अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

नोबेल पुरस्कार का पूंजीवादी तर्क:वास्तविकता को पूरी तरह से अनदेखा किया

Share

मनोज अभिज्ञान

इस वर्ष के अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार से उस शोध को सम्मानित किया गया है, जो अमीर और गरीब देशों के बीच आय की भारी असमानता के लिए ‘संस्थागत अविश्वास’ को जिम्मेदार ठहराता है।

इस शोध के मुताबिक, अमीर देशों में ‘भरोसेमंद संस्थाएं’ होने के कारण वे आर्थिक रूप से समृद्ध हुए, जबकि गरीब देशों में संस्थाओं की अविश्वसनीयता की वजह से वहां विकास नहीं हो पाया।

यह तर्क गरीब देशों की गरीबी और असमानता के वास्तविक कारणों को नजरअंदाज करता है और उनके आर्थिक पिछड़ेपन को उनके ही आंतरिक कारणों से जोड़ता है। इस तर्क से यह धारणा बनाई जाती है कि अगर गरीब देशों में भरोसेमंद संस्थाएं बन जाएं, तो वे भी अमीर हो सकते हैं।

लेकिन, इस तर्क में एक ऐतिहासिक वास्तविकता को पूरी तरह से अनदेखा किया गया है-साम्राज्यवादी लूट और पूंजीवादी शोषण का सैकड़ों साल पुराना इतिहास।

गरीब देशों की गरीबी और असमानता का असली कारण यह है कि गरीब देश आज भी उसी साम्राज्यवादी व्यवस्था के तहत पीड़ित हैं, जो पहले सैन्य ताकत के माध्यम से काम करती थी और आज वैश्वीकरण के जरिये।

‘भरोसेमंद संस्थाओं’ का तर्क असमानता के वास्तविक स्रोत को छिपाता है। पूंजीवादी और साम्राज्यवादी शक्तियों द्वारा श्रम और संसाधनों की लगातार लूट।

अमीर और गरीब देशों के बीच असमानता का प्रमुख कारण उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का इतिहास है। 19वीं और 20वीं सदी में यूरोपीय शक्तियों ने अफ्रीका, एशिया, और लैटिन अमेरिका के देशों पर सैन्य बल के माध्यम से कब्जा किया और वहां की प्राकृतिक संपदा और श्रम का अत्यधिक शोषण किया।

ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा भारत से कच्चे माल का निर्यात और भारत के बाजारों में ब्रिटिश वस्त्रों का आयात इसके सबसे प्रमुख उदाहरण हैं। इससे न सिर्फ भारत का घरेलू उद्योग नष्ट हुआ, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह ब्रिटिश आर्थिक हितों पर निर्भर हो गई।

यूरोपीय साम्राज्यवाद ने सैकड़ों साल तक गरीब देशों की जनता के श्रम और प्राकृतिक संसाधनों का शोषण किया, जिससे इन देशों की आर्थिक नींव कमजोर हो गई। यह लूट सिर्फ सैन्य ताकत से नहीं की गई, बल्कि वहां की संस्थाओं और नीतियों को भी साम्राज्यवादी हितों के अनुसार ढाला गया।

आज के वैश्वीकरण के दौर में, इस शोषण का तरीका भले ही बदल गया हो, लेकिन उद्देश्य वही है, अधिकतम मुनाफा और गरीब देशों की आर्थिक निर्भरता बनाए रखना।

वैश्वीकरण को अगर ध्यान से देखा जाए, तो यह साम्राज्यवाद का नया और परिष्कृत रूप है। जहां पहले सैन्य बल का इस्तेमाल करके उपनिवेश बनाए गए थे, आज आर्थिक और राजनीतिक दबाव के जरिये गरीब देशों का शोषण किया जाता है।

वैश्वीकरण अमीर देशों द्वारा गरीब देशों का श्रम और प्राकृतिक संसाधनों का शोषण करने की एक व्यवस्थित प्रक्रिया है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां और वैश्विक वित्तीय संस्थान जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक, गरीब देशों की नीतियों को नियंत्रित करते हैं, उन्हें अपने आर्थिक और राजनीतिक एजेंडे के तहत काम करने के लिए मजबूर करते हैं।

वैश्वीकरण के प्रमुख शोषणकारी तरीके:

  1. मुक्त व्यापार और निवेश समझौते: इन समझौतों के तहत बहुराष्ट्रीय कंपनियों को गरीब देशों के प्राकृतिक संसाधनों और बाजारों तक पूरी पहुंच मिलती है। ये कंपनियां अपने उत्पादन खर्च को कम करने के लिए सस्ते श्रम का शोषण करती हैं, जबकि स्थानीय उद्योगों को प्रतिस्पर्धा में धकेल कर नष्ट कर दिया जाता है। इस तरह गरीब देशों की आर्थिक आत्मनिर्भरता खत्म हो जाती है और वे बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर निर्भर हो जाते हैं।
  2. कर्ज का जाल: विश्व बैंक और IMF जैसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थान गरीब देशों को ऋण देते हैं, लेकिन इस ऋण के बदले में सख्त शर्तें लागू की जाती हैं। इन शर्तों में सार्वजनिक सेवाओं का निजीकरण, राज्य की नीतियों का उदारीकरण, और प्राकृतिक संसाधनों का विदेशी कंपनियों के हवाले किया जाना शामिल है। इस प्रकार, गरीब देशों की आर्थिक संप्रभुता का ह्रास होता है और वे आर्थिक रूप से अमीर देशों पर निर्भर हो जाते हैं।
  3. श्रम शोषण: वैश्वीकरण के अंतर्गत, गरीब देशों के श्रमिकों को कम वेतन पर काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। फैक्ट्रियों में काम करने वाले श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिलती, जबकि उनका उत्पादन अमीर देशों में महंगे दामों पर बेचा जाता है। भारत और बांग्लादेश जैसे देशों में कपड़ा उद्योग इसका उदाहरण है, जहां श्रमिकों को अमानवीय परिस्थितियों में काम करने के लिए बाध्य किया जाता है।
  4. संस्थागत नियंत्रण: गरीब देशों की संस्थाएं वैश्विक पूंजी के नियंत्रण में काम करती हैं। राज्य और सरकारी संस्थाएं पूंजीपतियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हितों के प्रति पूरी तरह से ‘भरोसेमंद’ होती हैं, जबकि जनता के हितों की अनदेखी की जाती है। भारत में अडानी, अंबानी जैसे बड़े पूंजीपतियों को भारी सरकारी समर्थन मिलता है, जबकि किसान, मजदूर, और छोटे व्यापारियों को संस्थागत समर्थन से वंचित कर दिया जाता है।

वैश्वीकरण को नव-उपनिवेशवाद (Neo-Colonialism) भी कहा जा सकता है, जिसमें गरीब देशों को राजनीतिक रूप से स्वतंत्र दिखाया जाता है, लेकिन आर्थिक रूप से वे अब भी अमीर देशों पर निर्भर होते हैं।

यह नई साम्राज्यवादी रणनीति है, जिसमें पुराने मॉडल सैन्य नियंत्रण की बजाय आर्थिक नियंत्रण का मॉडल लागू किया जाता है। अमीर देशों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा गरीब देशों की आर्थिक नीतियों को नियंत्रित करना इसी प्रक्रिया का हिस्सा है।

संयुक्त राष्ट्र और विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसी संस्थाओं का उद्देश्य भी वैश्विक व्यापार और वित्तीय ढांचे को इस प्रकार संचालित करना है कि गरीब देशों की संप्रभुता सीमित हो जाए और वे अंतर्राष्ट्रीय पूंजी के अधीन काम करें। इस तरह से अमीर देशों का शोषणकारी नियंत्रण पहले से भी ज्यादा संगठित और प्रभावी हो गया है।

संस्थागत अविश्वास का तर्क और उसका खंडन

इस साल के नोबेल पुरस्कार प्राप्त शोध में गरीब देशों की असमानता के लिए ‘संस्थागत अविश्वास’ को जिम्मेदार ठहराया गया है। लेकिन यह तर्क वास्तविक शोषणकारी ढांचे को छिपाने का तरीका है।

पूंजीवादी व्यवस्था में, संस्थाएं श्रमिक वर्ग और गरीब जनता के लिए अविश्वसनीय हो सकती हैं, लेकिन पूंजीपति वर्ग के लिए तो वही संस्थाएं पूरी तरह से ‘भरोसेमंद’ होती हैं।

भारतीय उदाहरण में देखें तो अडानी, अंबानी जैसे बड़े पूंजीपतियों को नीतिगत और संस्थागत समर्थन प्राप्त है, जबकि किसान आंदोलन जैसी घटनाओं में हमने देखा कि किसानों की मांगों को बार-बार नकारा गया।

इसका स्पष्ट संदेश है कि राज्य की संस्थाएं पूंजीपति वर्ग के हितों की रक्षा के लिए काम करती हैं, जबकि मेहनतकश जनता के लिए उनका कोई समर्थन नहीं है।

यदि इस नोबेल विजेता शोध में असमानता का असली कारण-साम्राज्यवाद और पूंजीवादी शोषण-को उजागर किया गया होता, तो यह पूंजीवादी व्यवस्था को चुनौती देता।

लेकिन इस तरह के निष्कर्षों को नजरअंदाज करके, असमानता की जड़ को छिपाने और पूंजीवादी व्यवस्था को वैधता प्रदान करने की कोशिश की जाती है।

वैश्वीकरण और सैन्य हस्तक्षेप: पूंजीवादी साम्राज्यवाद का संयोजन

वैश्वीकरण के तहत अमीर देश आर्थिक और राजनीतिक दबाव का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन जब यह तरीका काम नहीं करता, तो वे सैन्य हस्तक्षेप का सहारा लेते हैं।

इराक और अफगानिस्तान में अमेरिकी हस्तक्षेप इसके उदाहरण हैं, जहां तेल और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के लिए सैन्य ताकत का इस्तेमाल किया गया। इस प्रकार, वैश्वीकरण और सैन्य हस्तक्षेप एक-दूसरे के पूरक हैं।

जब बहुराष्ट्रीय कंपनियां और पूंजीपति वर्ग गरीब देशों पर आर्थिक नियंत्रण स्थापित नहीं कर पाते, तो वे सैन्य बल का प्रयोग कर उस देश की राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करते हैं।

यह पूंजीवादी साम्राज्यवाद का विस्तार है, जिसमें गरीब देशों के संसाधनों को लूटने के लिए हर संभव तरीका अपनाया जाता है।

स्पष्ट है कि अमीर और गरीब देशों के बीच आय की असमानता का असली कारण साम्राज्यवाद और वैश्वीकरण के शोषणकारी ढांचे हैं, न कि ”संस्थागत अविश्वास’। यह तर्क केवल पूंजीवादी शोषण को वैधता प्रदान करने का एक तरीका है। असमानता का असली कारण उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद की लूट है, जो आज भी वैश्वीकरण के माध्यम से जारी है।

वैश्वीकरण, सैन्य साम्राज्यवाद का नया और परिष्कृत रूप है, जिसमें गरीब देशों के संसाधनों, श्रम, और संस्थाओं का नियंत्रण आर्थिक और राजनीतिक दबाव के माध्यम से किया जाता है।

जबकि सैन्य हस्तक्षेप अब भी होता है, वैश्वीकरण के तहत अमीर देश गरीब देशों को कर्ज के जाल में फंसाते हैं, उनकी नीतियों को नियंत्रित करते हैं,और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के माध्यम से उनका शोषण करते हैं।

गरीब देशों की संस्थाएं पूंजीपतियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए भरोसेमंद हो सकती हैं, लेकिन मेहनतकश जनता के लिए नहीं। यह असमानता केवल आर्थिक नहीं, बल्कि संस्थागत और संरचनात्मक है, जो वैश्विक पूंजीवाद के हितों की सेवा में काम करती है।

अतः, असमानता और गरीबी का समाधान ‘भरोसेमंद संस्थाओं’ का निर्माण नहीं, बल्कि साम्राज्यवादी और पूंजीवादी शोषण से मुक्ति पाने में निहित है। जब तक यह पूंजीवादी और साम्राज्यवादी व्यवस्था बनी रहेगी, अमीर और गरीब देशों के बीच असमानता जारी रहेगी।

वास्तविक परिवर्तन के लिए नई राजनीतिक-आर्थिक व्यवस्था की आवश्यकता है, जो वैश्विक पूंजी के शोषणकारी ढांचे को चुनौती दे और श्रमिक वर्ग और गरीब जनता के हितों की रक्षा करे।

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें