अखिलेश अखिल
अब कहने के लिए कुछ बचा नहीं है। देश अब जान गया है कि पीएम मोदी के काल में चुनावी बांड के नाम पर बड़ा घोटाला किया गया है। लेकिन इससे भी बड़ी बात है कि इस घोटाले में सिर्फ मोदी के मंत्री और पार्टी के लोग ही शामिल नहीं हैं।
सरकार का वह बड़ा तंत्र भी शामिल है जो देश को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने की बात करता है और जो आर्थिक भ्रष्टाचार को रोकने का दावा करता है। एक है देश का सबसे बड़ा बैंक एसबीआई और दूसरा सरकारी तंत्र है ईडी।
वही ईडी जिसके जरिये पिछले दस सालों से मोदी सरकार ने विपक्षी नेताओं के नाक में दम कर रखा है और इसी एजेंसी के जरिये देश की राजनीति से लेकर संविधान की भी धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। मोदी जी बदनाम हो गए हैं।
मोदी जी ने दस सालों में क्या किया और इस देश को क्या दिया इसकी जानकारी शायद ही भक्तों को हो। केवल हिन्दुत्व और हिन्दू-मुसलमान के नाम पर धर्म के आसरे देश की राजनीति को आगे बढ़ाने का जो काम मोदी जी ने किया है, वह भक्तों के लिए भले ही कबीले तारीफ हो लेकिन सच यह है कि जिस दिन मोदी का सत्ता से अवसान होगा, मोदी का नाम भी लेने वाला कोई नहीं होगा।
जब बीजेपी को यहां तक पहुंचाने वाले बीजेपी के शीर्ष नेता रहे अटल और आडवाणी की चर्चा बीजेपी के आधुनिक भक्त नहीं करते तब भला मोदी को कौन पूछेगा?
देश के लोगों को कॉर्पोरेट लूटे और कॉर्पोरेट को बीजेपी और सरकारी तंत्र लूटे और फिर जनता की बेबसी पर दोनों ठहाका लगाएं यही आज का सच है। इस सच को जनता भी समझ रही है, लेकिन हिन्दू-मुसलमान के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण में फंसी जनता इसको अभी ज्यादा तवज्जो नहीं दे पा रही है।
आने वाली पीढ़ी जब इतिहास के पन्नों में मोदी की राजनीति और उनके क्रियाकलापों का आकलन करेगी तब उसका सिर शर्म से झुक जाएगा।
और यह सब इसलिए कि इस देश के एक प्रधानमंत्री ने किस तरह से देश को योजना के जरिये लूटने का काम किया और इसलिए भी कि भारत जैसे एक सेक्युलर देश को किस तरह से धर्म की आग में झोंकने का प्रयास किया गया था। और मोदी के काल में धर्म के नाम पर बीजेपी की राजनीति खूब फली-फूली थी।
हालांकि यह भी उतना ही सच है कि सेक्युलरवाद के नाम पर भी इस देश को जमकर मूर्ख बनाया गया और हिन्दू और मुसलमानों के बीच खाई भी खड़ी की गई।
इस खेल में देश के अधिकतर हिन्दू और मुसलमान भले ही दोराहे पर खड़े रहे लेकिन दोनों खेमों के लोग सियासत के जरिये खूब फलते-फूलते रहे। लेकिन आज देश पहले से भी ज्यादा खतरनाक स्थिति में जा पहुंचा है।
चुनावी बांड को लेकर जो कहानी देश के भीतर फैली है, वह पीएम मोदी के दामन पर सबसे बड़ा धब्बा है। अब वे इस धब्बे को मिटा नहीं सकते।
जिस तरह से संगठित तरीके से बीजेपी के लोग, सरकार और सरकारी एजेंसियों का तंत्र चुनावी बांड के जरिये देश के बेईमान और लुटेरे कॉर्पोरेट जगत को लूटने का खेल किया है, आजाद भारत में इस तरह से संगठित लूट की कहानी अभी तक देखने को नहीं मिली थी।
आजाद भारत से पहले मुगलों से लेकर कई लुटेरे तानाशाहों ने इस देश को खूब लूटा। लेकिन उस लूट में शामिल केवल लुटेरे और देसी गद्दार ही थे। अंग्रेजों के काल तक भी यही सब चलता रहा। देश के दर्जनों गद्दार नेता, जमींदार और राजा अंग्रेजों के साथ मिलकर इस देश को खोखला करते रहे।
गद्दार और दलालों ने ही इस देश को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। गद्दार और दलाल पहले भी थे और आज भी लूट तंत्र में इन गद्दारों और दलालों की ही बड़ी भूमिका है।
प्रधानमंत्री मोदी पिछले दस साल से कहते रहे हैं कि इस देश को दलालों ने खूब लूटा। कांग्रेस ने खूब लूटा और कांग्रेस के लोगों ने खूब लूटा। लेकिन लूट की वही कहानी मोदी सरकार में भी दोहराई जा रही है। खेल इतना बड़ा है जिसे समझना तक मुश्किल है।
देश को पहले धार्मिक जकड़न में बांधा गया और फिर लूट की कहानी को अंजाम दिया गया। चुनावी बांड के जरिए जिस तरह की लूट की गई है उस लूट में भी दलालों की ही बड़ी भूमिका थी। अंतर केवल यही है पहले दलाली का काम कुछ लोग करते थे, लेकिन चुनावी बांड में दलाल की भूमिका बैंक और जाँच एजेंसियां निभा रही थीं।
कह सकते हैं कि दिल्ली और देश में बैग उठाए व्यस्त सफल दिखता कोई भी पुरुष और स्त्री अपने बुद्धि बल और बाहुबल के दम पर कुछ नहीं रचता! चाहे मामला कॉरपोरेट का हो या राजनीति का ही क्यों न हो। दरअसल वह, व्यस्त और सफल दिखता व्यक्ति एक दलाल है, लाइजनर है।
उसकी समृद्धि और सफलता उतनी ही व्यक्तित्वहीन और सौंदर्यहीन है जितनी हमारे देश की हालिया तकनीकी और वैज्ञानिक तरक्की के किस्से।
एक दलाल सभ्यता में ‘लार’ टपकाऊ विज्ञापनों की दुनिया के आधार पर इतिहास नहीं रचा जाएगा, लेकिन यह शायद हमारी सभ्यता के सबसे प्रामाणिक साक्ष्य हैं। खुशकिस्मती है कि इन्हें साक्ष्य की तरह देखा जाएगा, तब शर्म से डूब मरने के लिए हम नहीं होंगे।
यह दिल्ली कभी इंद्रप्रस्थ थी, जहां कुरुक्षेत्र के मैदान में महाभारत का धर्मयुद्ध लड़ा गया था। यही दिल्ली कभी सूफी-संतों की दुनिया थी, जहां एक से बढ़कर एक सूफी-संत डेरा जमाए रहते थे। यहीं थे बहादुरशाह जफर और स्थापित थी उनकी मुगलिया सल्तनत।
इसी दिल्ली में गालिब और मीर की महफिलें सजती थीं और गूंजती थीं। गांधी की प्रार्थनाएं गायी जातीं ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम़’.। इसी दिल्ली में लाल किले की प्राचीर से ‘आधुनिक भारत के जनक’ पंडित जवाहरलाल नेहरू आधुनिक भारत के सपने देखते थे।
यहीं के काफी हाउस, मंडी हाउस और जेएनयू से लेकर संसद तक सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर गंभीर बहसें हुआ करती थीं। यह अब दलालों की दिल्ली है। सूदखोरों, झूठों और मक्कारों की दिल्ली है।
इस दिल्ली के अन्य इलाकों में जहां भूख, गरीबी और असमानता के दर्द गूंजते हैं, वह इसी दिल्ली के पॉश इलाके और लुटियन जोन में सत्ता पाने और गिराने से लेकर राजनीति को साधने के लिए देश को कैसे चूना लगाया जाए, इसकी व्यूह रचना देश के ही नेता रचते नजर आते हैं। हालिया चुनावी बांड की कहानी को आप इसी रूप में देख सकते हैं।
आजाद भारत में अगर सरकारी लूट की कहानी नेहरू से शुरू होती है, तो मोदी काल में यह लूट संगठित हो गई है और चुनावी बांड की लूट की गाथा सब पर भारी है। इस लूट की जांच करीने से करा दी जाए तो यह लूट मुगलों, नादिर शाह और अंग्रेजों की लूट को भी मात देगी।
आजाद देश में पंडित नेहरू जब पहली बार प्रधानमंत्री बने थे और देश को आगे ले जाने का सपना देख और दिखा रहे थे, तब उन्हीं के काल में मूंदड़ा घोटाला से लेकर जीप घोटाला सामने आ गया। नेहरू को इसकी कल्पना तक नहीं थी। लेकिन ऐसा हुआ।
मूंदड़ा स्कैंडल 1951 में हुआ था। बता दें कि कलकत्ता के उद्योगपति हरिदास मूंदड़ा को आज़ाद भारत के पहले ऐसे घोटाले के बतौर याद किया जाता है, जिसे तब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से जोड़कर देखा गया। 1957 में मूंदड़ा ने सरकारी इंश्योरेंस कंपनी एलआईसी के ज़रिए अपनी छह कंपनियों में 12 करोड़ 40 लाख रुपए का निवेश कराया। यह निवेश सरकारी दबाव में एलआईसी की इन्वेस्टमेंट कमेटी की अनदेखी करके किया गया। जब तक एलआईसी को पता चला उसे कई करोड़ का नुकसान हो चुका था।
इस केस को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के दामाद फ़िरोज़ गांधी ने उजागर किया, जिसे नेहरू ख़ामोशी से निपटाना चाहते थे क्योंकि इससे देश की छवि खराब होती। नेहरू ने अपने वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी को बचाने की कोशिश भी की, मगर आखिरकार उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। यह आजाद भारत का पहला घोटाला बन गया और पहले मंत्री के इस्तीफे के रूप में भी देखा जाता है।
इंदिरा गांधी के काल में नागरवाला घोटाला भी सामने आया था। सेना के एक पूर्व कैप्टन रुस्तम सोहराब नागरवाला ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आवाज की नकल करके संसद मार्ग स्थित स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की शाखा को फोन किया और उससे 60 लाख रुपए निकलवा लिए।
घोटाला तब खुला जब नागरवाला ने पैसा लेने के बाद टैक्सी वाले को ढेर सारे नोट दिए। इसके बाद एसबीआई के हेड कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा को इस्तीफ़ा देना पड़ा। नागरवाला को पकड़ा गया और उनकी जेल में ही मौत हो गई। नागरवाला ने रुपए निकलवाने के लिए बहाना किया था कि प्रधानमंत्री दफ़्तर के आदेश पर उन्होंने पैसा मांगा है और पैसा बांग्लादेश संकट से निपटने के लिए चाहिए। लेकिन इस सच का आज तक पता नहीं चला।
अब जरा मोदी काल के चुनावी बांड की लूट की गाथा को सामने रखने की जरूरत है। यह कोई राजनीतिक खेल नहीं है। राजनीति के जरिये इस महालूट को साधने की ऐसी कोशिश की गई है जिसे देख सुनकर देश और दुनिया के लोग भी हैरत में हैं और दुनिया भर की सरकार भी पीएम मोदी के खेल को समझ रही है।
चुनावी बांड के खुलासे की कहानी वैसे तो पिछले साल ही देश में शुरू हो गई थी। सरकार और शीर्ष अदालत के बीच खूब खींचतान हुई। बीच में बिचौलिया बने एसबीआई ने सरकार के पक्ष में खड़ा होकर सुप्रीम कोर्ट को ठगने की कोशिश किया लेकिन सुप्रीम कोर्ट के हथौड़े के सामने एसबीआई की कलई खुल गई। एसबीआई ने अपनी साख को ख़त्म करते हुए देश के सामने चुनावी बांड की जो तस्वीर चुनाव आयोग के सामने पेश की और चुनाव आयोग ने जो डाटा जारी किया उससे एसबीआई की दलाली तो सामने आयी ही सरकार और कॉर्पोरेट के लूट का भी पर्दाफाश हो गया।
इस मामले की जांच और आगे होती तो बहुत से खेल सामने आते लेकिन ऐसा तब नहीं हो सका। लेकिन कर्नाटक में जाकर अब इस चुनावी बांड की कहानी एक नए रूप में सामने आती जा रही है। यह ऐसी कहानी है जिससे बीजेपी और मोदी सरकार की बदनामी और भी होनी है। इस कहानी में कई मशाले हैं।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि बेंगलुरु में चुने हुए प्रतिनिधियों के लिए नामित मैजिस्ट्रेट कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड के मुद्दे पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और प्रवर्तन निदेशालय के ख़िलाफ़ जबरन वसूली और आपराधिक साज़िश का मामला दर्ज करने का आदेश दिया और मामला दर्ज भी हो गया। याद रहे नेहरू के काल में वितता मंत्री कृष्णमचारी को घोटाले में शामिल न होने के बाद भी उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था और अब मोदी सरकार मि वित्त मंत्री सीतारमण की बारी है। सीतारमण पर चुनावी बांड जैसे बड़े घोटाले और जबरन वसूली मामले के केस दर्ज हुए हैं। क्या सीतारमण स्तीफा देंगी ? और ऐसा हुआ तो मोदी काल को किस रूप में याद किया जाएगा इसे समझा जा सकता है।
बता दें कि बेंगलुरु की अदालत ने ये फ़ैसला आदर्श अय्यर की याचिका पर सुनाया है। आदर्श जनाधिकार संघर्ष परिषद के सह-अध्यक्ष हैं। उन्होंने मार्च में स्थानीय पुलिस को एक शिकायत दी थी जिस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह भी बता दें कि जेएसपी एक ऐसी संस्था है जो शिक्षा का अधिकार क़ानून और बाक़ी मुद्दों से जुड़ी समस्याओं को उठाती रही है।
बता दें कि कि इस मामले में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष बीवाई विजेंद्र को भी आरोपी के तौर पर नामित किया गया है। इसमें राज्य में बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष नलीन कुमार कतील और पार्टी के अन्य पदाधिकारियों को भी आरोपी बनाया गया है।
जेएसपी के वकील ने कहा, “निर्मला सीतारमण और ईडी निदेशालय सूत्रधार हैं जबकि नड्डा और विजेंद्र इसमें सहयोग करने वाले हैं।”
कोर्ट को दी गई शिकायत में कहा गया है, ”आरोपी संख्या एक (निर्मला सीतारमण) ने आरोपी संख्या दो (ईडी) की गुप्त सहायता और समर्थन के ज़रिए राष्ट्रीय स्तर पर आरोपी संख्या तीन (नड्डा) और कर्नाटक राज्य में आरोपी संख्या चार (कतील) के लाभ के लिए हज़ारों करोड़ रुपये की उगाही करने में मदद की। ”
शिकायत में कहा गया है, ”आरोपी नंबर एक ने विभिन्न कॉरपोरेट्स, उनके सीईओ, एमडी आदि के यहां छापे मारने, ज़ब्ती करने और गिरफ्तारियां करने के लिए आरोपी नंबर दो की सेवाएं ली। आरोपी नंबर एक की ओर से की गई शुरुआत से आरोपी नंबर दो की छापेमारी के डर से कई कॉरपोरेट और धनकुबेरों को कई करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड ख़रीदने के लिए मजबूर किया गया, जिसे आरोपी नंबर तीन और चार ने भुनाया। ”
शिकायत में 8,000 करोड़ रुपये इकट्ठा करने का दावा किया गया है। शिकायत में एल्युमिनियम और कॉपर की दिग्गज कंपनी मेसर्स स्टरलाइट एंड मेसर्स वेदांता कंपनी का उदाहरण दिया गया है, जिन्होंने अप्रैल 2019, अगस्त 2022 और नवंबर 2023 के बीच 230.15 करोड़ रुपये इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए दिए। वहीं मेसर्स ऑरोबिंदो फ़ार्मा ग्रुप ऑफ़ कंपनीज़ ने 5 जनवरी 2023, 2 जुलाई 2022, 15 नवंबर 2022 और 8 नवंबर 2023 के बीच 49.5 करोड़ रुपये दिए।
इन अपराधों के लिए आईपीसी की धारा 384 (जबरन वसूली), 120बी (आपराधिक साज़िश) के साथ आईपीसी की धारा 34 (एक मकसद के लिए कई लोगों की एकसाथ मिलकर की गई कार्रवाई) के तहत केस दर्ज की गई है।
अब आगे क्या होगा यह देखने की बात है। लेकिन जिस तरह से चुनावी बांड को अंजाम दिया गया था वह अपने आप में एक बड़ी लोट थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस चुनावी बांड को असंवैधानिक मानते हुए इसे बंद कर दिया था। हलाकि सुप्रीम कोर्ट ने जब इस चुनावी बांड को असंवैधानिक माना था तब ही इसकी जांच भी की जानी थी और लूट के सारे तार को खोलने की जरूरत थी। यह सब इसलिए कहा जा रहा है कि बीजेपी ,वित्त मंत्रालय और ईडी और एसबीआई ने मिलकर बड़े स्तर पर बीजेपी के लिए चंदा वसूलने का काम किया।
बड़े कॉर्पोरेट घराने से तो बड़ी राशि उगाही ही गई छोटे और देश को लूटने वाले घराने से भी काफी रकम उगाही गई। रकम उन घरानों से भी लिए गए जो घाटे में चलने का स्वांग रच रहे थे लेकिन चंदा देने में काफी आगे थे। आप जान सकते हैं कि कोई घाटे वाली कंपनियां किसी पार्टी को कैसे चंदा दे सकती है? अधिकतर घरानों को चंदे के बदले धंधा दिया गया। देश लुटाता रहा। जनता पांच किलो अनाज पर मुस्कुराती रही और बीजेपी पूरे देश की राजनीति को अपने कब्जे में किए रही। इस बीच विपक्ष को ध्वस्त करती रही और मीडिया को पंगु बनाती रही।