सोनी कुमारी, वाराणसी
प्रदूषण का प्रभाव वातावरण में दिनों दिन बढ़ रहा है। हवा में घुले इस ज़हर से खुद को प्रोटेक्ट करने के लिए अक्सर लोग योग व प्राणायाम की मदद लेते है। मगर गहरी सांस खींचकर की जाने वाली इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
दरअसल, हवा में मौजूद पॉल्यूटेंटस फेफड़ों, गले और नाक को ब्लॉक कर देते हैं। इससे लगातार खांसी और छींकों का सामना करना पड़ता है।
सर्द हवाएं और प्रदूषण मिलकर स्मॉग का कारण बनते हैं, जो वातावरण में घुली एक प्रदूषित हवा के समान है। इसके चलते छाती, गले और नाक में ब्लॉकेज का सामना करना पड़ता है। इससे जहां सांस लेने में तकलीफ, खुजली, नाक बंद और घुटन का सामना करना पड़ता है, तो वहीं त्वचा पर खुजली की समस्या भी बनी रहती है। नाक में मयूकस जहां होने से फेफड़ों में संक्रमण का खतरा बना रहता है।
इसके अलावा त्वचा की शुष्कता एजिंग और एक्ने का कारण भी बनने लगते हैं। अक्सर लोग ऐसे मौसम में सुबह उठकर फेफड़ों की क्षमता का बढ़ाने के लिए प्राणायाम का अभ्यास करते हैं, जो शरीर के लिए नुकसानदायक है।
इन दिनों प्राणायाम करने से प्रदूषित हवा फेफड़ों के संपर्क में आती है। गहरी सांस लेते ही हवा की मात्रा शरीर में बढ़ने लगती है, जो कई प्रकार के संक्रमण का कारण साबित हो रही है।
दरअसल, प्राणायाम से फेफड़ों की क्षमता बढ़ती हैं और शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद मिलती हैं। मगर मुंह से सांस लेने वाले श्वास व्यायाम जैसे शीतली और शीतकारी से बचने का प्रयास करें। इससे गंदी हवा शरीर में प्रवेश करती है।
*1.कपालभाति :*
प्राणायाम करने की जगह कपालभाति का अभ्यास करें। इससे शरीर के इम्यून सिस्टम में सुधार आने लगता है और विषैले पदार्थों को डिटॉक्स करने में भी मदद मिलती है। कपालभाति से रेस्पीरेटरी मसल्स को मज़बूती मिलती है और मांसपेशियों की क्षमता में सुधार आने लगता है। कपालभाति के दौरान तेजी से सांस छोड़ने से शरीर से विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते हैं, जिससे शरीर हेल्दी बना रहता है।
इसे करने के लिए सांस लेने की जगह छोड़ने पर फोकस किया जाता है। इससे टॉक्सिंस को दूर किया जा सकता हैं। प्रदूषित हवा से बचने के लिए इसका नियमित अभ्यास करें।
इस प्रक्रिया को उचित तरीके से करने से 80 फीसदी गंदगी को श्वास के साथ निकाला जा सकता है. कपालभाति से रेस्पीरेटरी मसल्स को मज़बूती मिलती है और मांसपेशियों की क्षमता में सुधार आने लगता है।
*2. विरेचन गति का अभ्यास :*
डीप ब्रीदिंग से खुद को बचाएं और विरेचन गति को स्टीन में शामिल करें। इसमें फोर्सफुल एग्जीलेशन होने से लंग्स की क्लीजिंग होती है और शरीर को मज़बूती मिलती है। इसका अभ्यास करने के लिए दोनों बाजूओं को कोहनी से मोड़ते हुए 90 डिग्री तक उपर उठाएं और फिर नीचे लाएं।इस दौरान सांस लें और छोड़ें। इससे फेफड़ों की क्षमता से सुधार आने लगता है।
*3. जलनेति :*
इस प्रक्रिया को करने से नाक और गले में जमने वाले इंफेक्शन को कम करके ब्रोंकाइटिस के खतरे से बचा जा सकता है। इससे नोज़ ब्लॉक और रनिंग नोज़ की समस्यस हल होने लगती है। इसे करने के लिए अंजलि में पानी भर लें और फिर नाक को पानी के नज़दीक लाकर नाक में पानी भरें। जब पानी महसूस होने लगे, तो फिर एक तरफ से नासिका को दाकर दूसरी ओर से पानी को बाहर निकालें। 2 से 3 बार इस नीति का अभ्यास करें।
*4. खिड़की दरवाज़े बंद रखें :*
घर में अपने आसपास धूल मिट्टी जमा होने से रोकें। इससे छींकना, खांसना और नोज़ ब्लॉकेज का खतरा बढ़ने लगता है। इसके अलावा खिड़की दरवाज़े बंद रखने का भी प्रयास करें। इन दिनों बढ़ते प्रदूषण के चलते हवा में पॉल्यूटेंटस का स्तर बढ़ने लगता है। ऐसे में अशुद्ध हवा से खुद को बचाने के लिए दरवाज़ों और खिड़कियों को बंद रखने का प्रयास करें।
*5. इनडोर प्लांटस लगाएं :*
सांस लेने में होने वाली तकलीफ से बचने के लिए घर के बाहर या आंगन में तुलसी और पीपल के पौधों को लगाने से फायदा मिलता है। इससे प्रदूषण को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। इसके अलावा बेडरूम और लीविंग एरिया में भी पौधो को लगाना आवश्यक है।
*6. सोने से पहले स्टीम :*
डीप इनहेलेशन के लिए पानी में अजवाइन को उबाल लें। इसका अरोमा गले के संकमण को दूर करता है। इसके अलावा नाक में जमा पॉल्यूशन को भी कम किया जा सकता है। पानी को गर्म करने के बाद उपर से तौलिया डालकर कुछ देर स्टीम लें। इससे गले से लेकर फेफड़ोंतक की स्वच्छता बनी रहती है। रात को सोने से पहले स्टीम लेने के बाद नाक में गाय की घी भी अप्लाई करें।
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