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प्रधानमंत्री के खिलाफ नारा लगाने के लिए छात्रों को लेनी होगी प्रशासन की इजाजत 

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 दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक अजीबोगरीब आदेश जारी किया है। जिसमें कहा गया है कि परिसर में किसी भी छात्र या फिर छात्र संगठन या छात्र समूह को बगैर प्रशासन की इजाजत के प्रधानमंत्री समेत संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के खिलाफ नारा देने का अधिकार नहीं है।

और उसमें इस बात को भी चिन्हित किया गया है कि एकैडमिक क्षेत्र और विश्वविद्यालय से बाहर के मुद्दों पर इसकी कतई इजाजत नहीं दी जा सकती है।

जिस देश में विश्वविद्यालय परिसरों में छात्र राजनीति को राजनीति की नर्सरी माना जाता हो। जहां देश और दुनिया की तमाम बातों पर चर्चा होती हो। जहां राजनीति से लेकर विज्ञान और समाजशास्त्र से लेकर भूगोल समेत हर विषय पर गहरी चर्चा और रिसर्च होता हो। वहां के लिए वहीं का प्रशासन कह रहा है कि छात्रों को बोलने का अधिकार नहीं है।

प्रशासन द्वारा जारी की गयी विज्ञप्ति में कहा गया है कि विश्वविद्यालय के सक्षम अधिकारियों के जरिये यह सूचना मिली है कि परिसर में कुछ छात्र प्रधानमंत्री और देश की कानून लागू करने वाली दूसरी एजेंसियों के खिलाफ बगैर विश्वविद्यालय प्रशासन को बताए या फिर उनकी इजाजत के नारे लगा रहे थे। 

इस सिलसिले में 2022 में जारी एक सर्कुलर की तरफ याद दिलाया गया है जिसमें विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से बगैर उसकी इजाजत के छात्रों को विश्वविद्यालय परिसर में कोई भी बैठक, सामूहिक मीटिंग या फिर धरना या फिर नारा लगाने की सलाह नहीं दी गयी थी।

इसके साथ ही इसी बात को एक बार फिर से प्रशासन ने दोहराया है। और इसका उल्लंघन करने पर छात्रों के खिलाफ विश्वविद्यालय के नियमों के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई की धमकी दी गयी है। इससे संबंधित सूचना सभी विभागों के अध्यक्षों, डीन और प्रशासन के दूसरे लोगों को भेज दिया गया है।

विश्वविद्यालय को अभी तक इस देश में स्वायत्तता का दर्जा हासिल है। उसमें सरकार का कोई सीधा हस्तक्षेप नहीं होता है। ऐसा इसलिए माना जाता है।

क्योंकि सोचने और समझने तथा चीजों का गहराई से विश्लेषण करने के लिए छात्रों-अध्यापकों के मस्तिष्क को किसी तरह के बाहरी दबाव से मुक्त होना चाहिए। क्योंकि उसके बगैर यह संभव ही नहीं है। यहां तक कि विश्वविद्यालय के अध्यापकों को राजनीति में हिस्सा लेने की छूट है।

और यही कारण है कि रज्जू भैया से लेकर मुरली मनोहर जोशी तक आरएसएस-बीजेपी की राजनीति करते रहे। और मुरली मनोहर जोशी तो बाकायदा चुनाव लड़े और केंद्र में मंत्री भी रहे। लेकिन अब उसी तरह की गतिविधियों पर मौजूदा सरकार के निर्देश पर विश्वविद्यालय प्रशासन रोक लगाना चाहता है।

यह न केवल बोलने की बुनियादी आजादी के अधिकार के खिलाफ है बल्कि परिसरों की स्वायत्तता और स्वतंत्रता पर भी सवालिया निशान लगा देता है।

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