सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की उस टिप्पणी को हटा दिया जिसमें कहा गया था, “अगर धर्मांतरण को बढ़ावा देने वाली धार्मिक सभाओं को नहीं रोका गया तो देश की बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक हो जाएगी.”
बार और बेंच की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा की गई यह टिप्पणी अनुचित थी.
बता दें कि इलाहाबा उच्च न्यायालय ने 1 जुलाई को उत्तर प्रदेश से जुड़े धर्म परिवर्तन के एक मामले में आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए कोर्ट ने यह टिप्पणी की थी. कोर्ट ने कहा था कि अगर धर्मांतरण को बढ़ावा देने वाली धार्मिक सभाओं को नहीं रोका गया तो देश की बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक हो जाएगी
इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. जिस पर सुनवाई करते हुए आज मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने आरोपी को जमानत देने के साथ ही उच्च न्यायालय की कथित टिप्पणी को “गैर जरूरी” करार दिया.
यह मामला उस वक्त सामने आया था जब उत्तर प्रदेश के हमीरपुर के मौदहा थाना में धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत कैलाश नाम के एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया था. बता दें कि कथित व्यक्ति पर भारतीय दंड संहिता की धारा 365 (किसी व्यक्ति को गुप्त रूप से और गलत तरीके से बंधक बनाने के इरादे से अपहरण या अपहरण) के तहत मामला दर्ज किया गया था. इसके अलावा पुलिस ने उस पर धर्म परिवर्तन अधिनियम की धाराएं भी लगाईं थीं.
दरअसल, मामले की शिकायतकर्ता और हमीरपुर की मूल निवासी रामकली प्रजापति के अनुसार, आरोपी कैलाश ने इलाज़ के नाम पर दिल्ली ले जाकर एक सामाजिक कल्याण समारोह में उसके भाई का धर्मांतरण करा दिया था.
इसके अलावा रामकली का यह भी आरोप था कि उसके पड़ोस के कई अन्य लोगों को भी ऐसे सामाजिक समारोह में ले जाया गया और उनका धर्मांतरण किया गया.
1 जुलाई 2024 को इसी मामले की जमानत याचिका को ख़ारिज करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज रोहित रंजन अग्रवाल ने कथित टिप्पणी की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने आज हटा दिया.