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महाराष्ट्र : क्या है मुद्दा और जनता का रुख है किस तरफ ?

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महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों पर 20 नवंबर 2024 को मतदान होना है। तारीख़ 23 नवंबर को मतगणना होनी है और चुनाव परिणाम आने है। महाराष्ट्र में बहुमत की सरकार बनाने के लिए 288 सीटों में 145 जीतना जरूरी है।

चुनावी प्रचार के बीच आ रही जनता की टिप्पणियों से यह मालूम हो रहा है कि, इस चुनाव में महायुति और महाविकास अघाड़ी के बीच कांटे की टक्कर है।

महायुति में मुख्यतः बीजेपी, शिवसेना (एकनाथ शिंदे), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजीत पवार) और अन्य दल गठबंधन में हैं। वहीं, महाविकास आघाड़ी में मुख्य तौर पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव ठाकरे) राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) सहित कई दलों का गठबंधन है।

इस बार के विधानसभा चुनाव में 4000 से ज्यादा उम्मीदवार मैदान में हैं। इन उम्मीदवारों की जीत-हार का फैसला 23 नवंबर के दिन‌ आने वाले परिणाम करेंगे।

इस बीच सवाल यही बना है कि, इस चुनाव में जनता क्या सोच रही है? जनता के लिए चुनावी मुद्दा क्या है? और यह चुनाव क्यों महत्वपूर्ण है? यह सब जानने के लिए हमने महाराष्ट्र के विख्यात शहर पुणे में कोथरुड विधानसभा क्षेत्र का मुआयना किया। 

कोथरुड विधानसभा में पिछले चुनाव में बीजेपी से चंद्रकांत पाटिल जीते थे।‌ कार्यकाल के बाद इस बार के चुनाव में बीजेपी उन पर फिर भरोसा जता रही है, इसलिए उन्हें कोथरुड विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया गया है। 

वहीं, इस सीट पर शिवसेना (उद्धव ठाकरे) से चंद्रकांत बलभीम मोकाटे को उम्मीदवार बनाया गया है। इस सीट पर शिवसेना (उद्धव ठाकरे) और बीजेपी के बीच तगड़ी टक्कर के कयास लगाए जा रहे हैं। जबकि, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने किशोर नाना शिंदे को भी इस सीट से टिकट दिया है। इनका भी दावा मजबूत बताया जा रहा है। 

जब हम कोथरुड विधानसभा की जनता-जनार्दन से रू-ब-रू होते हैं और चुनावी उथल-पुथल और मुद्दों पर संवाद करते हैं तब भिन्न-भिन्न विचार हमारे समक्ष आते हैं। 

कोथरुड विधानसभा में पहले हमारी मुलाकात राजनीति में रुचि रखने वाले युवा चेतन भालके से होती है। 

चेतन से जब चुनावी हलचल पर चर्चा करते हैं तब वे हमें बताते हैं कि, ‘‘पिछले पांच सालों में जो गतिविधियां हुई उसमें कुछ पार्टियां टूट गई जैसे अजीत पवार शरद पवार से अलग हो गए, शिंदे ठाकरे से अलग हो गए। ऐसे में जनता के मस्तिष्क में यह विराजमान है कि हम किसी एक विचारधारा को वोट दे रहे हैं तो वह टूट रही है।

तब जनता का झुकाव थोड़ा महाविकास अगाड़ी की ओर नजर आ रहा है। इसकी एक वजह अल्पसंख्यकों पर बढ़ता अत्याचार भी है।”

‘‘महाराष्ट्र चुनाव में कई मुद्दे हैं जैसे महाराष्ट्र में बढ़ता ट्रैफिक, रोड एक्सीडेंट, महिलाओं पर अत्याचार, किसानों की आत्महत्या जैसे मुद्दे इस बार पिछली सरकार पर भारी पड़ते दिख रहे हैं। लेकिन, मुझे लगता है पर्यावरण सुरक्षा एक गंभीर मुद्दा है।

इस मुद्दे की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। वहीं, बहुत से चुनावी मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए सरकार मध्यप्रदेश के जैसे महाराष्ट्र में भी लाड़ली बहिना योजना ले आई। मगर महंगाई, महिलाओं और दलितों पर अत्याचार जैसे मुद्दे लोगों को चुनाव में महाविकास अगाड़ी की ओर खींच रहे हैं।”

चेतन आगे फ़रमाते हैं कि,‘‘महाराष्ट्र से रोजगार के कई प्रोजेक्ट बाहर जा रहे हैं, ऐसे में बेरोजगारी का बढ़ता भार यूथ को नाराज कर चुका है। अब यूथ कह रहा है क्या ही करेंगे वोट डालकर। ऐसी में लोकशाही के खिलाफ नजरिया घट रहा है।

मुझे लगता यह है कि इसमें कोई राजनीतिक साजिश है। महाराष्ट्र की पार्टियों में नेता भतीजावाद बढ़ा रहे हैं। इस सब को देखते हुए मेरा अपना झुकाव अंबेडकर, फुले की विचारधारा को साथ लेकर चलने वालों की तरफ है।”

युवराज गटकल कॉलेजी शिक्षा के विद्यार्थी हैं। वे बतलाते हैं कि, ‘‘जितना महत्वपूर्ण लोकसभा चुनाव था, उतना ही महत्वपूर्ण यह महाराष्ट्र का विधानसभा चुनाव है। चुनाव की महत्व इसलिए भी है कि, यह चुनाव नागरिकता और संविधान बचाने की लड़ाई है। आज जिस तरह संवैधानिक संस्थाओं को तोड़ा जा रहा है, उससे लोगों में आक्रोश है”।

“एक समय था जब न्यायालय ने चुनाव में धर्म के नाम पर वोट लेने का प्रचार करने वाले को विधायक पद से हटा दिया था। पर, आज के वक्त चुनाव में धर्म प्रमुख मुद्दा बना दिया गया है। वहीं, जनता के जमीनी मुद्दों को दरकिनार किया जा रहा है। मेरा मानना है कि, चुनाव में मुद्दे योजना ना हो पॉलिसी हो, क्योंकि योजनाएं जनता को पंगु बना देती है।”

युवराज आगे बोलते हैं कि,‘‘महाराष्ट्र की पृष्ठभूमि देखे तो महाराष्ट्र में विदर्भ, वेस्टर्न महाराष्ट्र, मराठवाड़ा, कोंकण मुंबई, उत्तर महाराष्ट्र चुनावी गढ़ है। इन गढ़ों में एक कामन फैक्टर यह है कि, जनता इस बात पर नाराज हैं कि, बीजेपी ने पार्टियों को तोड़ने का काम किया है”।

“चुनाव में मुझे लगता है कि, जातीय समीकरण एक अहम मुद्दा होता है। लेकिन, हमें जाति को पीछे छोड़कर‌ देशीयता और नागरिकता को आगे लाना चाहिए तब लोकतंत्र और सुदृढ़ होगा।”

आगे मुख्य सड़क पर हमें मिलते हैं प्रकाश। वे सड़क किनारे खुले में टोपी, बेल्ट, मोजे बेचते हैं। यही उनकी आजीविका का साधन है। वह बयां करते हैं कि- 

‘‘सरकार से कुछ ऐसा लाभ नहीं मिला कि जिंदगी बदल सके। सरकारें आती हैं, जाती हैं। मगर हम जैसे गरीब लोगों के हालात नहीं बदलते। हम यही सोच कर वोट डालने जाते हैं कि सरकार देश का भला करेगी। मगर, सरकार गरीबों की तस्वीर नहीं बदल पा रही है।”

मुख्य सड़क से हम अंदर की ओर प्रवेश करते हैं, तब देखते हैं कि, कोथरुड विधानसभा के अंदर की सड़कें चरमरा रही हैं। सड़कों पर उड़ती धूल और पसरा कचरा विकास की पोल‌ खोल रहा है। सड़क के किनारे मौजूद बड़ा पाव की एक रेहड़ी के पास कुछ लोग‌ हमें नजर आते हैं। 

जब हम इन लोगों के पास पहुंचकर चुनाव पर बातचीत शुरू करते हैं, तब इन लोगों में से एक उत्तम भी हैं। जो पैर से विकलांग हैं। वे अपनी दशा पर चिंता जताते हुए व्यक्त करते हैं कि-

‘‘सरकार ने हमें कुछ मदद नहीं की। हम चाहते हैं कि, हमारे वोट के बदले हमारे बच्चों को अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य मिले। इस चुनाव में यही हमारा मुद्दा है। वोट कहां देंगें? इस पर उत्तम कहते हैं कि, यह बताना बहुत कठिन है। हम यदि बता देंगे तो लड़ाई-झगड़े की संभावना बन जाती है इसलिए हमें जिसे वोट देना है वह हमारे दिलो-दिमाग में है।”

आगे पास मौजूद गणेश मोहन गिरी सहित कुछ अन्य लोग जाहिर करते हैं कि, ‘‘इस विधानसभा में चंद्रकांत पाटिल को बीजेपी से टिकट मिला है। जबकि, हम चाहते थे कि, यहां से बीजेपी प्रत्याशी अमोल बालवाडकर को बनाया जाए। अमोल बालवाडकर ने जनता के लिए बहुत से काम किए हैं। वो गरीबों की मदद करने में आगे रहे हैं। जनता उन्हें बहुत चाहती है।”

फिर, एक बुजुर्ग अपने कथन में कहते हैं कि, ‘‘बीजेपी सरकार में हमें पेंशन मिल रही है। पेंशन से थोड़ी सी राहत मिलती है। हम अपना वोट इस उम्मीद के साथ बीजेपी को देंगे कि, यदि इस बार बीजेपी की सरकार बने, तब वह महंगाई और बेरोजगारी जैसे प्रचंड मुद्दों पर ध्यान देगी”।

“कुछ सालों से हम देख रहे हैं कि, बेघर लोग सड़कों, सार्वजनिक स्थानों पर पड़े मिल रहे हैं। इन लोगों की स्थिति सुधारने कोई नहीं आ रहा। यह मुद्दा भी अब गहरा रहा है।” 

हम आगे अपने कदम बढ़ाते हैं तब कुछ दूरी पर और लोगों से हम मिलते हैं पर हम देखते हैं कि लोग‌ सहमे हुए हैं। उनका कहना है कि, हम कुछ कहना नहीं चाहते। हम चुनाव में सरकार खिलाफ बोलेगें तो पता नहीं कब सरकार हमारी कमर तोड़ दे, इसलिए चुप ही रहने में भलाई है। 

इसके बाद एक चौराहे को पार करते हुए हम आगे जाते हैं, तब निशा हमें मिलती हैं। वह एक चद्दर से बने टीन सेट में कपड़ा सिलाई मशीन चलाती हैं। कपड़ा सिलाई के काम से ही उनके परिवार का पेट भरता है। 

चुनावी सरगर्मी पर निशा कहती हैं कि, ‘‘चुनाव हमारे लिए एक तमाशा बनकर रह गया है, जिसे हम देखते रहते हैं। चुनाव के बाद जो सरकार बनती हैं, उसे यह याद नहीं रहता कि जिसने हमें वोट दिया उसका क्या सूरत-ए-हाल है”।

“हमें तो लगता है कि, हम जैसे गरीबों का काम सिर्फ वोट डालना रह गया है। बाकी, सरकार में और संसाधनों में हमारी कोई भागीदारी नहीं दिखती है।”

निशा के बोल नहीं थमते कि, निशा के पास खड़ी गौरी भी बोल पड़ती है। वे कहती हैं कि, 

‘‘युवा होने के बावजूद हम वोट डालने नहीं जाते। वोट डालने इसलिए नहीं जाते कि, हमारी जिन्दगी की जद्दोजहद में सरकार की कोई खास भूमिका नहीं रह गयी है। हमारा जीवन संघर्ष बुनियादी सुविधाएं हासिल करने का है। लेकिन, सरकार हमको बुनियादी सुविधाएं भी नहीं दे पा रही, तब हम क्यों वोट दें और क्या करेंगे वोट डालकर।”

निशा और गौरी के संवाद को देखकर गुड़िया भी हमारी तरफ चली आतीं हैं। 

28 वर्षीय गुड़िया चुनाव पर अपनी बात रखते हुए कहतीं हैं कि, ‘‘सरकार से हमको कुछ नहीं मिल रहा। सरकार ने जिस तरह शराब को खुली छूट दे रखी है, उससे हम जैसे लोगों का घर बर्बाद हो रहा है। हमारे पति दिन-रात शराब के नशे में डूबे रहते हैं”।

“उनको ना पत्नी की खबर है ना बच्चों के भविष्य की। सरकार ने हमें कुछ देने की बजाय हमारा चैन और सुकून सब कुछ छीन लिया है। हम हर बार वोट डालते आ रहे थे‌। लेकिन, इस बार हमें अपना वोट नहीं देना है। सरकार इसलिए होनी चाहिए कि समाज से नशा और ग़रीबी का खात्मा हो।

मगर, हमें नहीं लगता कोई सरकार ऐसा कदम उठायेंगी। इसलिए, अब हम अपना वोट नहीं देना चाहते।”

आगे हमें कच्ची सड़क पर एक शख्स पड़े दिखाई देते हैं। यह शख्स हमें अपना‌ नाम नहीं बताते पर यह बताते हैं कि, ‘‘हम बेघर हैं। सरकार आती है, जाती है हमारी किसी को सुध नहीं। जहां जगह मिलती है वहीं सो जाते हैं। इस बार हम शरद पवार की पार्टी को इस आशा से समर्थन करेंगे कि, वो हमारे दिन बदलेंगे।”

इसके आगे थोड़ी दूर चलने पर हमें चादर के सहारे बनी झुग्गियों में कुछ महिलाएं मिलती हैं। इन महिलाओं में से रुक्मणी संतोष सहित कुछ महिलाएं अपने हालात बताते हुए कहतीं हैं कि,- 

‘‘हमारे पास खुदका घर और जमीन नहीं है। हम यहां चादर की झोंपड़ी बना कर रह रहे हैं। जिसका हमें 4000 रुपए किराया देना पड़ता है। सरकार है या नहीं है हमें समझ नहीं आता है। हमारे लिए, सरकार ने ना तो आवास दिया और ना ही शौचालय दिया है। और तो और लाड़ली बहना योजना के पैसे तक हमें नहीं मिल पा रहे हैं।”

इसके बाद मीना बताती है कि, ‘‘हम दूसरे के घरों में झाड़ू-पोछा और बर्तन साफ करने का काम करते हैं। आज महंगाई आसमान छू रही है। गैस, तेल, आटा, दाल के दाम बढ़ रहे हैं”।

“ऐसे में आर्थिक तंगी और महंगाई के बीच मजदूर पिस रहे हैं। अबकी बार हम वोट इसलिए डालेंगे की सरकार हमें गरीबी के चंगुल से बाहर निकाले और हमारा विकास हो। इस मर्तबा हमारा वोट शिवसेना (उद्धव ठाकरे) के प्रत्याशी को जायेगा।”

महाराष्ट्र चुनाव को समझने के लिए जनता के बीच काम करने वाले नागपुर के कार्यकर्ता बंदु मेश्राम से जब हमने बातचीत की, 

तब बंदु बताते हैं कि, ‘‘बीजेपी तरह-तरह की योजना और प्रलोभन के जरिए जनता को अपनी तरफ रिझाने में लगी हुई है। मगर, पिछला लोकसभा चुनाव देखते हुए लग रहा है कि, जनता बीजेपी की चाल को भली-भांति समझ रही है।

महाराष्ट्र चुनाव में दलित वर्ग का वोट एक अलग अहमियत रखता है। लेकिन, महाराष्ट्र में दलितों को लीड करने वाले बहुजन नेता बीजेपी की लाईन में बैठे दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में दलित वोटर किस तरफ होगें समझ पाना थोड़ा मुश्किल है।”

बंदु मेश्राम आगे बयां करते हैं कि-‘‘महाराष्ट्र में बीजेपी और कांग्रेस के समर्थन करने वालों के अलावा भी एक वर्ग नजर आता है। देखना होगा ये वर्ग इस चुनाव को कितना प्रभावित करता है। बाकी चुनाव परिणाम क्या होगा, जनता-जनार्दन तय करेगी।”

अन्ततः चुनाव को लेकर किये गये इस संवाद में अलग-अलग चुनावी विचार निकलकर हमारे समाने आए हैं, लेकिन चुनाव में दूध का दूध और पानी का पानी 23 नवंबर को आने वाले परिणाम से ही होगा। परिणाम ही तय करेंगे किसकी सरकार बनेगी और कौन विपक्ष में बैठेगा। 

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