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अंगद बने आबकारी विभाग के अफसरों को क्या हटा पाएंगे देवड़ाजी ?

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भोपाल। प्रदेश में दो साल बाद से तबादलों पर से प्रतिबंध हट रहा है, जिसकी वजह से अब सभी की निगाहें आबकारी विभाग के ऐसे कर्मचारियों और अधिकारियों पर लग गई हैं, जो राजधानी में अंगद के पैर की तरह जमे हुए हैं। यह वे अफसर व कर्मचारी हैं, जिन पर सामान्य प्रशासन विभाग का पदस्थापना संबंधी नियम भी लागू होता नहीं दिखता है। ऐसे में अब सवाल खड़ा हो रहा है कि विभागीय मंत्री जगदीश देवड़ा और प्रमुख सचिव दीपाली रस्तोगी इन अफसरों को हटा पाएंगी। भोपाल में पदस्थ यह आबकारी विभाग का अमला ऐसा है , जिसके बगैर विभाग का राजधानी में शायद कोई काम हो पाता हो। खास बात यह है कि भाजपा की सरकार हो या फिर कांग्रेस की कोई भी अब तक इन्हें हटाने की हिम्मत नहीं कर सका है। यह ऐसा अमला है जिसकी प्रशासन में भी धमक हमेशा बनी रहती है। इसकी वजह क्या है यह तो अफसर व सरकार ही जाने। इनकी खास बात यह है कि इनमें से अगर किसी का कभी धोखे से तबादला हो भी जाता है तो फिर उसकी कुछ दिनों बाद ही वापसी कर यहीं पदस्थ कर दिया जाता है। यही वजह है कि राजधानी के संभागीय से लेकर राज्य स्तर तक के उड़नदस्ता और अन्य विभागीय कार्यालय में करीब डेढ़ दर्जन अफसर व कर्मचारी ऐसे हैं जो सालों से अंगद के पैर की तरह जमे हुए हैं। खास बात यह है कि सरकार किसी की भी रही हो कोई भी इन्हें टस से मस करने की हिम्मत नहीं दिखा पाता है। इनमें कई कर्मचारी तो ऐसे हैं जो 15 सालों से अधिक समय से यहीं कुंडली मारे बैठे हैं।  विभागीय सूत्रों के मुताबिक राज्य स्तरीय उड़नदस्ता के कार्यालय में पदस्थ अन्य अफसरों के भी यही हाल हैं।
 इनमें एडीईओ सरस्वार, धर्मेन्द्र जोशी, जहांगीर खान और रमेश कुमार तक शामिल हैं। इसी तरह से अगर संभागीय मुख्यालय की बात की जाए तो यहां पर इसी तरह लंबे समय से पदस्थ अफसरों की भी सूची लंबी है। इनमें डीडी शुक्ला तो वर्ष 2004 से भोपाल में ही पदस्थ हैं। इनका बीच में रीवा तबादला हुआ भी, लेकिन वे कुछ ही दिनों में फिर भोपाल में पदस्थ कर दिए गए । इसी तरह से एक और नाम एनपी पांडे का है। वे भी करीब डेढ़ दशक से भोपाल में पदस्थ हैं। इसी तरह से अन्य अफसरों की बात की जाए तो भोपाल में पदस्थ सहायक जिला आबकारी अधिकारियों में प्रीति चौबे और ओम प्रकाश जामोद बीते दस सालों से, गोपाल यादव 9 साल से, शहनाज कुरैशी और होशियार सिंह छह-छह सालों से पदस्थ हैं, जबकि सरिता चंदेल पांच सालों से पदस्थ हैं। इसी तरह से अगर आबकारी उप निरीक्षकों की पदस्थापना देखी जाए तो भोपाल में वर्षा उइके 7 साल, बबीता भट्ट मिश्रा 8 साल से, संजय जैन , अतुल दुबे, अभिलाष पाठक और प्रतिभा परमार छह -छह सालों से पदस्थ हैं। इनके अलावा भी कई अफसर ऐसे हैं जो भोपाल में लंबे समय से पदस्थ हैं।
यही पदस्थ रहकर बन चुके हैं आरक्षक से एडीईओ तक  
राजधानी के आबकारी महकमे में कई ऐसे अफसर भी हैं, जो भर्ती तो आरक्षक तो कई उपनिरीक्षक के पद पर हुए थे, लेकिन बाद में पदोन्नत होते -होते अब सहायक जिला आबकारी अधिकारी बन चुके हैं, लेकिन मजाल है कि कोई भी सरकार और कोई भी आला अफसर इन्हें भोपाल से बाहर पदस्थ करने की हिम्मत दिखा पाया हो। इनका रसूख
ऐसा है कि अगर धोखे से इनमें से किसी का भी कहीं बाहर तबादला हुआ भी तो कुछ ही दिनों में उनकी वापस भोपाल में ही पदस्थापना करनी पड़ी है। खास बात यह है कि इनके नाम पर कोई उल्लेखनीय उपलब्धि भी नहीं है , फिर भी वे पदस्थापनाओं के मामले में विभाग के आंखों के तारे बने हुए हैं।  
सबसे जूनियरों को बनाया प्रभारी डीईओ
आबकारी विभाग में अफसरों की मनमर्जी किस तरह से चलती है इसका उदाहरण वे दो अफसर है, जो विभाग में सबसे जूनियर होने के बाद भी जिलों के प्रभारी आबकारी अधिकारी बना दिए गए हैं। इनमें एडीईओ जितेन्द्र गुर्जर इन दिनों सिवनी और बद्रीलाल दांगी आगर मालवा में बतौर प्रभारी जिला आबकारी अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। नियमानुसार इस तरह का प्रभार देने के मामले में सामान्य प्रशासन विभाग का नियम वरिष्ठता का है। अन्य विभागों में जब भी किसी अफसर को अपने से वरिष्ठ पद का प्रभार दिया जाता है , तो पूरी तरह से वरिष्ठता का ध्यान रखा जाता है, लेकिन आबकारी विभाग ऐसा अजूबा विभाग बन चुका है, जहां पर नियम कानून कोई मायने नहीं रखता है।
तीन साल में है नई पदस्थापना का नियम
सामान्य प्रशासन विभाग के नियमानुसार किसी भी कर्मचारी को एक ही स्थान पर तीन साल से अधिक होने पर उसकी नई पदस्थापना किए जाने का नियम है। यही नहीं चुनाव के समय तो हर हाल में तीन साल से एक ही स्थान पर पदस्थ अफसरों की नई पदस्थापना की जाती है, लेकिन आबकारी महकमा ऐसा है, जहां पर इस तरह के नियमों का कोई पालन नहीं किया जाता है।

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