महाराष्ट्र में बीजेपी के अगुवाई महायुति गठबंधन प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करती दिख रही है. बीजेपी, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजीत पवार की एनसीपी ने मिलकर कांग्रेसके अगुवाई वाले महा विकास अघाड़ी का सफाया कर दिया है. महाराष्ट्र के 288 विधानसभा सीटों के रुझान में महायुति 221 सीटें जीतती हुई दिख रही है, जबकि महा विकास अघाड़ी 55 सीटों पर सिमटती नजर आ रही है. कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की पार्टी एनसीपी कोई असर नहीं दिखा सकी.
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस, उद्धव ठाकरे और शरद पवार की तिकड़ी ने बीजेपी के अगुवाई वाले महायुति को तगड़ा झटका दिया था, लेकिन पांच महीने में तस्वीर बदल गई है. बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी गठबंधन को 220 प्लस सीटें मिल रही हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि पांच महीने में आखिर महाराष्ट्र में ऐसा क्या बदलाव हुआ कि 2024 के लोकसभा में बेहतर प्रदर्शन करने वाली महा विकास अघाड़ी पूरी तरह से फेल और महायुति ने जबरदस्त तरीके से वापसी ही नहीं किया बल्कि दो तिहाई बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करती दिख रही है.
2024 के लोकसभा चुनाव में मिली हार से सबक लेते हुए बीजेपी के अगुवाई वाले महायुति ने कई अहम कदम कदम उठाए. शिंदे सरकार ने तमाम लोकलुभावन योजनाएं शुरू की और उसे जनता तक पहुंचाने का काम किया. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम अजीत पवार ने महाराष्ट्र के तमाम इलाकों का दौरा करके सियासी माहौल बनाने की कवायद की. महिला के लिए लाडली बहना योजना शुरू की, जो चुनाव में अहम साबित हुई हैं. इसके अलावा बीजेपी ने अपने बिगड़े हुए सियासी समीकरण को दुरुस्त करने का दांव कारगर साबित रहा. ऐसे ही कई अहम करण रहे, जो महाराष्ट्र चुनाव में बीजेपी-शिंदे और अजीत पवार के लिए सियासी संजीवनी साबित हुई.
शिंदे सरकार के द्वारा महिलाओं के लिए शुरू की गई लाडली बहना योजना, महायुति के लिए अहम कड़ी साबित हुई है. लोकसभा में मिली हार से भी सबक लिया है और लोकलुभावन योजना का आक्रामक प्रचार किया. लाडली बहना योजना के जरिए महिला मतदाताओं को साधने की कवायद की है. महाराष्ट्र के दो करोड़ से ज्यादा महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपये प्रदान करने वाली लाडली बहना योजना जीत में अहम फैक्टर मानी जा रही. शिंदे सरकार ने योजना का लाभ ज्यादा से ज्यादा महिलाओं तक पहुंचाने के लिए दिन रात एक कर दिया था. सरकार ने इस योजना को महिलाओं तक जल्द से जल्द पहुंचाने के लिए काफी काम किया और चुनाव से पहले तक हर स्तर पर महिलाओं को इस लाभ पहुंचाया गया, जिसकी वजह से राज्य में महिलाओं की वोटिंग में काफी इजाफा हुआ.
लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी के द्वारा संविधान और आरक्षण पर खतरे के मुद्दे ने बीजेपी के अगुवाई वाले महायुति को बड़ा झटका दिया था. महाराष्ट्र में हिंदू वोटर्स पूरी तरह से जातियों में बिखर गया था, जिसका नुकसान बीजेपी-शिंदे-अजीत पवार को झटका लगा. विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जातियों में बिखरे हुए हिंदू वोटों को पूरी तरह से एकजुट करने में कामयाब रही. बीजेपी का कटोगे तो बटोगे का नारा और एक रहोगे तो सेफ रहोगे के नारे ने हिंदू वोटों को एकजुट करने में कारगर साबित हुआ.
बीजेपी और उसके सहयोगी नेताओं ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान वोट जिहाद का नैरेटिव सेट किया, जिसके जरिए यह बताने की कोशिश की गई है कि मुस्लिम समुदाय ने एकजुट होकर लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ वोट दिए हैं. इसका भी असर विधानसभा चुनाव में होता नजर आ रहा है. बीजेपी के पक्ष में हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हुआ, क्योंकि कई मुस्लिम उलेमाओं का महा विकास अघाड़ी के लिए समर्थन करना महंगा पड़ा. मराठा आरक्षण आंदोलन पर चुप्पी अख्तियार करने का दांव भी बीजेपी के लिए मददगार साबित हुई है. इसके चलते मराठा और ओबीसी दोनों को साधने में कामयाब रही. राज्य में ओबीसी वोट पर बीजेपी और उसके गठबंधन ने काफी फोकस किया. पार्टी ने यह प्रयास किया कि ओबीसी वोट छिटकने न पाए. महायुति के पक्ष में ओबीसी ने एकजुटता दिखाई है.
महाराष्ट्र चुनाव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सक्रियता बीजेपी और उसके सहयोगी के लिए सियासी मुफीद रहा. संघ ने अपने 36 सहयोगी संगठनों के साथ जमीनी स्तर पर काम किया. संघ अपने सहयोगी संगठनों के साथ मिलकर मैदान में अपनी छोटी-छोटी टोलियां बनाकर जमीनी स्तर पर काम किया. संघ से जुड़े संगठन जैसे कि विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, मजदूर संघ, किसान संघ, राष्ट्र सेविका समिति, दुर्गा शक्ति जैसे संगठनों के कार्यकर्ता ‘जागरण मंच’ के बैनर के तहत घर-घर प्रचार किया. ये संगठन भूमि जिहाद, लव जिहाद, धर्मांतरण, पथराव, दंगा, भ्रष्टाचार, महिला उत्पीड़न जैसे मुद्दों पर लोगों को जागरूक कर रहे हैं और लोगों से 100 फीसदी मतदान अपील करते नजर आए थे. संघ और उसके सहयोगी संगठन ने मतदाताओं को बूथ केंद्र तक ले जाने का दांव बीजेपी के लिए अहम फैक्टर साबित हुआ.
बीजेपी अपने दिग्गज नेताओं को ही नहीं बल्कि कार्यकर्ताओं को भी महाराष्ट्र चुनाव में जमीनी स्तर पर उतरकर सियासी फिजा को पूरी तरह से बदलने में सफल रही है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने महाराष्ट्र के चुनाव मैनेजमेंट की कमान संभाली और उसे जमीन तक उतारा तो पीएम मोदी ने अपनी जनसभाओं के जरिए सियासी माहौल को बदला. बीजेपी ने इस बार विदर्भ पर भी खास ध्यान दिया. विदर्भ में महायुति ने अपनी स्थिति को काफी सुधारा है. इसके अलावा मराठवाड़ा और वेस्ट महाराष्ट्र में बीजेपी ने मराठा आरक्षण आंदोलन के असर को बेअसर करने के लिए हिंदुत्व का आक्रामक दांव खेला. बीजेपी का वोट जिहाद के जरिए महा विकास अघाड़ी के समीकरण को बिगाड़ने का दांव काम कर गया. हिंदुत्व के एजेंडा सेट किया तो दलित वोटों को भी साधने का दांव चला. जातिगत समीकरण के साथ किसानों को भी साधने में सफल रही.
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