ऐयाश मुर्दो सा जीवन जीते हो
न हंसते हो न रोते हो।
मूक जीवन की सत्ता पर
गुंगे बन तुम
बहरों की तरह फिरते हो।
बेईमानी की परत पर
सदाचार की तावीज़ पहन कर
खुद को खुदा घोषित करते हो।
गणतंत्र की तिरछी राह पर
अपनी अधूरी मूर्त लेकर
जगह- जगह तुम फिसलते हो।
तट की खोज में
ज़माने की पगडंडी पर चल
भविष्य के भूत से डरते हो ।
ऐयाश मुर्दो सा जीवन जीते हो
न हंसते हो न रोते हो।
डॉ.राजीव डोगरा
(युवा कवि व लेखक)
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