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कृषि क्षेत्र को छोड़ने के लिए किसानों को मजबूर किया जा रहा है

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परमजीत सिंह

कोरोना काल की आपदा से जब पूरा देश तबाह है तो उसे अवसर में कैसे बदला जाता है, यह देश के प्रधानमंत्री से सीखना चाहिए। आपदा को अवसर में बदलने का जो खेल होता है उसका शिकार मजदूर, किसान सबसे पहले होते हैं। ऐसा लगता है कि कोरोना देश की आम जनता के लिए मुसीबत साबित हो रहा है तो वहीं सरकार तथा सरकार समर्थित पूंजीपतियों के लिए एक मौका की तरह है।

जब पहली बार कोविड-19 ने भारत में दस्तक दी थी, तब एक के बाद एक राज्य सरकारों ने मजदूरों के अधिकारों के लिए बने कानून को रद्द करना शुरू कर दिया.. वहीं केंद्र सरकार ने किसानों के खिलाफ एक के बाद एक तीन कानून पास कराके कृषि की बुनियाद ही हिला कर रख दी। सितंबर में बने तीनों कानून के खिलाफ किसान पिछले लगभग 6 माह से दिल्ली के बार्डर पर बैठे हैं, जिनकी सुध लेने के लिए कोई सरकार तैयार नहीं है।

जब सरकार को इससे भी मन नहीं भरा तो डीजल और पेट्रोल का दाम बढ़ाकर कृषि पर अतरिक्त बोझ लाद दिया। इस बढ़े हुए दाम से जहाँ कृषि में लागत बढ़ेगी वहीं किसानों की आमदनी पर भी बुरा असर पड़ेगा। हो सकता है कि किसान की आर्थिक हालत और खराब हो जिससे आत्महत्या में बढ़ोत्तरी देखने को मिले।

यह सब होते हुए वर्ष 2020-21 का रबी सीजन बीत गया लेकिन सरकार ने किसी प्रकार की नई योजना शुरू करना तो दूर की बात है, बल्कि एक बड़ा बोझ और लाद दिया। भारत सरकार की सबसे बड़ी रासायनिक खाद निर्माता कंपनी iffco ने खादों के दामों में बेतहाशा वृद्धि कर दी। 

IFFCO के नये पैकेट पर जब नया रेट बढ़कर आया तो इस बात पर विवाद शुरू हो गया कि कोरोना काल में उर्वरक का मूल्य बढ़ाने की क्या जरूरत थी। और तभी से यह आशंका लगने लगी थी जब देश में उर्वरक बनाने वाली निजी स्वामित्व की कंपनी ने रेट बढ़ाया था, तो IFFCO भी मूल्य बढ़ाएगी। क्या निजी कंपनियों के बाजार को बनाए रखने के लिए सरकारी स्वामित्व वाली कम्पनी ईफको ने उर्वरक के रेट बढ़ाने का फैसला लिया?

7 अप्रैल 2021 को जब iffco का एक पेज सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो किसानों और किसानों के प्रति सहानुभूति रखने वालों के बीच इसे लेकर हंगामा मच गया। एक तरफ देश और जनता कोरना की मार झेल रही है, कृषि में घाटा होने के कारण पिछले 6 माह से किसान दिल्ली के बार्डर पर बैठे हैं.. तो इफको को ऐसे विज्ञापन की जरूरत क्या थी.? देश में किसी भी ओद्योगिक क्षेत्र में ऐसी वृद्धि इतनी देखने को मिली जितनी कि iffco के द्वारा उत्पादित उर्वरक में की गई है।

सोशल मीडिया पर लगातार सरकार की हो रही आलोचना को देखते हुए iffco ने स्थिति को संभालने की कोशिश की। किसानों की नाराजगी को शांत करने के लिए iffco की तरफ से प्रबंधक निदेश डॉ. यू.एस. अवस्थी सामने आए। उन्होंने ने 8 अप्रैल को एक के बाद एक 4 से ज्यादा ट्वीट किये। उन्होंने ट्विटर के जरिये यह बताने की कोशिश की की iffco के द्वारा बढाया गया दाम किसानों पर लागू नहीं होंगा। iffco के पास पहले से 11.26 लाख टन स्टोरेज है तथा किसानों को उर्वरक पुरानी दरों पर ही दिया जायेगा।

IFFCO की तरफ से प्रबंधक निदेशक डॉ. यू.एस. अवस्थी ने किसी भी ट्वीट में यह नहीं बताया कि iffco के द्वारा नया उर्वरक भी आएगा (स्टाक किये हुए उर्वरक के बाद) उसके मूल्य में वृद्धि होगी या नहीं। इसलिए यह कयास लगाया जा रहा था कि मूल्य में वृद्धि तो हो चुकी है, अब यह देखना था कि स्टॉक उर्वक पर मूल्य बढ़ाया जायेगा या फिर नई आने वाले उर्वरक पर मूल्य बढ़ाया जायेगा।

राज्यों ने iffco के बढाये हुए मूल्य को लागू कर दिया लेकिन जैसे ही खरीफ वर्ष 2021-22 शुरू होने को आया राज्य सरकारों ने एक एक करके iffco के द्वारा जारी नये मूल्य को लागू करना शुरू कर दिया। लेकिन यह कदम कृषि घातक साबित होगा, और इससे कृषि लागत इतनी बढ़ जाएगी कि आम किसान के बूते की बात नहीं होगी।

छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने जनसंपर्क विभाग की तरफ से 8 मई को जारी आदेश में यह जानकारी दी गई कि राज्य में उर्वरक का मूल्य बढा दिया गया और राज्य के कृषि मंत्री श्री रविंद्र चौबे ने केन्द्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री से उर्वरक के बढ़े दामों को कम करने का आग्रह किया। राज्य के कृषि मंत्री के द्वारा बताया कि DAP उर्वरक के मूल्य में 58 प्रतिशत तक की वृद्धि की गई है। इसके साथ ही NPK, MOP, सिंगल सुपर फास्फेट के दामों में भी वृद्धि हुई है।

इससे iffco का वह दावा झूठा साबित हुआ है कि गैर यूरिया खादों के दामों में वृद्धि नहीं की गई है और यह तय हो गया है कि देश में उर्वक का मूल्य बढा दिया गया है। मध्य प्रदेश के शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार ने iffco के द्वारा बढाये गये मूल्य को राज्य में लागू भी कर दिया है। यह मूल्य वृद्धि इस खरीफ मौसम से लागू होगी। लेकिन यहाँ सोचने वाली बात यह है कि iffco ने यह दावा किया था की उसके पास 11.26 लाख मैट्रिक टन उर्वरक स्टाक है तथा किसानों को पुरानी रेट पर ही उर्वरक उपलब्ध कराया जायेगा। तो फिर मध्य प्रदेश सरकार ने बढ़ी हुई नई दर को कैसे लागू कर दिया।

राज्य में लागू नये रेट से जहाँ कृषि में लागत बढ़ेगा वहीं किसान कृषि से दूर जाने की कोशिश करेंगे। केंद्र सरकार के हालिया लिए गये निर्णय से ऐसा लगता है कि सरकार भी यही चाहती है कि किसान कृषि को छोड़ शहरों की तरफ भागें, जिससे कंपनियों को सस्ता तथा सुलभ मजदूर मिल सके।

किसानों पर इस फैसले से लाचारी तथा बेबसी साफ देखी जा सकती है। रीवा के किसान श्री वंशगोपाल सिंह ने बताया की अगर सरकार बढ़े हुए रेट को लागू रखती है तो कृषि को छोड़ना पड़ेगा। उन्होंने बताया कि एक तो पहले से ही खेती में घाटा हो रहा था और ऊपर से इस निर्णय से खेती करना मुश्किल हो जायेगी। मंदसौर के किसान वल्लभ पाटीदार जो दिल्ली में चल रहे किसान आन्दोलन में भी शामिल रहे हैं, उनका मानना है कि अगर DAP के दामों में 58 प्रतिशत की वृद्धि हुई है तो किसानों द्वारा उत्पादित फसलों के दाम भी 58 प्रतिशत कीके हिसाब से बढ़ाए जाएं। तभी खेती में कुछ बचत होगी अन्यथा खेती छोड़नी पड़ेगी।

लेखक परमजीत सिंह मध्यप्रदेश के किसान नेता हैं।

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