*अजय असुर*
अगर आप सोच रहे हैं कि अडानी की आधी से ज्यादा पूँजी डूब गयी तो आप गफलत में हैं, दरअसल भारत के उन लाखों मेहनतकशों की पूँजी डूब गयी जिन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई से अडानी की फर्जी कम्पनियों के शेयर खरीद रखा था और यह सारी पूँजी अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने लूट लिया। अडानी की वास्तविक सम्पति का कोई नुकसान नहीं हुवा है। यह सब कैसे हुआ? इसे जानने से पहले जान लें कि शेयर मार्केट क्या है? और अडानी जैसे लुटेरे दुनिया के लुटेरों में कैसे सबको पछाड़कर नम्बर 3 पर पहुँच जाते हैं और फिर उन लुटेरों की लिस्ट में गिरकर 21वें नम्बर पर पहुँच जाते हैं और लगातार नीचे जा रहें हैं। क्या इससे अडानी की वास्तविक सम्पति कम हो गयी है?
शेयर बाजार एक तरह का जुआ बाजार है जिसे सरकार कानूनी जामा पहनाकर चलवाती है। इस बाजार में किसी भी तरह का उत्पादन नहीं होता और ना ही भौतिक रूप से किसी उत्पाद का खरीद-फरोख्त होता है। इस बाजार में आभासी रूप से किसी उत्पाद और कपंनी का मूल्य वर्तमान बाजार भाव से निर्धारित कर आभासी रूप से उस उत्पाद या कम्पनी के बाजार भाव पर शेयर बनाकर सरकार यह जुआघर चलवाती है। इस जुआ बाजार से अर्जित धन उत्पादन के कारखानों में भी ना के बराबर लगाया जाता है क्योंकि उस अर्जित रुपए को और ज्यादा रूपये अर्जित करने के लिये इसी जुआ बाजार में सभी पूँजी पुनः झोंक दी जाती है।
शेयर का अर्थ होता है हिस्सा। इस शेयर बाजार यानी जुआ बाजार में सूचीबद्व कंपनियों के शेयरों का शेयर ब्रोकर यानी दलाल की मदद से खरीदा-बेचा जाता है। सूचीबद्व कंपनियां पूँजी उगाहने के लिये शेयर जारी करती हैं।
हिंडनबर्ग रिसर्च कम्पनी की स्थापना नेथननेट एंडरसन ने 2017 में की थी। नेथननेट एंडरसन एक फाईनेंशियल रिसर्चर हैं और इस कम्पनी का काम फारेंसिक फाइनेंशियल रिसर्च है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार अभी तक हिंडनबर्ग रिसर्च कम्पनी ने 2020 से ऐसे ही 30 कारपोरेट कंपनियों पर आरोप लगाया और आरोप लगने के बाद उन कंपनियों के शेयर खूब गिरे। जिससे हिंडनबर्ग रिसर्च ने शॉर्ट सेलिंग कर पैसे बनाये। यानी यह हिंडनबर्ग रिसर्च कम्पनी दूसरे कंपनियों की पोल खोलकर उसके बर्बादी पर आबाद होती है।
हिंडनबर्ग रिसर्च कम्पनी शॉर्ट सेलिंग कम्पनी है। (शेयर बाजार में, एक छोटी सी अवधि में लाभ कमाने के लिए शेयरों की शॉर्ट सेलिंग की जाती है। आम तौर पर शेयर बाजार में इन्वेस्टमेंट दाम बढ़ने पर मुनाफे के लिये किया जाता है, पर शार्ट सेलिंग में दाम गिरने पर इनवेस्टमेंट किया जाता है। शॉर्ट सेलिंग में, कारोबारी ब्रोकरेज की मदद से शेयर मालिक से शेयर उधार लेता है और कीमतें गिरने की उम्मीद के साथ बाजार मूल्य पर बेचता है। जब कीमतों में गिरावट होती है, शॉर्ट विक्रेता शेयर खरीद लेता है और लाभ बुक करता है।
इसे यूँ समझिए- कोई शॉर्ट सेलर शेयर बेचने के लिए बैठा है, मगर उसके पास शेयर है ही नहीं। तब वह किसी ब्रोकरेज फर्म से किसी कम्पनी के शेयर बेचने के लिए इस करार पर ले लेता है कि मार्केट क्लोज होने से पहले या इतने दिनों में हम आपका शेयर मार्केट रेट से खरीदेंगे, हम तय किये हुवे मुनाफे की रकम देंगे। और वह उस तय समय में उस कम्पनी के शेयर का रेट गिरने का इन्तजार करता है। ज्यों ही रेट गिरता है उसी वक्त उस ब्रोकरेज फर्म से उसी कम्पनी के उतने शेयर खरीद लेता है, जितना वह करार कर चुका था। कभी-कभी शेयर का रेट गिरने की बजाय चढ़ जाता है तब उसे मँहगे में खरीदना पड़ता है, तय मुनाफा भी देना पड़ता है। तब इस करार में उसे घाटा भी हो जाता है।
इसे एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिये जब शार्ट सेलर शेयर उधार लेता है ब्रोकरेज फर्म से, उस वक्त उस शेयर की कीमत 100 रुपए है, और शार्ट सेलर कहता है कि मार्केट बन्द होने से पहले या इतने दिनों में आपको आपके शेयर की कीमत और ऊपर से मुनाफे का 5 रुपए दे दूंगा। मान लीजिये जुआ बाजार बन्द होते-होते या उतने दिन में जितने दिन में करार होता है खरीदने का, उस 100 रुपए वाले शेयर की कीमत गिरकर 10 रुपए हो जाती है। ठीक इसी वक्त वह शार्ट सेलर 10 रूपये में करार किये हुवे शेयर खरीद लेता है। ये शॉर्ट सेलर अब उस ब्रोकरेज कम्पनी को 100 की जगह सिर्फ 10 रुपए वापस करेगा और मुनाफे वाला 5 रुपए अलग से दे देगा, क्योंकि जब कीमत 100 रूपये था तब खरीदा नहीं था, सिर्फ खरीदने का करार किया था। उस शॉर्ट सेलर कम्पनी ने एक शेयर से शुद्ध 85 रुपए कमाए। कहीँ उस कम्पनी के शेयर का रेट बढ़कर 200 हो गया और शाम तक रेट नीचे नहीं आया तो शार्ट सेलर को उस कम्पनी का शेयर 200 में खरीदना पड़ेगा, ऊपर से 5 रूपये मुनाफा भी देना पड़ेगा। तब उसका 105 रूपये घाटा हो जाएगा। अब आप स्वंय देखें कि यह जुआं नहीं तो क्या है?
एनएसडीएल और सीडीएसएल के आंकड़ो के अनुसार मार्च 2020 तक भारत में कुल 4.09 करोड़ डीमैट खाते (एक ऐसा खाता जिसके जरिए सिर्फ इस जुआ बाजार में आप अपनी गाढ़ी कमाई को लगा सकते हैं।) थे। अगस्त 2022 तक 4 करोड़ से बढ़कर 10.05 करोड़ डीमैट खाते हो गए हैं। 2 साल में 2 गुने से ज्यादा बढ़े डीमैट खाते बताते हैं कि मन्दी का संकट ज्यों-ज्यों गहराया है त्यों-त्यों जनता ने पैसा बनाने के लिये इस जुआ बाजार की तरफ रुख किया है। कम पैसे में ज्यादा पैसा जुआ बाजार से ही बनाया जा सकता है, पर इस जुआ में लगाने वाले लोगों को ये अंदाजा नहीं कि इसमें एक आबाद होता है तो कई बर्बाद। इस जुआ बाजार में सिर्फ कारपोरेट ही आबाद होता है और आम जनता बर्बाद।
हिंडनबर्ग रिसर्च कम्पनी ने अडानी के सभी कंपनियों पर 2 साल से ज्यादा रिसर्च कर 24 जनवरी 2023 को 106 पेज की रिपोर्ट सार्वजनिक कर अडानी ग्रुप पर इल्जाम लगाती है “यह कारपोरेट इतिहास का सबसे बड़ा फ्राड है।” यह रिपोर्ट अपनी रणनीति के तहत ऐसे वक्त पर हिंडनबर्ग रिसर्च कम्पनी सार्वजनिक करती है जब अडानी ग्रुप शेयर बाजार में पब्लिक से पैसा बनाने के लिये अडानी एंटरप्राइजेज का FPO (Follow on Public Offer) लाने वाली होती है। यह FPO भारत का अब तक का सबसे बड़ा 20000 करोड़ का FPO अडानी समूह ने लांच किया था। अर्थात 20 हजार करोड़ जनता से लेकर अपना कर्जा भरती या अपने मुनाफे के लिये कोई निवेश करती।
FPO (फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके जरिए भारतीय बाजारों में पहले से सूचीबद्ध कंपनी मौजूदा शेयरधारकों या निवेशकों को नए शेयर जारी करती है। मतलब जो कंपनी पहले से शेयर बाजार में लिस्टेड है, वह निवेशकों के लिए नए शेयर ऑफर करती है। ये बाजार में मौजूद शेयरों से अलग होते हैं। एफपीओ किसी लिस्टिड पब्लिक कंपनी (शेयर बाजार में सूचीबद्व कम्पनी) की ओर से तभी जारी किया जाता है, जब उसे अपनी भविष्य की योजनाओं को पूरा करने के लिए पैसे की आवश्यकता होती है। कई बार अपने कर्ज को कम करने के लिए और बाजार में शेयर की लिक्विडिटी बढ़ाने के लिए कंपनियां FPO लाती हैं। FPO में कोई भी आम निवेशक किसी भी ब्रोकिंग प्लेटफॉर्म पर जाकर बोली लगा सकता है। यानी कंपनियों को जब भी अतरिक्त पूँजी की आवश्यकता होती है तो वह अपनी कम्पनी का FPO या IPO जारी करती है।
किसी लिस्टेड निजी कंपनी के द्वारा बाजार में जब फंड जुटाया जाता है, उसे IPO (इनीशियल पब्लिक आफर) कहा जाता है। वहीं, लिस्टेड पब्लिक कंपनी जब भी पूँजी जुटाती है, तो उसे FPO कहा जाता है। आम तौर पर IPO/FPO की पूंजी, प्रोमोटर अपने शेअर थोक बिक्री के लिए प्रयोग करता है। शेअर बाजार में शेयर की खरीद-फरोख्त का कंपनी के कारोबार से प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता। उसका काम बस जो उस शेअर को खरीदे उसका नाम कम्पनी के रजिस्टर में दर्ज करना होता है।
27 जनवरी 2023 को अडानी समूह की एक कम्पनी अडानी एंटरप्राइजेज ने बाजार में पब्लिक से 20 हजार करोड़ जुटाने के लिए इसे जारी किया था। हिंडनबर्ग रिसर्च कम्पनी के इस रिपोर्ट के जारी करने के बाद अडानी ग्रुप के शेयर तेजी से गिरने लगे और अडानी एंटरप्राइजेज द्वारा लाए गए FPO का भी हाल बुरा हो गया, वह भी बहुत तेजी से गिर गया क्योंकि पब्लिक का भरोसा अडानी समूह से डगमगाने लगा। जिससे अडानी समूह ने इस FPO को वापस लेने का फैसला किया। कंपनी ने कहा है कि FPO में निवेशकों द्वारा लगाया गया पैसा उन्हें वापस लौटा दिया जाएगा। अब कैसे और कब लौटाएंगे, देखना यह दिलचस्प होगा। सुब्रत राय सहारा आज तक निवेशकों के पैसे लौटा नहीं पाया है। इसी बहाने अडानी के कम्पनी के सारे लोन माफ भी कर दिये जायेंगे, बस यह तमाशा देखते रहिये।
27 जनवरी को सबसे पहले अडानी समूह हिंडनबर्ग रिसर्च कम्पनी के द्वारा लगाए गये इल्जाम पर जवाब देते हुए कहता है यह हिंडनबर्ग रिसर्च कम्पनी छोटी सी कम्पनी है। इसके द्वारा लगाए गए इल्जाम बेबुनियाद हैं और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। पर इसके बाद अडानी समूह इस जुआ बाजार में औंधे मुँह गिर पड़ता है जिससे अडानी समूह मजबूर होकर 29 जनवरी को हिंडनबर्ग रिसर्च कम्पनी के 106 पेज की रिपोर्ट के काउंटर जवाब में 413 पेज का जवाब देती है जिसमें हिंडनबर्ग रिसर्च कम्पनी द्वारा लगाए गये 88 सवालों के इल्जाम का जवाब देने के बजाए लफ्फाजी करती है। और राष्ट्रवाद का चोला ओढ़कर कहती है कि यह अडानी पर नहीं भारत पर अटैक है।
हिंडनबर्ग रिसर्च कम्पनी अपने चौथे प्वाइंट में कहती है “आप हमारे इस रिपोर्ट को इग्नोर भी कर दो जो हमने इस रिपोर्ट में दिया है तो अडानी ग्रुप के साथ की बाकी कंपनियों के फेस वैल्यू को देखिये तो भी ये 85% ओवर वैल्यूड है।” ओवरवैल्यूड स्टॉक तब होता है जब शेयर का आंतरिक मूल्य से अधिक मूल्य पर खरीद-फरोख्त किया जाता है। ये कंपनियां अपने शेयर की कीमत से 85% अधिक कीमत पर ट्रेड कर रहीं हैं। यानी 100 रुपए कीमत का शेयर 185 रुपए में बेच रही है।
हिंडनबर्ग रिसर्च कम्पनी अपने इस 106 पेज के इस रिपोर्ट में गौतम अडानी के छोटे भाई राजेश अडानी पर टैक्स फ्राड का इल्जाम लगाया है जिसमें वह कहती कि राजेश अडानी टैक्स फ्राड में 1999 और 2000 में दो बार जेल भी जा चुके हैं और उसके बाद राजेश अडानी को अडानी ग्रुप में मैनेजिंग डायरेक्टर प्रमोट भी किया।
हिंडनबर्ग रिसर्च कम्पनी गौतम अडानी के बहनोई समीर बोरा पर हीरा घोटाले का आरोप लगाती है और बताती है कि इसके बावजूद गौतम अडानी ने अपने बहनोई समीर बोरा को आस्ट्रेलिया डिवीजन के एक्सक्यूटिव डायरेक्टर प्रमोट भी किया।
इतना ही नहीं हिंडनबर्ग रिसर्च कम्पनी गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी पर भी आरोप लगाती है कि अपने लोगों के साथ मिलकर कई देशों में विशेषकर वहाँ जिस देश में कारपोरेट टैक्स पर पूरी तरह छूट दी जाती है, वहाँ शेल कंपनियां बनाकर सिर्फ और सिर्फ अडानी समूह के कंपनियों के शेयर खरीदे। हिंडनबर्ग रिसर्च अलग-अलग देशों में 38 शेल कंपनियों (फर्जी कम्पनी, जिसका कागज में तो वजूद होता है पर हकीकत में कोई वजूद नहीं) को आइडेंटीफाई किया है, जिसे विनोद अडानी और उनके खास लोगों द्वारा कंट्रोल किया जाता है। ये शेल कंपनियां बाजार में पब्लिक वाले शेयर की कई गुना कीमत (हजार-हजार गुना तक) बढ़ाकर बाकी शेयरों की कीमत भी उतने ही गुना बढ़ा देती हैं। ऐसे ही शेल कंपनियां पनामा पेपर कांड में भी उजागर हुई थी।
इन बढ़ते हुए शेयर को बैंकों को दिखाकर ये कंपनियां शेयर गिरवी रख लोन लेते हैं और इस तरह शेयर मार्गेज्ड यानी शेयर को बन्धक रखकर लोन लेने की प्रकिया को प्रमोटर शेयर प्लेज्ड कहते हैं। बाजार से पैसा उठाना या बैंकों से कर्ज लेना दोनों ही स्थितियों में जनता के ही धन का इस्तेमाल होता है और जब भी कंपनियां अडानी समूह की तरह डूबती हैं तो उनकी वास्तविक सम्पति का कोई नुकसान नहीं। हर हाल में जनता का ही नुकसान होता है, जो मुनाफे के चक्कर में शेयर का खरीद-फरोख्त करती है।
इन शेल कंपनियों के जरिए ये अडानी समूह जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने शेयरों की कीमत वास्तविक कीमत से हजारों गुना बढ़ा देती है। कंपनियों में मुख्यतः शेयर के दो हिस्से होते हैं एक प्रमोटर का दूसरा बाजार का होता है। इस बाजार के हिस्से में म्यूचुअल फंड, पब्लिक के शेयर, विदेशी संस्थागत निवेशकों के शेयर… होते हैं। इसमें सबसा बड़ा हिस्सा कम्पनी के प्रमोटर का होता है। इसको अडानी के इस फ्राड को समझने का प्रयास करते हैं। अडानी समूह के सभी कंपनियों में प्रमोटर गौतम अडानी के परिवार के ही लोग हैं और अडानी समूह के कंपनियों में अडानी एंटरप्राइजेज के प्रमोटर का शेयर 72.63% बाकी 27.37% शेयर में सभी। इसी तरह अडानी ग्रीन एनर्जी में प्रमोटर शेयर 60.75%, अडानी पावर में प्रमोटर शेयर 74.97%, अडानी टोटल गैस में प्रमोटर शेयर 74.80%, अडानी ट्रांसमिशन में प्रमोटर शेयर 74.19%, अडानी पोर्ट्स में प्रमोटर शेयर 65.13%, अंबुजा सीमेंट में प्रमोटर शेयर 63.22%, एसीसी में प्रमोटर शेयर 56.69%, अडानी विल्मर में प्रमोटर शेयर 87.94% है।
अडानी समूह के अडानी एंटरप्राइजेज के बाजार के हिस्से का शेयर 27.37% है। इसी 27.37% शेयर में विदेशी संस्थागत निवेशकों के 15.39% शेयर हैं। इन्हीं शेयर को शेल कंपनियों द्वारा ऊंचे दाम पर खरीदकर शेयर की कीमत गुब्बारे में जैसे हवा भरकर फुलाकर हैं वैसे ही ये शेल कंपनियां द्वारा हवा भरकर शेयरों के दाम बढ़ा दिया जाता है। इससे उस कम्पनी के शेयर के दाम तेजी से बढ़ने लगते हैं। अडानी ग्रुप के कंपनियों के शेयर बढ़ाने के लिये शेल कंपनियों के अलावा सरकार के दबाव से एल आई सी ने 74000 करोड़ और एस बी आई ने 10291.66 करोड़ रुपए इनवेस्ट किया। एस बी आई समेत अलग-अलग बैंकों ने अडानी समूह के कंपनियों को जो लोन दिया है वो अलग से है। जर्मनी की इंटरनेशनल न्यूज एजंसी डी डब्ल्यू के अनुसार “31 मार्च 2022 को खत्म हुए वित्त वर्ष में अडानी ग्रुप पर कर्ज 40 प्रतिशत बढ़कर 2.2 खरब रुपये हो गया था। रेफिनिटिव ग्रुप द्वारा जारी डेटा दिखाता है कि अडानी ग्रुप की सात सूचीबद्ध कंपनियों पर कर्ज उनके इक्विटी से ज्यादा है। अडानी ग्रीन एनर्जी पर तो इक्विटी से दो हजार प्रतिशत ज्यादा कर्ज है।”
मार्च 2020 में अडानी समूह के अडानी इंटरप्राइज के एक शेयर की कीमत 130 रुपए था और नवम्बर 2022 में अडानी इंटरप्राइज के एक शेयर की बढ़कर कीमत 4019 हो गयी और ऐसे समय कीमत बढ़ रही थी जब सब कुछ बन्द था जिसकी वजह से मन्दी का दौर चल रहा था। आम आदमी दो वक्त की रोटी तलाश रहा था यहाँ तक की भारत सरकार की इनकम भी नहीं हो रही थी। ऐसे समय अडानी समूह के अडानी एंटरप्राइज का मुनाफा वार्षिक 911.8% के अनुपात से बढ़ कर रहा था। इतना बड़ा मुनाफा तो सिर्फ जुएँ के कारोबार में ही हो सकता है।
विदेशी कंपनियों द्वारा अडानी समूह के शेयरों में इंटरस्टेट दिखाने पर और सरकारी संस्था एल आई सी और एस बी आई जैसी संस्था जब अडानी समूह के शेयर भारी मात्रा में खरीदती है तो शेयर की डिमांड बढ़ जाती है। इससे जो आम निवेशक हैं वो बढ़ते हुए शेयर से प्रभावित होते हैं और सोचते हैं कि इतनी बड़ी-बड़ी सरकारी कंपनियां इनमें इनवेस्ट कर रहीं हैं तो निश्चित ही ये डूबेगी नहीं। पर उनको इसका आभास नहीं कि जुआं तो जुआं है कोई ना कोई तो डूबेगा ही। इसी कारण जब अडानी समूह के शेयर धाराशाही होने लगे तो LIC और SBI को भी काफी ज्यादा घाटा सहना पड़ा।
अडानी समूह के बढ़ते हुवे शेयरों में पब्लिक जल्द ही मुनाफे के चक्कर में बढ़ते हुए कीमत पर शेयरों की खरीद-फरोख्त शुरू कर देते हैं। जब शेयर की कीमत बढ़ती हैं तो सारे शेयर की कीमत समान रूप से बढ़ जाती है। यानी प्रमोटरों के शेयर की कीमत भी बढ़ जाती है। जब कम्पनी के शेयर की कीमत बढ़ती है तो कम्पनी की भी कीमत इस शेयर बाजार यानी जुआ बाजार में बढ़ती है और उस कम्पनी के प्रमोटरों की भी। इस तरह से दुनिया के अमीरों यानी लुटेरों की लिस्ट तैयार होती है। अडानी के भौतिक सम्पति की एक्चुअल कीमत कुछ और है और फुलाई हुई आभासी कीमत कुछ और।
अन्तराष्ट्रीय और बहुचर्चित अमेरिकन पर्त्रिका फोर्ब्स ने भी इल्जाम लगाया है कि अडानी ने खुद से ही अपने शेयर खरीदकर अपने शेयर की कीमत बढ़ाई है। यह खेल अकेले अडानी ने नहीं खेला है सभी कारपोरेट खेलते हैं। चाहें अम्बानी हों या दुनिया के सबसे अमीर यानी लुटेरा शख्स एलन मस्क हों या सहारा के मालिक सुब्रत राय हों या रिलायंस के मालिक अनिल अम्बानी हों या कोई और सभी कारपोरट यही खेल खेलते हैं। बस जिसका भांडा अडानी की तरह फूट जाये वो दोषी बाकी पाक साफ।
इस पूंजीवादी व्यवस्था के दौर में पूंजीवादी शोषण के जरिए मुट्ठीभर अमीरों के हाथ में इतना धन इकट्ठा हो गया है कि भारत में जितनी भी संपत्ति अस्तित्व में आई, उसका 40 फीसदी देश के सबसे अमीर 1 फीसदी के हाथ में गया। वहीं, 50 फीसदी जनता के हाथ में महज तीन फीसदी संपत्ति ही आई। अधिकांश तो पेट भरने के लिये दो वक्त की रोटी तक के लिये मोहताज हैं। 10% अमीर ही उपभोग बढाने की हालत में हैं, बाकी तो न्यूनतम जरूरियात पूरा करने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। भारत के केवल 21 सबसे बड़े अरबपतियों के पास देश के 70 करोड़ लोगों की सम्पत्ति से भी ज्यादा दौलत है, यानी मोटे तौर देश की आधी दौलत महज 21 अरबपतियों के पास है।
दुनिया की जानी-मानी संस्था ऑक्सफैम ने 2022 में अपने रिपोर्ट में कहा है “2020 में कोरोना महामारी शुरू होने के बाद से नवंबर 2021 तक जहां अधिकतर भारतीयों को नौकरी संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा और अपनी बचत को बचाने के लिए जूझना पड़ा, वहीं पिछले साल नवंबर तक भारतीय अरबपतियों की संपत्ति में 121 फीसदी का इजाफा हुआ। कोरोना महामारी के इस दौर में भी भारत के अरबपतियों की दौलत में प्रतिदिन 3 हजार 608 करोड़ रुपये का इजाफा हुआ है।” ऑक्सफैम की रिपोर्ट यह भी कहती है “वर्ष 2021 में भारत के 5 फीसदी लोगों का देश की कुल संपत्ति में से 62 फीसदी हिस्से पर कब्जा था। वहीं, देश की निचली 50 फीसदी आबादी देश की सिर्फ 3 फीसदी संपत्ति पर काबिज थी।… भारत के 100 सबसे अमीर लोगों की संपत्ति 660 अरब डॉलर (करीब 54 लाख 12 हजार करोड़ रुपये) के पार जा चुकी है। इससे भारत का पूरा बजट 18 महीने तक चलाया जा सकता है। (भारत सरकार का पिछला बजट 39 लाख 44 हजार 909 करोड़ का था)।”
ऑक्सफैम रिपोर्ट के अनुसार भारत में एक अमीर के पास औसतन पांच मकान हैं। वहीं तकरीबन 20 करोड़ लोग सड़क पर या फिर टूटी-फूटी झोपड़ी में गुजर-बसर करने के लिये मजबूर हैं। ‘ऑक्सफैम’ ही नहीं, रियल एस्टेट कंपनी नाइटफ्रेंक की ‘वेल्थ रिपोर्ट 2023 एटीट्यूडसर्वे : इंडिया फाइंडिंग्स’ के मुताबिक वर्ष 2022 में 35 फीसदी भारतीय धनाढ्यों की सम्पत्ति 10 फीसदी तक बढ़ी है।
इस जुआ बाजार के उथल-पथल से अडानी समूह के कंपनियों के शेयर की बुरी तरह से कीमत गिर गयी और गौतम अडानी अमीरों की सूची से 3 नम्बर से खिसककर 25 नम्बर से भी नीचे आ गये हैं। इससे न अभी तक गौतम अडानी की वास्तविक संपत्ति पर कोई फर्क पड़ा है, न ही पूंजीवादी शोषण पर। यह वास्तविक नहीं बल्कि जुआ बाजार की एक संख्या है। यह ऐसे ही है जैसे आप मान लें कि मेरे घर की कीमत … इतनी है। पर वह तो तब पता चलेगा जब आप घर बेचेंगे। इन सबसे गौतम अडानी की वास्तविक सम्पति पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। आप अनिल अम्बानी को देख लें, दिवालिया होने के बावजूद भी करोड़ों की गाड़ी से घूमते हैं, अय्याशी में कोई कमी नहीं, ठाठ-बाट से रह रहे हैं। ऐसे ही सुब्रत राय सहारा को देख लें। इस बहाने गौतम अडानी के लोन को माफ कर दिया जायेगा। बैंक की सारी देन दारिया भी खत्म। हर हाल में गौतम अडानी की बल्ले-बल्ले। बस गौतम अडानी को मलाल इसी बात का रहेगा कि इस जुआ बाजार के संख्या में अडानी पीछे हो गए।
गौतम अडानी यदि इस जुआ बाजार में पूरी तरह से बर्बाद भी हो जाते हैं मुकेश अम्बानी की तरह। तो भी वर्तमान समय में यह जुआ कारोबार डूबने या खत्म होने वाला नहीं। यंही सबसे बड़ा उदाहरण एक दूसरे के प्रतिद्वंदी जो एक दुसरे के खाने की जुगत भिड़ाते रहते हैं वो सब मिलकर अडानी को बचाने की कोशिश की है। रिलायंस के मालिक अनिल अम्बानी, जिंदल स्टील के मालिक सज्जन जिंदल, एयरटेल के मालिक सुनील मित्तल, टोरेंट फार्मा के मालिक सुधीर मेहता, जायडस फार्मा के मालिक पंकज पटेल ने अडानी को डूबने से बचाने के लिये अडानी समूह के शेयरों में पैसे लगाए।
इससे साफ नजर आता है कि अगर एक पूंजीपति का संकट व्यवस्था को खतरे में डाले तो एक दूसरे को खा जाने की नजर से देखने वाले पूंजीपति उस एक को बचाने के लिए भी आगे आते हैं। ऐसे ही 2008 में आईसीआईसीआई बैंक का उदाहरण हमारे सामने है। ये शोषक वर्ग भले ही गला-काट प्रतियोगिता करते हैं पर पूँजीवाद पर संकट आने पर अपने वर्ग के प्रति पूरी शिद्दत के साथ ईमानदारी से जुट जाते हैं इस पूँजीवाद को बचाने के लिये। इसके विपरीत शोषित वर्ग अपने वर्ग चेतना के सवाल को उतनी गंभीरता से नहीं लेता है। हमारी शोषित उत्पीड़ित वर्ग की मुक्ति तब तक सम्भव नहीं जब तक हम सब शोषित/उत्पीड़ित वर्ग के अन्दर वर्ग चेतना नहीं जागेगी। साथियों हम सबका दायित्व बनता है कि शोषित/उत्पीड़ित जनता के बीच जाकर वर्ग चेतना को विकसित कर इस सड़ी हुई बदबूदार पूंजीवादी व्यवस्था को ढहाकर समाजवादी व्यवस्था के निर्माण में अपना योगदान दें।
*अजय असुर*
*जनवादी किसान सभा*
*यह लेख पिछले साल मासिक पत्रिका नया अभियान के फरवरी 23 अंक से लिया गया है।*