बंगाल कांग्रेस में पिछले पांच महीने की उठापटक के बाद शुभांकर सरकार प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए। शुभांकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की पसंद हैं। इस फेरबदल के पीछे यह माना जा रहा है कि शुभांकर के जरिये राहुल गांधी विधानसभा चुनाव में टीएमसी के साथ गठबंधन का रास्ता खोलना चाहते हैं।
कोलकाता: अधीर रंजन चौधरी की विदाई के बाद पश्चिम बंगाल में कांग्रेस ने शुभांकर सरकार ने नए प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल ली है। राहुल गांधी के खास शुभांकर ने संकेत दिए हैं कि तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए पार्टी ने संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। शुभांकर सरकार अपने पूर्ववर्ती अधीर रंजन चौधरी के उलट मृदुभाषी माने जाते हैं। बताया जाता है कि राहुल गांधी 2025 के बंगाल विधानसभा चुनाव में टीएमसी के साथ चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं, इसलिए उन्होंने ममता बनर्जी के विरोधी माने जाने वाले सबसे भरोसेमंद सेनापति अधीर रंजन को नेपथ्य में भेज दिया। बंगाल कांग्रेस के नए अध्यक्ष को 2001 के फॉर्मूले के हिसाब से गठबंधन की जमीन तैयार करने का बड़ा टास्क दिया गया है।
बिना बताए ही छीन ली ‘चौधरी’ की पोस्ट
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे अधीर रंजन चौधरी गांधी परिवार के करीबी नेताओं में शुमार रहे हैं, मगर चुनावों में लगातार हार के बाद उन्हें बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी भी गंवानी पड़ी। 29 जुलाई तक अधीर रंजन को कांग्रेस हाईकमान ने अध्यक्ष पद के हटाने की औपचारिक जानकारी भी नहीं दी। उन्हें पार्टी के एक कार्यक्रम में उन्हें जब ‘पूर्व अध्यक्ष’ संबोधित किया गया तो वह चौंक पड़े थे। इस पर उन्होंने सार्वजनिक तौर पर नाराजगी जाहिर की थी। उन्होंने बयान दिया था कि जब से मल्लिकार्जुन खरगे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हैं, तब से पार्टी के संविधान के मुताबिक सभी पद टेंपररी हो गए हैं।
लोकसभा चुनाव में खरगे ने दिए थे संकेत
दरअसल लोकसभा चुनाव में टीएमसी के साथ गठबंधन को लेकर मल्लिकार्जुन खरगे से मतभेद शुरु हुआ था। खरगे कम सीटों के साथ भी टीएमसी के साथ गठबंधन के लिए उत्सुक थे, जबकि अधीर रंजन दो सीटों पर सहमत नहीं थे। इस विवाद में अधीर रंजन चौधरी ने ममता बनर्जी के लिए तीखा बयान भी दिया। तब मल्लिकार्जुन खरगे ने सार्वजनिक तौर पर बयान दिया कि ममता बनर्जी इंडी गठबंधन का हिस्सा होंगी या नहीं, इस पर फैसला लेने वाले अधीर रंजन कोई नहीं हैं। अगर जरूरत पड़ी तो अधीर को बाहर रखा जाएगा। हालांकि अधीर अपने रुख पर कायम रहे और वाम दलों के साथ समझौता किया।
दिल्ली से बंगाल चलाने की शिकायत
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बंगाल में सिर्फ एक सीट पर सिमट गई। मुर्शिदाबाद से पांच बार सांसद रहे अधीर रंजन खुद चुनाव हार गए। कांग्रेस हाईकमान ने अधीर रंजन पर हार की ठीकरा फोड़ दिया तो उन्होंने भी पद छोड़ने की पेशकश कर दी। चुनाव के बाद भी ममता बनर्जी के लिए अधीर रंजन चौधरी का तेवर तल्ख ही रहा। सूत्रों के अनुसार, टीएमसी की ओर से कांग्रेस को संदेश भेजा गया कि वह ममता बनर्जी के खिलाफ बयानबाजी बंद कराए। कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने अधीर रंजन पर दिल्ली से बंगाल चलाने की शिकायत की। फिर कांग्रेस में नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश शुरू हुई।
टीएमसी से 2011 जैसा गठबंधन की चाहत
2011 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी के साथ कांग्रेस ने 42 सीटें जीती थीं। उसे 21 सीटों का फायदा हुआ था। इसके बाद के चुनावों में कांग्रेस लगातार बंगाल में हाशिये पर रही। अभी पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का एक विधायक और एक सांसद है। अधीर रंजन हमेशा से बंगाल में कांग्रेस को मुख्य विपक्षी दल के तौर पर स्थापित करने के लिए मशक्कत करते रहे। इसके लिए उन्होंने ममता विरोध का रास्ता अपनाया। टीएमसी हमेशा ही अधीर रंजन से असहज रही। अब उनके पद से हटने के बाद पश्चिम बंगाल कांग्रेस में टीएमसी के साथ मिलकर नई जमीन तलाशने की तैयारी कर रही है।
भारत जोड़ो यात्रा में भरोसेमंद बने शुभांकर
पश्चिम बंगाल के नए प्रदेश अध्यक्ष शुभांकर सरकार अब राहुल गांधी के पॉलिटिकल प्लान को अमलीजामा पहनाएंगे। उनके पास एक साल का वक्त है। शुभांकर मेघालय और अरुणाचल में कांग्रेस के प्रभारी रहे हैं। नॉर्थ-ईस्ट में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का मैनेजमेंट भी उन्होंने ही संभाला था। उनके प्रबंधन को देखकर राहुल काफी प्रभावित हुए और पश्चिम बंगाल की बागडोर सौंप दी। बताया जाता है कि नाराज अधीर रंजन ने नए प्रदेश अध्यक्ष को औपचारिक तौर से बधाई नहीं दी। अब चर्चा है कि नाराज अधीर रंजन बीजेपी में शामिल हो सकते हैं।