अगले साल भाजपा के ओम प्रकाश माथुर, राजकुमार वर्मा, हर्षवर्धन डूंगरपुर तथा जेके अल्फोंस का कार्यकाल पूरा हो रहा है।
मंत्रिमंडल का फेरबदल है या विधायक दल के नेता का चुनाव?
एसपी मित्तल अजमेर
अखबारों और प्रादेशिक न्यूज चैनलों पर पिछले तीन दिन से ढिंढोरा पीटा जा रहा है कि राजस्थान में अशोक गहलोत मंत्रिमंडल में फेरबदल होगा। असंतुष्ट नेता सचिन पायलट और संतुष्ट गुट के नेता अशोक गहलोत के समर्थक वाले विधायकों के फोटो भी छापे जा रहे हैं। लेकिन जो लोग अशोक गहलोत की कार्यशैली से वाकिफ है उन्हें पता है कि गहलोत राज में जो दिखता है, वह होता नहीं है। भले ही दिसम्बर 2023 के चुनाव में कांग्रेस की स्थिति 2013 वाली हो जाए, लेकिन अभी तो प्रदेश के विधायकों पर गहलोत की मजबूत पकड़ है। 198 में से 120 विधायक गहलोत की मुटृठी में हैं। और ये विधायक ही अगले जुलाई में होने वाले राज्यसभा की चार में से तीन सीटें कांग्रेस को दिलवाएंगे। अगले वर्ष भाजपा के सांसद ओम प्रकाश माथुर, राजकुमार वर्मा, हर्षवर्धन सिंह डूंगरपुर तथा जेके अल्फोंस का कार्यकाल पूरा हो रहा है।
गहलोत ने गांधी परिवार को भरोसा दिलाया है कि चार में तीन सीटों पर कांग्रेस को जीत दिलवा दी जाएगी। राज्यसभा के लिए कांग्रेस से जो तीन सांसद बनेंगे, उनमें राजस्थान के विधायकों की रायशुमारी करने वाले प्रदेश प्रभारी अजय माकन का नाम भी शामिल हैं। अशोक गहलोत के नेतृत्व में जब प्रदेश में कांग्रेस सरकार बहुत आसानी से चल रही है तथा चार में तीन राज्यसभा के सांसद चुना जाना तय है तो राजनीतिक समीकरणों को क्यों बिगाड़ा जाएगा?
जो 120 विधायक गहलोत की मुटृठी में हैं उनमें कोई नहीं कह रहा कि मंत्रिमंडल का विस्तार या फेरबदल हो। गहलोत की कार्यशैली को जानने वाले जानते हैं कि इस फेरबदल की खबरें गहलोत गुट की ओर से प्लांट करवाई जा रही है। कहा जा रहा है कि प्रदेश प्रभारी अजय माकन 28 व 29 जुलाई को जयपुर आकर कांग्रेस के एक एक विधायक से मिलेंगे और उनकी राय जानेंगे। सवाल उठता है कि मंत्रिमंडल का फेरबदल हो रहा है या विधायक दल के नेता का चुनाव? विधायकों की राय तो नेता के चुनाव के समय जानी जाती है। गहलोत के मुख्यमंत्री रहते क्या कांग्रेस के किसी नेता की हिम्मत है जो विधायकों की राय जाने और सीधे गांधी परिवार को अपनी रिपोर्ट दे? दिखावे के लिए अजय माकन भले ही रायशुमारी कर लें, लेकिन होगा वही जो अशोक गहलोत चाहेंगे। सब जानते हैं कि अगस्त के पहले सप्ताह में ही विधानसभा का मानसून सत्र शुरू हो जाएगा। क्या मानसून सत्र से पहले अजय माकन की रिपोर्ट पर गांधी परिवार का निर्णय हो जाएगा? अभी तो बहुत सारे पेच हैं, जिनका समाधान होना जरूरी है। जहां तक सचिन पायलट का सवाल है तो उन्होंने इस बार धैर्य अपना रखा है। पायलट इस बार गहलोत की किसी भी चाल में फंसने वाले नहीं है।
देखा जाए तो पायलट ने अपनी राजनीतिक लड़ाई अब गांधी परिवार और अशोक गहलोत के बीच करवा दी है। पायलट अब नवम्बर-दिसम्बर 2023 का इंतजार कर रहे हैं। यह सही है कि गत वर्ष कांग्रेस के जो 18 विधायक दिल्ली गए थे, वो अभी पायलट के साथ बने हुए हैं, लेकिन पायलट को उम्मीद है कि मंत्रिमंडल के फेरबदल के बाद कुछ नाराज विधायक उनके साथ आएंगे। कहा जा रहा है कि फेरबदल में सचिन पायलट के समर्थक विधायकों को भी मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा, लेकिन अभी तक भी गहलोत और पायलट में सीधा संवाद नहीं हुआ है। जो अशोक गहलोत सचिन पायलट से बात करना पसंद नहीं करते, वे पायलट के कितने समर्थकों को मंत्री बनाएंगे, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है? गांधी परिवार भी नहीं चाहेगा कि फेरबदल की वजह से राज्यसभा के चुनाव पर कोई प्रतिकूल असर पड़े। जहां तक बसपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों का सवाल है तो कांग्रेस के पक्ष में वोट देना अब उनकी मजबूरी है। यदि राज्यसभा के चुनाव में कांग्रेस को वोट नहीं देंगे तो विधायिकी चली जाएगी। लेकिन यह कानून 13 निर्दलीय विधायकों पर लागू नहीं है। बसपा वाले विधायकों की तरह पायलट वाले 18 विधायकों को भी कांग्रेस के पक्ष में वोट देने की मजबूरी है। जानकारों की मानें तो निकट भविष्य में मंत्रिमंडल का विस्तार संभव नहीं है। यदि फेरबदल नहीं होता है तो भी सचिन पायलट की स्थिति मजबूत रहेगी। क्योंकि पायलट का लक्ष्य अब 2023 का चुनाव है।