकते हैं इसका जवाब तो चंपई सोरेन ही दे सकते हैं। 

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