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इस बार भी ओबीसी और दलित वोटर निर्णायक साबित हुए हरियाणा में

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सैयद ज़ैग़म मुर्तज़ा

कोई पूछे कि जीता हुआ चुनाव कैसे हारा जाता है तो इसका जवाब शायद कांग्रेस कार्यकर्ताओं से बेहतर कोई और नहीं दे पाएगा। राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और अब हरियाणा इसकी बेहतरीन मिसाल हैं। माहौल, हवा, जनसमर्थन, सत्ता विरोधी लहर, स्थानीय विधायकों से नाराज़गी, महंगाई, बेरोज़गारी समेत तमाम कारक मौजूद थे, जो सरकार बदलने के लिए ज़रूरी हैं। ख़ुद सत्ताधारी दल के नेता माने बैठे थे कि इस बार जीत आसान नहीं है। लेकिन कांग्रेस हार गई। ज़ाहिर तौर पर जीत के इतना क़रीब पहुंचकर मिली हार को पचाना आसान नहीं है। शायद यही वजह है कि कांग्रेस पार्टी में तुरंत इस हार की समीक्षाएं शुरू हो गईं। इन समीक्षाओं में जो तमाम कारण बाहर निकल कर आ रहे हैं, उनमें हार की बाहरी वजहों के साथ-साथ भीतरघात की बातें भी कही जा रही हैं।

हरियाणा में इस बार चुनाव बेहद दिलचस्प था। इस बार भी ओबीसी और दलित वोटर निर्णायक साबित हुए। भाजपा न सिर्फ ग़ैर-जाट मतदाताओं को अपने पक्ष में लामबंद करने में कामयाब रही, बल्कि दलित वोटरों का भी एक बड़ा हिस्सा उसके उम्मीदवारों ने झटक लिया। कुल 90 सीटों में से भाजपा को 48 जबकि कांग्रेस को 37 सीटों पर जीत हासिल हुई। लेकिन विधानसभा के निवर्तमान स्पीकर और कुल आठ मंत्रियों को हार का मुंह देखना पड़ा। इंडियन नेशनल लोकदल के हिस्से में महज़ दो सीटें ही आईं। भाजपा के साथ सत्ता में साझीदार रही जननायक जनता पार्टी का पूरी तरह सफाया हो गया। जबकि बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी, आज़ाद समाज पार्टी और हरियाणा लोकहित पार्टी अपना खाता भी नहीं खोल पाईं। हालांकि छोटे दलों का इस चुनाव में सफाया हो गया, लेकिन आंकड़े बता रहे हैं कि इन्होंने निर्दलियों और बाग़ियों के साथ मिलकर कांग्रेस का खेल ख़राब कर दिया।

छोटे दलों ने बिगाड़ा कांग्रेस का खेल?

हरियाणा में 17 सीट ऐसी हैं, जहां इस बार हार-जीत का अंतर पांच हज़ार वोट से कम रहा। उचाना कलां, लुहारु, रोहतक और डबवाली में हार-जीत का फासला एक हज़ार वोट से भी कम है। उचाना कलां में भाजपा के देवेंद्र अत्री को महज़ 32 वोट से जीत हासिल हुई। इस सीट पर भाजपा के देवेंद्र चतर अत्री को 48,968 वोट मिले जबकि कांग्रेस उम्मीदवार ब्रजेंद्र सिंह को 48,936 वोट मिले। लेकिन ब्रजेंद्र की हार में जाट वोटों का बंटवारा अहम वजह रही। यहां से निर्दलीय प्रत्याशी विरेंद्र घोगरियान को 31,456 वोट मिले। एक और निर्दलीय उम्मीदवार विकास को 13,458 वोट मिले। जेजेपी अध्यक्ष दुष्यंत चौटाला महज़ 7,950 वोट पा सके और वह पांचवें स्थान पर रहे। उचाना कलां के नतीजा इस बात की बानगी भर है कि किस तरह वोटों के बिखराव में विपक्ष की चुनौती ढेर हो गई।

विपक्षी दलों में मनमुटाव

चुनाव से पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी से गठबंधन के पक्ष में थे। इस पर बातचीत भी हुई, लेकिन पार्टी की हरियाणा यूनिट के अड़ियल रवैये और आम आदमी पार्टी की अतार्किक मांग के चलते इंडिया गठबंधन की पार्टियों में कोई समझौता नहीं हो पाया। हालांकि समाजवादी पार्टी ने गठबंधन का लिहाज़ किया और चुनाव में भाग नहीं लिया। लेकिन जिस तरह अहीर वोट बड़ी तादाद में भाजपा की तरफ गए हैं, उसके मद्देनज़र कहा जा रहा है कि दो या तीन सीट समाजवादी पार्टी को दे दी जातीं तो शायद कांग्रेस को फायदा मिलता। आम आदमी पार्टी कांग्रेस की जीती हुई सीटों समेत कम से कम 12 सीट की मांग पर अड़ी रही। पार्टी 89 सीटों पर चुनाव लड़ी और उसे महज़ 1.76 फीसद वोट मिले। उसके अधिकांश उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो गई, लेकिन कम से कम चार सीटों पर उसके उम्मीदवारों ने कांग्रेस की हार सुनिश्चित कर दी।

आम आदमी पार्टी के 4 और इंडिया गठबंधन में शामिल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) के एक उम्मीदवार को मिले वोट हार-जीत के अंतर से कहीं ज़्यादा हैं। उदाहरण के लिए असंध में आम आदमी पार्टी को 4290 वोट मिले हैं, जबकि एनसीपी को 4218 हासिल हुए। इस सीट पर भाजपा के योगेंद्र सिंह राणा को महज़ 2306 वोट से कम अंतर से जीत मिली है। अगर एनसीपी या आम आदमी पार्टी में से किसी एक भी उम्मीदवार के वोट कांग्रेस को मिल जाते तो उसका उम्मीदवार आराम से जीत जाता। इसी तरह जगधारी, करनाल, थानेसर, पंचकुला, रेवाड़ी और रोहतक में आम आदमी पार्टी उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे। ग़ौरतलब है अरविंद केजरीवाल हरियाणा के रेवाड़ी ज़िले के मूल निवासी हैं और पार्टी ने यहां उनके लिए हरियाणा के लाल का नारा दिया था।

कांग्रेस में भीतरघात

कांग्रेस महासचिव कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला आख़िरी दिन तक पार्टी से मुंह फुलाए घूमते रहे। भारतीय जनता पार्टी और उसकी समर्थक मीडिया ने शैलजा की नाराज़गी को बड़ा नॅरेटीव बना दिया। इसका कांग्रेस पार्टी को दोहरा नुक़सान हुआ। कुछ जगह दलित मतदाता भ्रम का शिकार हुए और घर से वोट डालने ही नहीं निकले जबकि कई जगहों पर उन्होंने भाजपा उम्मीदवारों के पक्ष में वोट किया। इस बीच शैलजा अगर नाराज़गी की बात का ठीक से खंडन करतीं और पार्टी के साथ खड़ी रहतीं तो कांग्रेस क़रीबी मुक़ाबले वाली तीन-चार सीटें आराम से जीत सकती थी। रणदीप सुरजेवाला पर तो स्थानीय कार्यकर्ता लगातार भाजपा की सहायता का आरोप लगाते रहे हैं। 2016 के राज्य सभा चुनाव में आर.के. आनंद और 2022 में अजय माकन की हार के लिए लोग सुरजेवाला को ज़िम्मेदार ठहराते हैं। इस चुनाव में भी उनके ऊपर भीतरघात करने के आरोप लग रहे हैं। इसी तरह टिकट कटने बाद मैदान में कूद गए दर्जन भर बाग़ियों ने भी कांग्रेस की लुटिया डुबाने में कोई कसर बाक़ी नहीं रखी। अंबाला कैंट में कांग्रेस उम्मीदवार की ज़मानत ज़ब्त हो गई जबकि बाग़ी होकर निर्दलीय लड़ीं चित्रा सरवरा दूसरे स्थान पर रहीं। यहां भाजपा नेता अनिल विज 7,277 वोट से चुनाव जीत गए। बाढड़ा सीट पर निर्दलीय लड़ने वाले सोमवीर घसोला को 26,730 वोट मिले। यहां कांग्रेस उम्मीदवार सोमवीर सिंह 7,585 वोट से चुनाव हार गए। इसी तरह सोहना में निर्दलीय जावेद अहमद को 49,210 वोट मिले और यहां कांग्रेस उम्मीदवार 11,877 वोट से चुनाव हार गया। समलखा में निर्दलीय रविंदर मछरौली को 21,132 वोट मिले, जबकि यहां कांग्रेस को 19,315 वोट से हार का मुंह देखना पड़ा। सफीदौन में निर्दलीय जसबीर देसवाल को 20,014 वोट मिले। यहां पर कांग्रेस उम्मीदवार 4,037 वोट से चुनाव हार गया।

चलते-चलते

बहरहाल, हरियाणा में एक चुनावी चुटकुला बहुत लोकप्रिय हो रहा है। लोगों का कहना है कि आम जनता भाजपा का साथ देने के कारण दुष्यंत चौटाला की जेजेपी से इस क़दर नाराज़ हुई कि उसका सफाया कर दिया। लेकिन भाजपा का साथ देने की इस भयंकर नाराज़गी में वो तमाम वोटर भाजपा को वोट देकर आ गए। है न मज़ेदार बात?

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