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वामपंथी और संयुक्त मोर्चा के महान शिल्पकार थे सीताराम येचुरी 

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मुनेश त्यागी

मजदूर आ किसान आ वतन के नौजवान आ
तुझे सितम की सरहदों के पर अब निकालना है,
यह राह पुरखतर है पर तुझे इसी पर चलना है
जमाने को बदलना है जमाने को बदलना है।

कामरेड सीताराम येचूरी ने कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी और वामपंथी मोर्चे को नई ऊंचाइयां प्रदान की हैं। राज्यसभा के कार्यकाल में उन्होंने जनहित के मुद्दों को मजबूती से उठाया था जिस वजह से उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद के खिताब से नवाजा गया था। वह कम्युनिस्ट आंदोलन के महान नेता और प्रसिद्ध मार्क्सवादी विचारक थे। वे एक बहुत बढ़िया वक्ता, बहुत उम्दा लेखक और किसानों मजदूरों की मुक्ति के अभियान के मसीहा थे।

     सीताराम येचूरी तमिलनाडु से संबंध रखते थे। उनके माता और पिता सरकारी नौकर थे। वह बचपन से ही मेधावी छात्र रहे थे। वह बीए और एम ए अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी से दिल्ली विश्वविद्यालय से पास हुए थे। वह जेएनयू के छात्र जीवन में दो सालों में तीन बार अध्यक्ष रहे थे। वहीं पर उन्होंने मार्क्सवाद लेनिनवाद की प्रथम शिक्षा हासिल की थी और उसके बाद में पूरी जिंदगी उच्च कोटि के कम्युनिस्ट और मार्क्सवादी नेता बने रहे।

     अपनी राजनीतिक गतिविधियों के कारण हुए उन्हें आपातकाल में गिरफ्तार करके जेल भेजा गया था। वह एक प्रतिबद्ध मार्क्सवादी चिंतक और संघर्ष कर्ता थे। अपने इसी संघर्ष की बदौलत उन्हें 1985 में पार्टी की केंद्रीय कमेटी में चुना गया था। वे बहुत कम उम्र में 1992 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पुलिस ब्यूरो के सदस्य चुने गए। 

    2015 में 11वीं पार्टी कांग्रेस में उन्हें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का महासचिव चुना गया था। उन्होंने पार्टी के अंतरराष्ट्रीय विभाग में बढ़ चढ़कर काम किया था और समाजवादी देशों के साथ संबंधों को मजबूत किया था और साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन के साथ एकजुटता क़ायम की थी। सीताराम येचुरी पार्टी के साप्ताहिक अखबार पीपल डेमोक्रेसी के लगभग दो दशकों तक संपादक रहे थे।

    वे एक बहुत बड़े लेखक थे। उन्होंने कई पुस्तकें लिखी थी जैसे 1.हिंदू राष्ट्र क्या है? 2. सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता।, 3.घृणा की राजनीति।सीताराम येचूरी बहुभाषी थे। वे अनेक भाषाएं जानते थे और बोलते थे। तामिल, तेलुगू, मलयालम, बंगाली, हिंदी और अंग्रेजी पर उनका विशेष अधिकार था। 

    वे जनवादी, प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष और विपक्षी दलों के मुख्य स्तंभकार थे। वे संयुक्त मोर्चे के सबसे बड़े शिल्पकार थे और यह महारथ उन्होंने कामरेड ईएमएस नंबूदरीपाद, एम बासव पुनैइय्या, पी सुंदरइयां, ज्योति बसु और हरिकिशन सिंह सुरजीत के साथ काम करते हुए हासिल की थी। वे बहुत बड़े मिलनसार स्वभाव के आदमी थे। उनके राजनीतिक और निजी क्षेत्र में अनेक मित्र थे। पत्रकारिता जगत में उनके बहुत सारे दोस्त थे।

     संयुक्त मोर्चे को मजबूत बनाने के लिए उन्होंने बहुत सारे विपक्षी और धर्मनिरपेक्ष नेताओं से नाता जोड़ रखा था जिन में वीपी सिंह, सोनिया गांधी,  मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, राजीव गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल आदि विपक्षी और धर्मनिरपेक्ष नेताओं से वे समय-समय पर विचार विमर्श करते रहते थे। 1991 से लेकर 2014 तक पहले हरिकिशन सिंह सुरजीत के साथ और बाद में स्वयं, उन्होंने भाजपा जैसी सांप्रदायिक ताकतों को संयुक्त मोर्चा के माध्यम से केंद्रीय सत्ता में आने से बाहर रखने में कामयाबी हासिल की थी।

      2024 में इंडिया गठबंधन के वे मुख्य सलाहकार और प्रमुख निर्माताओं में से एक थे जिसमें जनकल्याणकारी मुद्दों को उठाने में वह सबसे आगे रहते थे। अपनी इन्हीं नीतियों के कारण हुए 2024 के चुनाव में एनडीए की ताकत को पीछे धकेलने में कामयाब हुए थे। इसी मोर्चे के माध्यम से उन्होंने 10 साल से गुमसुम रही जनता को बोलना और आवाज उठाना सिखाया, उसे वाणी प्रदान की। सीताराम येचूरी के वर्तमान नाजुक समय में उनके असामयिक निधन से संयुक्त मोर्चे और वामपंथी मोर्चे के संयुक्त अभियान को बहुत बड़ा धक्का लगेगा। उनका निधन मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और वामपंथी मोर्चे के लिए एक बहुत बड़ा आघात और झटका है।

      वे समस्त जनतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, प्रगतिशील जनवादी, सामाजिक न्याय और समाजवादी ताकतों को हमेशा याद आते रहेंगे। सीताराम येचुरी एक प्रतिबध्द कम्युनिस्ट और मार्क्सवादी थे। उनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है जैसे कि उनकी सबसे बड़ी मान्यता थी कि पूंजीवादी व्यवस्था का असली विकल्प समाजवाद ही है। समाजवादी व्यवस्था से ही समस्त जनता का विकास किया जा सकता है। वे धर्म के राजनीतिक इस्तेमाल के हमेशा खिलाफ रहे थे और वह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के सबसे बड़े समर्थक थे। अयोध्या में राम की मूर्ति स्थापित करने के समय, उन्होंने स्पष्ट रूप से खुलकर कहा था कि मोदी सरकार का यह नजरिया धार्मिक मूल्यों के खिलाफ है, कोई भी केंद्र सरकार या राज्य सरकार किसी धर्म विशेष का प्रचार प्रसार नहीं कर सकती क्योंकि ऐसा करना धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों और संविधान के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है।

     उनका मानना था कि भारत की परिस्थितियों में साम्यवादियों को संयुक्त मोर्चे की नीति ही कामयाब बनाएगी। वर्तमान सामाजिक मुद्दों पर उनका मानना था कि सामाजिक मुद्दों पर लिखना और इनका जनता में प्रचार प्रचार करना बहुत जरूरी है। उनकी सबसे दृढ़ मान्यता थी की जनता की एकजुटता के बगैर शोषण मुक्त समाज की स्थापना नहीं की जा सकती। वे अपने विचारों में भी पूरी तरह से प्रतिबद्ध थे और उनका मानना था कि दुनिया भर की समाजवादी सरकारों का समर्थन करना बहुत जरूरी है। उनकी यह भी दृढ़ मान्यता थी कि वैश्विक स्तर पर साम्राज्यवाद विरोधी शक्तियों की एकजुटता सबसे ज्यादा जरूरी है और ऐसा करके ही दुनिया भर में समाजवादी अभियान की रक्षा की जा सकती है और उसे आगे बढ़ाया जा सकता है।

     अधिकांश लोगों का मानना है कि सीताराम येचुरी का निधन हो गया है, वह इस दुनिया में नहीं रहे। यहां हम उनसे सहमत नहीं है। कौन कहता है कि सीताराम की मौत हो गई है? जी नहीं, उन्होंने अपना मृत शरीर ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस को दान कर दिया है, जहां मेडिकल के छात्र-छात्राएं उनके अंग प्रत्यगों से ज्ञान हासिल करेंगे। वे मरे नहीं हैं। उनके अचार, विचार राजनीतिक तौर तरीके और शिक्षाएं सदैव अमर रहेगी और मुक्तिकामी जनता का मार्गदर्शन करते रहेंगे और उसे संघर्ष का हौंसला प्रदान करते रहेंगी।

    सीताराम येचुरी का मेरठ से भी नाता रहा है। 80 के दशक में एसएफआई के बड़े कार्यकर्ता और बाद में बीबीसी संवाददाता जसविंदर सिंह “प्रिंस” की असामयिक मृत्यु के मौके पर मेरठ आए थे। सेक्टर दो शास्त्री नगर मेरठ में हुई उस शोकसभा में 200 से ज्यादा छात्रों ने भाग लिया था और वहां पर हमें भी उनसे मिलने का मौका मिला था और वहीं पर उनसे छात्र राजनीति और वामपंथी राजनीति पर विस्तार से चर्चा हुई थी जिसमें उन्होंने समस्त छात्रों का आह्वान किया था कि “छात्रों के लिए, एक बेहतर समाज बनाने के लिए पढ़ना और संघर्ष करना बहुत जरूरी है। ऐसा किए बिना ना तो एक अच्छा इंसान बना जा सकता है और ना ही एक अच्छा समाज बनाने का संघर्ष किया जा सकता है।”

     आज हम देखते हैं कि सीताराम येचुरी कि वे विचार और शिक्षा आज भी कारगर बनी हुई है। सीताराम येचूरी जो एक धर्मनिरपेक्ष, शोषण मुक्त और सामाजिक न्याय के समाज का सपना देख रहे थे वह अभी अधूरा है। आज हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि कामरेड सीताराम येचूरी के विचारों से सीख कर और उन्हें अमल में लाकर हम उनके विचारों को धरती उतारें और एक शोषण विहीन, मुक्तिकारी, सामाजिक न्याय से भरा-पूरा समाज कायम करें, यही उनके लिए सबसे अच्छी श्रद्धांजलि होगी और यही आज की सबसे बड़ी जरूरत भी है। सीताराम येचुरी के क्रांतिकारी मिशन को आगे बढ़ते हुए हम तो यही कहेंगे,,,,

सारे ताने-बाने को बदलो
खुद भी बदलने की बात करो,
हारे थके आधे अधूरे नहीं
पूरे इंकलाब की बात करो।

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