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मोदी की मुसीबत बने योगी……!

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हिसाम सिद्दीकी

लखनऊ! पंचायत चुनावों में शर्मनाक शिकस्त, नीतिआयोग के एसडीजी इंडेक्स में उत्तर प्रदेश के फिसड्डी होने का एलान, बीजेपी के इण्टरनल सर्वे में 2022 में पार्टी के हारने का वाजेह इशारा, बीजेपी के बेश्तर वजीरों और मेम्बरान असम्बली की योगी से नाराजगी, प्रदेश के लॉ एण्ड आर्डर पर ढीली पकड़, वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी के नजदीकी अरविंद शर्मा को प्रदेश की कैबिनेट में अहम दर्जा न दिए जाने और कोविड-19 की दूसरी लहर से निपटने में पूरी तरह नाकाम रहने के बावजूद वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी चाहकर भी उत्तर प्रदेश के वजीर-ए-आला योगी आदित्यनाथ के खिलाफ कुछ नहीं कर पा रहे हैं। अब योगी नरेन्द्र मोदी के लिए एक नई मुसीबत बन गए हैं। इसकी वजह यह है कि आरएसएस को यूपी में अब सिर्फ योगी से यह उम्मीद है कि आठ महीने बाद होने वाले असम्बली एलक्शन में योगी ही बीजेपी की कश्ती को पार लगा सकते हैं।

आरएसएस ने अगला एलक्शन जारेह (उग्र) हिन्दुत्व के नाम पर ही लड़ाने का इरादा कर लिया है जिसके लिए योगी आदित्यनाथ को ही सबसे ज्यादा अहल समझा जा रहा है। आरएसएस को भी बखूबी यह अंदाजा हो चुका है कि योगी के कामकाज की बुनियाद पर अगले एलक्शन में कामयाबी हासिल नहीं की जा सकती। बस एक तरीका बचा है कि जारेह (उग्र) हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद के नारे पर एलक्शन लड़ा जाए। आरएसएस की जानिब से इशारा मिलते ही योगी आदित्यनाथ ने अपने तरीके से सरकार चलाने का काम शुरू भी कर दिया है। किसी ने ठीक ही कहा है कि नरेन्द्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी अब उस हालत में है कि योगी को न तोड़ सकती है न मरोड़ सकती है और न छोड़ सकती है। वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी वजीर-ए-आला योगी आदित्यनाथ से नाराज हैं खबर है कि तकरीबन चार-साढे चार महीनों से मोदी ने योगी से मुलाकात तक नहीं की है। इंतेहा तो तब हो गई जब चार जून को योगी के जन्मदिन पर सदर जम्हूरिया रामनाथ कोविंद, प्राइम मिनिस्टर नरेन्द्र मोदी, होम मिनिस्टर अमित शाह और बीजेपी सदर जेपी नड्डा वगैरह ने योगी को मुबारकबाद देने के लिए एक ट्वीट तक नहीं किया। हालांकि नरेन्द्र मोदी का तरीका है कि अपनी पार्टी और अपोजीशन के अहम लीडरान की बर्थडे पर वह सुबह सवेरे ही ट्वीट करते हैं।योगी आदित्यनाथ का आरएसएस का बैकग्राउण्ड नहीं है। 2014 के अलावा वह कभी बीजेपी के निशान पर एलक्शन भी नहीं लड़े वह अपनी ही पार्टी हिन्दू महासभा से गोरखपुर से एलक्शन लड़कर जीतते रहे हैं। सियासत में वह बीजेपी के हमेशा से नजदीक जरूर रहे। इसके बावजूद 2017 में जबरदस्त अक्सरियत हासिल करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने अपने किसी रिवायती लीडर के बजाए योगी आदित्यनाथ को ही प्रदेश का वजीर-ए-आला बना दिया। कहते हैं कि उन्हें चीफ मिनिस्टर बनाने का फैसला आरएसएस का था क्योकि आरएसएस को उत्तर प्रदेश में एक जारेह (उग्र) हिन्दुत्ववादी लीडर की सख्त तलाश थी यह दीगर बात है कि योगी जारेह हिन्दुत्ववाद को ज्यादा आगे नहीं बढा सके वजह यह है कि वह एक ही जात के लोगों को आगे बढाने में लगे रहे।

आरएसएस ने योगी आदित्यनाथ को मोदी के बाद दूसरे नम्बर का लीडर बनाने की भरपूर कोशिशें कर लीं बिहार, झारखण्ड, मगरिबी बंगाल, तमिलनाडु, केरल वगैरह के असम्बली इंतेखाबात में योगी को पार्टी का स्टार कम्पेनर बनाकर भेजा गया यह दीगर बात है कि जहां-जहां योगी गए वहीं-वहीं बीजेपी को शिकस्त का सामना करना पड़ा। वजह यह है कि योगी में अच्छी और अवाम को जोड़ने वाली तकरीर करने की सलाहियत नहीं है। वह जहां कहीं जाते हैं लव जेहाद, गौकुशी, एण्टी रोमियो मुहिम और हिन्दुत्व पर ही बोलते हैं। इंतेहा तो तब हो गई जब दुर्गा देवी पर गाय की बलि देने वाले मगरिबी बंगाल के मुस्लिम अक्सरियत मालदा में भी योगी ने तकरीर की कि उनकी पार्टी की सरकार बनते ही बंगाल में गौकुशी पर पाबंदी लगा दी जाएगी। केरल और तमिलनाडु में उन्होंने लव जेहाद और हिन्दुत्व की बात की, पूरा देश जानता है कि तमिलनाडु, केरल और बंगाल के लोग हिन्दुत्व में नहीं फंसते हैं।उत्तर प्रदेश मे कोरोना की दोनों लहरों खुसूसन दूसरी लहर के दौरान योगी आदित्यनाथ सरकार जिस तरह नाकाम रही और तकरीबन हर कुन्बे का कोई न कोई मेम्बर आक्सीजन, वेंटीलेटर और अस्पतालों में बिस्तर न मिलने की वजह से मौत के मुंह में चला गया। मरने के बाद उन्हें श्मशानों में जलने के लिए पांच से पन्द्रह घंटों का इंतजार करना पड़ा, उन्नाव, कानपुर, इलाहाबाद और गाजीपुर से बिहार के बक्सर तक गंगा के अंदर और किनारों पर हजारों लाशें दिखाई पड़ीं इस सब बातों ने बीजेपी के हिन्दुत्व की धार को काफी हद तक कुन्द किया है। इस हकीकत से नरेन्द्र मोदी और अमित शाह बखूबी वाकिफ हैं। इसके बावजूद अमित शाह और जेपी नड्डा को आरएसएस का यही मश्विरा या हिदायत है कि वह जून से ही उत्तर प्रदेश में डट जाएं।उत्तर प्रदेश की जो सियासी अहमियत है वह किसी से छुपी हुई नहीं है। आम ख्याल तो यह है कि 2022 के यूपी असम्बली एलक्शन के नतीजों पर ही 2024 के लोक सभा एलक्शन के नतायज का इंहिसार रहेगा। इसीलिए यूपी के सिलसिले में दिल्ली में जो पहली मीटिंग हुई उसमें वजीर-ए-आजम मोदी के साथ आरएसएस में दूसरे नम्बर के सबसे अहम ओहदेदार दत्तत्रेय होसबोले, होम मिनिस्टर अमित शाह, बीजेपी सदर जेपी नड्डा और उत्तर प्रदेश में आरएसएस के इंचार्ज सुनील बंसल शामिल हुए। इस मीटिंग में यूपी बीजेपी के सदर स्वन्त्रदेव सिंह और वजीर-ए-आला योगी आदित्यनाथ को नहीं बुलाया गया था। इसके बाद बीजेपी के जनरल सेक्रेटरी बीएल संतोष और उत्तर प्रदेश के इंचार्ज राधा मोहन सिंह ने लखनऊ आकर कुछ एक दर्जन वजीरों और बड़ी तादाद में मेम्बरान असम्बली से मुलाकात करके सरकार के बारे में फीडबैक हासिल किया। खबर है कि तकरीबन सभी का कहना था कि अगर योगी की कयादत में ही फरवरी-मार्च का असम्बली एलक्शन लड़ा गया तो पार्टी सत्ता से बाहर हो जाएगी। इस रिपोर्ट के बावजूद आरएसएस योगी को हटाने के लिए तैयार नहीं हुआ। शायद संघ का मानना है कि चुनाव में बमुश्किल आठ महीने बचे हैं ऐसे में योगी को हटाना जंग के दौरान सिपहसालार को तब्दील करने जैसा होगा जो किसी भी हालत में मुनासिब नहीं है।

संघ के फैसले के सामने मोदी भी बेबस हो गए लगते हैं। खबर है कि आरएसएस लीडरान के कहने पर योगी इस बात पर तैयार हो गए हैं कि लखनऊ में कोविड-19 का असर खत्म होने और कर्फ्यू हटने के बाद मोदी के नजदीकी अरविंद शर्मा समेत कुछ नए चेहरों को रियासती वजारत में शामिल कराएंगे। वजारत में अभी छः वजीरों की गुंजाइश है।याद रहे कि योगी आदित्यनाथ के कामकाज के तरीकों से पार्टी के बेश्तर (अधिकांश) वजीर और मेम्बरान असम्बली खुश और मुतमइन नहीं हैं। सीतापुर के एमएलए राकेश राठौर ने यहां तक कह दिया कि वह सरकार के खिलाफ बोल नहीं सकते खौफ यह है कि कहीं उनपर राजद्रोह का मुकदमा न चल जाए। हरदोई के एक एमएलए का जवान बेटा डाक्टरों की लापरवाई की वजह से मौत के मुंह में चला गया। वह रोते बिलखते दौड़ लगाते रहे लेकिन हफ्तों तक एफआईआर दर्ज नहीं करा पाए।

दरअस्ल मोदी और योगी को उसी वक्त चौकन्ना हो जाना चाहिए था जब सरकार के कामकाज के खिलाफ डेढ-दो सौ मेम्बरान असम्बली ने 2019 में असम्बली के अंदर धरना दिया था। प्रदेश का बैकवर्ड और दलित तबका अब पहले की तरह बीजेपी के साथ नहीं है, जाटों का एक बड़ा तबका किसान आंदोलन की वजह से बीजेपी मुखालिफ हो गया। ब्राहमणों में वैसे तो शुरू से ही योगी से नाराजगी थी इस नाराजगी को कानपुर के दहशतगर्द विकास दुबे के इनकाउण्टर और उसके बाद तकरीबन एक दर्जन ब्राहमणों को इनकाउण्टर बताकर कत्ल करने की कार्रवाई ने और भी हवा दे दी। इस मामले में महज दस-पन्द्रह दिन पहले विकास दुबे के एक गुर्गे के साथ व्याह कर आई खुशी दुबे की गिरफ्तारी ने भी आग में घी का काम किया। खुशी दुबे का शौहर भी इनकाउण्टर में मारा गया था। लखनऊ में कांग्रेस लीडर सुशील दुबे ने योगी के जन्म दिन पर मुबारकबाद देते हुए ट्वीट किया और लिखा कि रिटर्न गिफ्ट में खुशी दुबे को रिहा करा दीजिए।

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