अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

हे भगवान हमें सद्बुद्धि दो

Share

शशिकांत गुप्ते

एक कटुसत्य यह है कि,प्राणी मात्र में सिर्फ मानव जैसा स्वार्थी प्राणी अन्य कोई नहीं है।स्वार्थ तो मनुष्य के मानस में प्राकृतिक रूप से रचा बसा है।
मानव मानस में जो स्वाभाविक रूप से विद्यमान है,इसे गुण कहे या अवगुण यह हमारी सोच पर निर्भर है।
जो भी हो विषमतम परिस्थितियों में मानव,प्रभु का ही स्मरण करता है।यही स्मरण मानव के स्वार्थ को इंगित करता है।वास्तविकता में तो प्रभु का स्मरण श्रद्धा से होना चाहिए।
इस सोच पर संत कबीरसाहब के इस दोहे का स्वाभाविक ही स्मरण होता है।
दुःख में सुमिरन सब करें
सुख में करें न कोई
जो सुख में सुमिरन करें
दुःख काहे को होय

जो भी हो वर्तमान सामाजिक,राजनैतिक,और आर्थिक विषमताओं के मद्देनजर निम्न गीत का स्वाभाविक रूप से स्मरण होता है।
यह गीत सन 1957 में प्रदर्शित फ़िल्म दो आँखे बारह हाथ का है।इसे प्रख्यात गीतकार भरत व्यास ने लिखा है।
गीत के इस बंद का स्मरण होता है।
जब जुल्मों का हो सामना
तब तू ही हमें थामना
वो बुराई करें
हम भलाई भरें
नहीं बदले की हो कामना
बढ़ उठे प्यार का हर कदम
और मिटे बैर का ये भरम

इनदिनों यह पंक्ति बार बार दोहराने का मन करता है। नहीं बदले की हो कामना
और ये पंक्ति और मिटे बैर का ये भरम
पिछले आठ वर्षों से तो हम जुल्मों को सही मायने में परिभाषित नहीं कर पा रहें हैं,और जुमलों को हम आदर के साथ सुन रहें हैं।
इनदिनों जो भी गीत भजन के रूप में लिखें गएं हैं, वे सभी गुनगुनाने का मन करता है।
गीतकार प्रदीप का लिखा यह भजन रूपी गीत भी गुनगुनाने का मन करता है।
दुसरें का दुःखडा दूर करने वाले
तेरे दुःख दूर करेंगे रे राम
किएजा जग में तू भलाई के काम

यह पंक्तियां गुनगुनाते हुए मन भावविभोर हो जाता है।इनदिनों राम भगवान के नाम पर कितने भलाई के काम हो रहें हैं?
समाचार पढ़ सुन कर बहुत प्रसन्नता होती है।सच में हम कितने धार्मिक होतें जा रहें हैं।
राम भगवान का नाम हम खुद भी ले रहें हैं और दूसरों से बुलावा रहें हैं।यह हमारी दिन-ब-दिन रामजी के प्रति बढ़ती श्रद्धा का प्रतीक है।
हमारी धार्मिक आस्था इतनी चरम पर पहुँच गई है।हम धार्मिक त्योहार मनाने के लिए सड़क पर आंदोलन करने लगे है।मंदिर खोलने के लिए आंदोलन कर सरकार पर दबाव बना रहें हैं।
सच में ऐसे धार्मिक लोगों का सम्मान करना चाहिए।
इन्ही विचारों के तारतम्य में
प्रेरणादायी स्कूल की प्रार्थना का स्मरण होता है। यह प्रार्थना महाकवि पंडित रामनरेश त्रिपाठी के काव्य साहित्य की देन है।

हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिये,
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए ।
लीजिये हमको शरण में, हम सदाचारी बनें,
ब्रह्मचारी धर्म-रक्षक वीर व्रत धारी बने
निंदा किसी की हम किसी से भूल कर भी न करें,

ईर्ष्या कभी भी हम किसी से भूल कर भी न करें ।
सत्य बोलें, झूठ त्यागें, मेल आपस में करें,
दिव्या जीवन हो हमारा, यश तेरा गाया करें
कीजिए हम पर कृपा ऐसी हे परमात्मा,
मोह मद मत्सर रहित होवे हमारी आत्मा
प्रेम से हम गुरु जनों की नित्य ही सेवा करें,
प्रेम से हम संस्कृति की नित्य ही सेवा करें
प्रार्थना की कुछ पंक्तियां प्रेषित की है।
हम इनदिनों अपनी संस्कृति की कितनी सेवा कर रहें हैं।यह सामाचारों से मालूम पड़ रहा है।
अंत में यह लिखा जा सकता है।
अधर्म का नाश हो
धर्म की जय हो

एक स्पष्टीकरण देना अनिवार्य है।लेखक विधा व्यंग्य की है,लेकिन उपर्युक्त लेख वैचारिक लेख है व्यंग्यात्मक नहीं है।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें