अग्नि आलोक
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4 कविताएं (कैसी है ये आग? / कैसे कह दे आजाद हैं हम / आख़िर ऐसा क्यों होता है? / बहुत हुआ अब मातम मनाना)

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कैसी है ये आग?

अंशु कुमारी
गोरियारा, मुजफ्फरपुर

कैसी है समाज में ये आग भड़की सी?
जला गई अरमान कई मासूमों की,
घर की बेटी बहुओं को जला चुका,
बच्चों की बलि चढ़ा रहा हिंसा की,
घर में सहती रही ये हर ज़ुल्म सितम,
बाहर भी कहां थी ये सुरक्षित,
जब लोगों के ताने सुन सुन कर,
जब इस अबला ने दिया देह त्याग,
तब बढ़ी समाज में हिंसा की आग,
जो सहती थी हिंसा उसे हुआ ये ज्ञात,
अगर नहीं बुझेगी हिंसा की आग,
तो करना होगा औरत को ही त्याग,
महसूस कर इस हिंसात्मक आग को
उठ गई कुछ अबला अकेली मैदान में,
और दिया एक संदेश पूरे समाज में,
नया सवेरा, नई किरण का समय आएगा,
नई उमंग और एक नया समाज बनेगा

कैसे कह दे आजाद हैं हम

भावना
कक्षा-12
छत्यानी,गरुड़
बागेश्वर,उत्तराखंड

कैसे कह दे आजाद हैं हम,
कैसे कह दे सुरक्षित हैं हम,
कैसे कहें बाहर जाते हुए डर लगता है,
कैसे कहें कि अब सब चंगा है,
अब तो घर के अंदर भी डर लगता है,
कैसे कह दे सुरक्षा में भी डर लगता है,
कैसे कहूं आजाद देश की नागरिक हूं मैं,
कैसे सुनाऊं अपनी जिंदगी की दास्तां मैं,
कैसे कहूं समाज में सुरक्षित हूं मैं।।

आख़िर ऐसा क्यों होता है?

योगिता
कक्षा-12,
गरुड़, बागेश्वर
उत्तराखंड

आख़िर ऐसा क्यों होता है?
हर बार ताना हमें सुनना पड़ता है ,
कोई गलती ना होने पर भी,
शिकार हमें ही बनाया जाता है,
नज़र उसकी गंदी है और,
रोका हमें ही क्यों जाता है?
घर के अंदर हो के या बाहर हो,
हर इल्जाम हम पर लगाया जाता है,
चुप रह कर मैं थक गई हूं,
अब और घुटा मुझ से नहीं जाता है,
आखिर ऐसा क्यों होता है?
हर बार ताना हमें ही सुनाया जाता है।।

बहुत हुआ अब मातम मनाना

पार्वती
कपकोट, बागेश्वर
उत्तराखंड

बहुत हुआ मोमबत्ती जलाना,
बहुत हुआ अब मातम मनाना,
देकर दिखाओ अब न्याय यहां,
बनाओ इंसाफ का राज यहां,
इतना आसान ना था सब भूल पाना,
अब नहीं कर सकते समय की बर्बादी,
और कितना देगी बेटी अपनी कुर्बानी?
कब तक सहेंगे आख़िर ये सब?
क्यों नहीं होते क़ानून और सख्त?
अब नहीं चाहिए दो मिनट का मौन,
बता दो यहां इंसानियत नहीं है गौण,
सुना है क़ानून के हाथ होते बड़े लंबे हैं,
फिर क्यों ये लड़खड़ाते नज़र आ रहे हैं?
क्यों मौन आज सब नज़र आ रहें हैं?
आख़िर कब होगा नारी का भी राज?
ये ही है पूरी दुनिया का प्रश्न आज॥

चरखा फीचर

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