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डॉ. लोहिया का जीवन ही एक चिंतन हैं

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नीरज कुमार

डॉ. राम मनोहर लोहिया (12 अक्टूबर 1967) की पुण्यतिथि पर कब से बैठकर सोच रहा था क्या लिखूं? लोहिया का जीवन ही एक चिंतन हैं. आधुनिक भारत के ऐसे प्रतिभाशाली राजनीति-विचारक थे, जिन्होंने भारत के स्वाधीनता आन्दोलन और समाजवादी आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. उन्होंने गांधीवादी विचारों को अपनाते हुए, एशिया की विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखकर, समाजवाद की एक नई व्याख्या और नया कार्यक्रम प्रस्तुत किया.

लोहिया ने अपनी महत्वपूर्ण कृति ‘इतिहास-चक्र’ के अंतर्गत यह विचार प्रस्तुत किया कि इतिहास तो चक्र की गति से आगे बढ़ता है. इस व्याख्या के अंतर्गत उन्होंने चेतना की भूमिका को मान्यता देते हुए द्वंद्वात्मक पद्धति को एक नई दिशा में विकसित किया जो हेगेल और मार्क्स दोनों के व्याख्याओं से भिन्न था.

लोहिया के अनुसार, जाति और वर्ग ऐतिहासिक गतिविज्ञान की दो मुख्य शक्तियां हैं. इन दोनों के बीच लगातार चलती रहती है, और इनके टकराव से इतिहास आगे बढ़ता है. जाति रुढ़िवादी शक्ति (Conservative Force) का प्रतीक है जो जड़ता को बढ़ावा देती है और समाज को बंधी-बंधाई लीक पर चलने को विवश करती है. दूसरी ओर, वर्ग गत्यात्मक शक्ति का प्रतीक है, जो सामाजिक गतिशीलन को बढ़ावा देती है. जाति एक सुडौल ढांचा है; वर्ग एक शिथिल या ढीला-ढाला संगठन है.

आज तक का सारा मानव इतिहास जातियों और वर्गों के निर्माण और विलय की कहानी है. जातियां शिथिल होकर वर्ग में बदल जाती हैं. वर्ग सुगठित होकर जातियों का रूप धारण कर लेते हैं.  लोहिया के अनुसार, भारत के इतिहास में दासता का एक लंबा दौर जाति-प्रथा का परिणाम था क्योंकि वह भारतीय जन-जीवन को सदियों तक भीतर से कमजोर करती रही. इस जाति-प्रथा के विरुद्ध अनथक संघर्ष करने वाले को ही सच्चा क्रांतिकारी मानना चाहिए.

लोहिया ने अपनी चर्चित कृति ‘समाजवादी नीति के विविध पक्ष’ के अंतर्गत यह तर्क दिया कि समाज की संरचना में चार परतें पाई जाती हैं :

गाँव (Village), मंडल (District), प्रांत (Province) और राष्ट्र (Nation). यदि राज्य का संगठन इन चारों पर्तों के अनुरूप किया जाए तो वह समुदाय का सच्चा प्रतिनिधि बन जाएगा. अतः राज्य में चार स्तंभों का निर्माण करना होगा.

इस व्यवस्था को लोहिया ने ‘चौखम्बा राज्य’ की संज्ञा दी है. जैसे चार खम्बे अपना पृथक-पृथक अस्तित्व रखते हुए भी एक छत को संभालते हैं, वैसे ही यह व्यवस्था केंद्रीकरण और विकेंद्रीकरण की परस्पर-विरोधी अवधारणाओं में सामंजस्य स्थापित करेगी. इस तरह प्रशासन के चार स्वायत अंग स्थापित किए जाएंगे: गाँव, मंडल, प्रांत और केंद्रीय सरकार जो क्रित्यात्मक संघवाद (Functional Federalism) के अंतर्गत आपस में जुड़े होंगे.

प्रचलित व्यवस्था में से जिलाधीश का पद समाप्त कर देना होगा क्योंकि वह प्रशासनिक शक्ति के जमाव का प्रतीक है. पुलिस और कल्याणकारी कार्य गाँव और नगर की पंचायतों को संभालने होंगे. ग्राम प्रशासन छोटी-छोटी मशीनों पर आधारित कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देगा जो सहकारी संस्थाओं के रूप में संगठित होंगे. इससे आर्थिक शक्ति के केंद्रीकरण और बढती हुई बेरोजगारी को दूर किया जा सकेगा.

लोहिया ने इस प्रस्तावित व्यवस्था को विश्व स्तर पर लागू करने का सुझाव दिया है जो विश्व संसद और विश्व सरकार के रूप में अपने तर्कसंगत परिणाम पर पहुंचेगी.

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