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पशु चिकित्सकों की कमी से चुनौती बनता पशुपालन

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शारदा मेघवाल
लूणकरणसर, राजस्थान

देश के अन्य राज्यों की तरह राजस्थान के बीकानेर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में भी पशुपालन न केवल रोजगार का प्रमुख साधन है बल्कि इससे जुड़े आर्थिक और सामाजिक पहलू भी इस क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं. लेकिन पशुपालन में बढ़ती कठिनाइयों ने किसानों और पशुपालकों के सामने गंभीर चुनौतियां खड़ी कर दी है. इनके सामने सबसे बड़ी समस्या अपने बीमार पशुओं के इलाज के लिए पशु चिकित्सकों की कमी है. पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल और समय पर उपचार के लिए विशेषज्ञ पशु चिकित्सकों की जरूरत हर गांव में महसूस की जा रही है. समय पर उपचार न मिलने के कारण पशु गंभीर रूप से बीमार हो जाते हैं, जिससे किसानों की आय प्रभावित होती है. वहीं उनकी उत्पादकता कम हो जाती है. 20वीं पशुधन गणना 2019 के अनुसार देश में कुल पशुधन आबादी करीब 535.78 मिलियन (53 करोड़ 57 लाख) है जो 2012 की तुलना में 4.6 प्रतिशत अधिक है. हालांकि इस अवधि में राजस्थान में पशुधन की संख्या 56.8 मिलियन (5.68 करोड़) दर्ज की गई जो 2012 की तुलना में 1.66 प्रतिशत कम है. इसके बावजूद उत्तर प्रदेश के बाद राजस्थान देश का दूसरा सबसे अधिक पशुधन उपलब्ध कराने वाला राज्य बना हुआ है. याद रहे कि देश में प्रति पांच वर्ष बाद पशुधन गणना की जाती है.

बीकानेर जैसे रेगिस्तानी इलाकों में पशुपालन के रूप में गाय, भेड़, बकरी, घोड़ा और ऊंट प्रमुख रूप से मिलते हैं. जिससे न केवल दूध बल्कि मांस, बाल और उनके फर आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत है. इसे एशिया की सबसे बड़ी ऊन मंडी के रूप में जाना जाता है. बीकानेर स्थित लूणकरणसर ब्लॉक से 20 किमी दूर राजपुरा हुडान गांव में आर्थिक रूप से कमज़ोर किसानों के पास भी कृषि के अतिरिक्त पशुधन आय का एकमात्र साधन है. ऐसे पशु चिकित्सकों की कमी न केवल मवेशियों के स्वास्थ्य पर बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति पर भी गहरा असर डाल रही है. ग्रामीण जीवन का एक बड़ा हिस्सा पशुधन ही माना जाता है, जो न केवल भोजन का स्रोत है, बल्कि आर्थिक स्थिरता का भी माध्यम है. ऐसी स्थिति में पशु चिकित्सकों की भूमिका अनिवार्य हो जाती है. जो न केवल पशुओं के रोगों का निदान करते हैं, बल्कि उनके प्रजनन, स्वास्थ्य विकास और निवारक उपायों के माध्यम से पशुधन की संख्या और गुणवत्ता में भी वृद्धि करते हैं. उनके अनुभव और विशेषज्ञता के कारण पशुओं की विभिन्न बीमारियों का इलाज संभव हो पाता है, जिससे किसानों की मेहनत तो बढ़ती ही है, साथ ही अर्थव्यवस्था को भी सहारा मिलता है. ऐसे में पशु चिकित्सकों की कमी से पशुओं को पर्याप्त देखभाल नहीं मिल पाता है. उचित समय पर उन्हें उपचार उपलब्ध नहीं हो पाता है.

इस संबंध में गांव के एक किसान भंवरलाल मेघवाल कहते हैं कि यहां के अधिकांश लोग बड़ी संख्या में पशुपालन कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं, लेकिन अगर इस इलाके में कोई पशु बीमार पड़ जाए तो उसके लिए एक भी पशु चिकित्सक नहीं है और ना ही यहां पशुओं का कोई अस्पताल है. हमें डॉक्टर को बुलाने के लिए गांव से लगभग 25 किमी दूर सेखसर गांव जाना पड़ता है. कई बार तो गंभीर रूप से बीमार पशुओं को वहां तक ले जाने में अथवा वहां से डॉक्टर को बुलाने में ही उन जानवरों की मौत तक हो जाती है. जिससे आर्थिक रूप से हमें काफी नुकसान होता है. वह कहते हैं कि सरकार को अधिक से अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में पशु चिकित्सालय खोलने और पशु चिकित्सकों की तैनाती पर गंभीरता से प्रयास करनी चाहिए, ताकि किसान अपने पशुओं की बेहतर देखभाल कर सकें.

एक अन्य ग्रामीण 45 वर्षीय रूपाराम कहते हैं कि ‘रेगिस्तानी क्षेत्र होने के कारण यहां पानी की भारी कमी है. पीने का साफ पानी न मिलने की वजह से भी अक्सर पशु बीमार होकर अपनी जान गंवा देते हैं. अगर हम किसी प्राइवेट डॉक्टर में जाते हैं तो वे बहुत ज्यादा फीस लेते हैं. इसके अलावा पशुओं के लिए मिलने वाली दवाइयां भी काफ़ी महंगी होती हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि हम ग़रीब लोग अपने बच्चों का पालन-पोषण करें या अपने पशुओं का इलाज करवाएं? वहीं 55 वर्षीय पंचराम कहते हैं कि राजपुरा हुडान या उसके करीब के किसी भी गांव में पशुओं के लिए कोई भी सरकारी अस्पताल या सस्ते दर पर दवाएं उपलब्ध नहीं है. जब हमारे किसी पशु की टांग भी टूट जाती है तो हम उसका इलाज कराने के लिए स्थानीय गौशाला में ले जाते हैं, जहां गौशाला वाले हमसे बहुत बड़ी रकम मांगते हैं. जिसे पूरा करने के लिए हम गरीब किसान समर्थ नहीं होते हैं. वह कहते हैं कि गांव में जब इंसानों के लिए पीने का साफ़ पानी उपलब्ध नहीं हो पाता है तो पशुओं के लिए पीने का साफ़ पानी कहां से उपलब्ध हो सकता है? हमें लगता है कि यदि हमारे गांव में भी कोई सरकारी स्तर पर पशुओं के लिए अस्पताल और डॉक्टर होता तो अच्छा होता.

राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में पशु चिकित्सालयों और डॉक्टरों की कमी के कारण किसानों को अपने पशुओं के इलाज के लिए अक्सर दूरदराज के शहरों में जाना पड़ता है, जिससे न केवल उनका समय बर्बाद होता है बल्कि अतिरिक्त खर्च भी उठाना पड़ता है. अक्सर बीमारी की गंभीरता के कारण पशुओं की मृत्यु तक हो जाती है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. ग्रामीण क्षेत्रों में पशु रोगों के उपचार के लिए विशेषज्ञों की भारी कमी है, जिससे सामाजिक और आर्थिक समस्याएं पैदा होती हैं. पशु चिकित्सक पशुओं को विशेष टीके लगाते हैं, उनके आहार में सुधार करने की सलाह देते हैं और नई तकनीकों के माध्यम से पशुधन उत्पादन बढ़ाने में मदद करते हैं. उनकी मदद से दूध उत्पादन में भी वृद्धि संभव है, जो किसानों के लिए अतिरिक्त आय का प्रमुख स्रोत बन जाता है. ऐसे में सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में पशु चिकित्सकों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए तथा पशुपालन को आधुनिक तरीके से विकसित करने का प्रयास करनी चाहिए ताकि देश दूध, मांस व अन्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल की जा सके.

सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में पशु चिकित्सकों की तैनाती सुनिश्चित करने तथा वहां समुचित क्लीनिक स्थापित करने की आवश्यकता पर ज़ोर देने की आवश्यकता है. इससे न केवल किसानों का अपने पशुओं की देखभाल करना आसान हो जाएगा, बल्कि पशुधन उत्पादकता भी बढ़ेगी, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूत होगी. पिछले वर्ष इस दिशा में राजस्थान सरकार ने काफी सकारात्मक प्रयास शुरू किया है. पिछले वर्ष फ़रवरी में राज्य सरकार ने सभी ज़िलों में मोबाइल वेटरनरी यूनिट की शुरुआत की है. जिसमें किसानों को अपने बीमार पशुओं के इलाज के लिए घर बैठे चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है. इसके लिए 108 की तर्ज़ पर 1962 नंबर की हेल्पलाइन सेवा शुरू की गई है. जिस पर कॉल करने पर एक घंटे में पशु चिकित्सक पशुपालकों के घर पहुंच मवेशी के इलाज से संबंधित प्रक्रिया शुरू कर देंगे. वहीं पिछले महीने ही राजस्थान सरकार ने मवेशियों का उपचार गांव के पास ही करने के लिए बेहतर उपकरणों और चिकित्सकों से लैस अस्पताल खोलने का निर्णय लिया है.

इसके अलावा प्रदेश भर में संचालित 19 पशु चिकित्सालयों को प्रथम श्रेणी के चिकित्सालयों में तब्दील करने का निर्णय लिया गया है जबकि 98 पशु चिकित्सा उपकेंद्रों को पशु चिकित्सा केंद्रों में क्रमोन्नत करने का भी फैसला किया गया है. इसकी प्रशासनिक और वित्तीय स्वीकृति भी जारी कर दी गई है. पशु चिकित्सालयों को क्रमोन्नत करने से अधिक लाभ 98 उप केन्द्र को क्रमोन्नत करने से मिलेगा. उप केंद्रों पर सिर्फ कंपाउंडर की नियुक्ति होती है. जबकि पशु चिकित्सा केंद्र पर पशु चिकित्सक नियुक्त होंगे. ऐसे ही प्रथम श्रेणी अस्पताल में क्रमोन्नत होने वाले अस्पतालों के क्षेत्र के पशुपालकों को वरिष्ठ पशु चिकित्सकों की सेवाएं मिल सकेगी जिससे पशुओं का और बेहतर तरीके से इलाज संभव हो सकेगा. ऐसे में बीकानेर में एक पशु चिकित्सा केंद्र को प्रथम श्रेणी का जबकि 2 उप केंद्रों को पशु चिकित्सा केंद्र के रूप में तब्दील किया जायेगा. इससे राजपुरा हुडान और उसके जैसे अन्य गांवों के किसानों और पशुपालकों को न केवल आर्थिक रूप से मदद मिलेगी बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था में भी सकारात्मक बदलाव आ सकता है. (चरखा फीचर्स)

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