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कोविड मृतकों के परिवारों को मुआवजा देने से मना नहीं कर सकती सरकार

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सुभाष चंद्र गर्ग

सुप्रीम कोर्ट में गौरव कुमार बंसल बनाम भारतीय संघ एवं अन्य डब्ल्यू.पी. (सी) नंबर 539/2021 मामले में याचिकाकर्ता ने एक सीधी-सादी मांग की थी. केंद्र सरकार को यह निर्देश दिया जाए कि वह कोविड-19 वायरस से मौत का शिकार होने वाले सभी लोगों के परिवारों को 4 लाख रुपए की अनुग्रह राशि यानी एक्स ग्रेशिया कंपनसेशन दे.

केंद्र सरकार ने एक लंबा चौड़ा एफिडेविट दायर करके एपेक्स कोर्ट से यह निवेदन किया है कि इस मांग को ठुकरा दिया जाए.

पदा प्रबंधन एक्ट, 2005 के तहत कोविड राहत उचित है

इस पर कोई विवाद नहीं है कि आपदा प्रबंधन एक्ट, 2005 (डीएमए 2005) के सेक्शन 12 (iii) में राहत का प्रावधान है. इसमें केंद्र सरकार के मातहत राष्ट्रीय प्राधिकरण के लिए यह अनिवार्य किया गया है कि वह विशिष्ट आपदाओं में होने वाली मौतों के मामले में अनुग्रह राशि देने के लिए दिशानिर्देश बनाए.इस पर कोई बहस नहीं है कि इस संबंध में 2015 में दिशानिर्देश बनाए गए थे, जो अब भी लागू हैं और उनमें यह प्रावधान है कि “4.00 लाख रुपए प्रति मृत व्यक्ति” के हिसाब से “उनके परिवारों को अनुग्रह राशि दी जाएगी.”

डीएमए 2005 में जिन 12 विशिष्ट आपदाओं का जिक्र है, उनमें कोविड-19 शामिल नहीं है.  

हालांकि यह भी सभी जानते हैं कि केंद्र सरकार ने कोविड-19 को डीएमए 2005 के तहत आने वाली आपदा ही समझा है. वह मार्च 2020 से ही इस कानून के तहत आने वाले प्राधिकरण और शक्तियों के जरिए इसका पूरा प्रबंधन कर रही है. केंद्र सरकार ने इस पर कोई तरकार नहीं की कि डीएंमए 2005 और 2015 के दिशानिर्देश कोविड-19 पर लागू होते हैं.

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो एफिडेविट दायर किया है, उसमें बताया गया है कि उसने कोविड-19 के प्रबंधन के लिए क्या-क्या किया है. लेकिन उसने राहत की मांग को ठुकरा दिया है और इसके मुख्य रूप से चार आधार हैं.

तो, फिर सरकार ने राहत देने से इनकार क्यों कर दिया

  1. केंद्र सरकार ने कोविड-19 की रोकथाम और उसके प्रबंधन के लिए कई वित्तीय और गैर वित्तीय पहल की है, जिसमें विस्तृत वैक्सीनेशन प्रोग्राम भी शामिल है.
  2. कोविड-19 गुणात्मक रूप से अन्य 12 विशिष्ट आपदाओं से अलग है, क्योंकि यह लंबे समय तक चलने वाली महामारी है, जबकि दूसरी विशिष्ट आपदाएं एक बार वाली/अल्पावधि वाली आपदाएं हैं. इसलिए इसमें मुआवजे से जुड़े दिशानिर्देशों को अलग तरह से समझे जाने की जरूरत है.
  3. राज्यों में इतना “वित्तीय सामर्थ्य” यानी ताकत नहीं कि वे अनुग्रह राशि का भुगतान कर सकें.
  4. अनुग्रह राशि की सीमा तय करने की क्षमता राष्ट्रीय प्राधिकरण की है, और अदालत को इस मामले में “उसकी जगह खुद फैसला नहीं सुनाना चाहिए.”

सरकार की दलीलों में दम नहीं

सरकार की दो दलीलों में दम नहीं है. पहला, उसने कई वित्तीय और गैर वित्तीय कदम उठाए हैं. दूसरा राष्ट्रीय प्राधिकरण अपने काम में पक्की है.इसके अलावा कोविड-19 को दूसरी आपदाओं से अलग करने का तर्क अनोखा तो है, लेकिन कपट से भरा है. सूखा, वह शुरुआती प्राकृतिक आपदा, जिसके आधार पर आपदा प्रबंधन का पूरा ढांचा खड़ा है, कई बार एक साल से ज्यादा समय तक चला है. क्या वित्तीय सामर्थ्य न होना, एक सही दलील हो सकती है?

भारत में अब तक कोविड-19 से आधिकारिक रूप से 4 लाख के करीब मौतें हो चुकी हैं. इन 4 लाख लोगों के परिवारों को 4 लाख रुपए देने पर सरकार को 16,000 करोड़ रुपए खर्च करने होंगे. अगर हम यह मानें कि आने वाले समय में कोविड-19 की लहरें पलट कर आएंगी और मौतों का दर्ज न होने वाला/माना न जाने वाला आंकड़ा करीब 10 लाख होगा तो भी सरकार की मुआवजा राशि बढ़कर 40,000 करोड़ रुपए ही होगी. क्या यह राशि केंद्र और राज्य सरकारों के लिए इतनी ज्यादा है कि वे इसे खर्च ही नहीं कर सकतीं.  

क्या सरकारों के पास इतना पैसा है?

आठ साल की अवधि (2011-19) में आपदाओं पर राज्यों का कुल व्यय औसतन 21,000 करोड़ रुपए था. 2021-22 में जल जीवन मिशन सहित भारत का स्वास्थ्य और वेलनेस बजट 2,23,846 करोड़ रुपए है. इस बजट में सिर्फ वैक्सीनेशन के लिए 35,000 करोड़ रुपए का प्रावधान है. सरकार ने 2020-21 में एमएसपी पर 75,000 करोड़ रुपए मूल्य का सिर्फ गेहूं खरीदा है. मनरेगा का बजटीय प्रावधान 60,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का है. इस तरह 16,000 करोड़ रुपए खर्च करना कोई मुश्किल काम तो नहीं है.

2021-22 के बजट में राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया फंड (एनडीआरएफ) के लिए 6,100 करोड़ रुपए का बजटीय प्रावधान किया गया है और राज्य आपदा राहत फंड्स (एसडीआरएफ) की मदद के लिए 12,400 करोड़ रुपए दिए गए हैं. इसमें आपदा से संबंधित पूरा खर्चा शामिल है.  

इसलिए, बेशक, इस बजटीय प्रावधान से 16,000 करोड़ रुपए नहीं चुकाए जा सकते. ऐसे में आप अनुग्रह राशि कैसे देंगे?

यह खर्चा कैसे किया जाएगा

अगर अदालत आदेश देती है या सरकार इस सहायता राशि को चुकाने का फैसला करती है तो वह तीन तरीकों का इस्तेमाल कर सकती है.

  • सरकार जीएसटी और/या गुड्स पर एक और सेस लगा सकती है ताकि एनडीआरएफ के लिए जरूरी धनराशि जुटाई जा सके. यह एक मान्यता प्राप्त व्यवस्था है.
  • सरकार अगले अनुपूरक बजट में इस राहत के लिए अलग से बजटीय प्रावधान कर सकती है, जैसा कि उसने वैक्सीनेशन के लिए किया है.
  • केंद्र और राज्य सरकारें इस जिम्मेदारी को आपस में बांटने के लिए रजामंद हो सकती हैं और अन्य बजटीय व्यय से इस मद के लिए फिर से आबंटन कर सकती हैं जिससे जरूरी धनराशि जुटाई जा सके.

जैसा कि एफिडेविट में दावा किया गया है, सरकार के पास इस बात का कानूनी हक है कि वह कोविड-19 के लिए अनुग्रह राशि की विभिन्न सीमाओं को तय कर सकती है. इसके लिए उसे 2015 के दिशानिर्देशों में संशोधन करना होगा.

पैसा न होना, यह दलील गले नहीं उतरती. अच्छा होगा कि केंद्र सरकार कोविड-19 के कारण मौत का शिकार होने वाले हर व्यक्ति के लिए 4 लाख रुपए का मुआवजा घोषित करे. अदालत के आदेश का इंतजार किए बिना. जैसा कि उसने वैक्सीनेशन प्रोग्राम्स के लिए किया है.

(लेखक भारत के वित्त सचिव और विश्व बैंक में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर रह चुके हैं. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. )

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