अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

गणेश उत्सव विशेष….गणेश उत्सव सांस्कृतिक गतिविधियों से विमुख होकर फूहड़ता में तब्दील हो गया

Share

शशिकांत गुप्ते

लोकमान्य तिलकजी ने सन 1893 को सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत की।सन 1893 में अर्थात तात्कालिक समय में भी अति धार्मिक लोगों ने तिलकजी का यह कहकर विरोध किया कि,हमारे आराध्य भगवान श्री गणेशजी को आप (तिलकजी) चौराहे विराजित किया? तिलकजी ने जवाब दिया कि, यह सार्वजनिक उत्सव ही है।कुछ अति धार्मिक लोगों के कारण बहुत से लोग मंदिर में प्रवेश नहीं कर पातें हैं,मंदिर प्रवेध करने से वंचित लोग भी चौराहे पर स्थापित गणेशजी के दर्शन कर पाएंगे।
गणेश उत्सव प्रारम्भ करने के पीछे तिलकजी का मुख्य उद्देश्य था। सांस्कृतिक कार्यक्रमो के माध्यम से आमजन में जागृति पैदा करना।सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अंतर्गत नाटक,गीत,नृत्य व्याख्यान आदि गतिविधिया संचालित कर लोगों में देशभक्ति पैदा करना।

Karnataka Lockdown: Bengaluru Issues Fresh Guidelines For Ganesh Chaturthi,  Restricts Festivities to 3 Days | Full List of Guidelines Here


गणेश उत्सव को प्रारम्भ हुए सव्वा सौ वर्ष से अधिक हो गएं हैं।वर्तमान में गणेश उत्सव सांस्कृतिक गतिविधियों से विमुख होकर फूहड़ता में तब्दील हो गया है।
गणेश जी स्थापना हर नगर हर शहर और गांव के हर चौराहे पर हो रही है।गणेशजी की मूर्ति स्थापित कर लाउडस्पीकर से कर्कश आवाज में फूहड़ फिल्मी गीत सुनाई देतें हैं।
संस्कृति जनजागरण का एक मोर्चा है।जब संस्कृति ही संस्कारहीन हो जाएगी,तब हम देश की भावीपीढ़ी से क्या उम्मीद करेंगे?
यह यथास्थितिवादियों का एक सुनियोजित षड़यंत्र है।यथास्थितिवादी हरक्षेत्र में सिर्फ सुधार के पक्षधर होतें हैं।जिनके पास व्यापक दृष्टिकोण होता है और जो लोग प्रगतिशील होतें हैं, वे लोग हमेशा परिवर्तन के लिए संघर्ष करतें हैं।
महात्मा गांधीजी से समाज के कल्याण के लिए सुधारवादी तरीके का विरोध करते हुए, परिवर्तनकारी तरीका अपनाया था।
सुधारवादी तरीक़े का खामियाजा आज हम प्रत्यक्ष भुगत रहें है।सड़को के नवीनीकरण के नाम पर सड़कों को सिर्फ सुधारा जा रहा है।नतीजा, कुछ ही वर्षों में हम सड़क पर हिचकोले खाते हुए चलने पर मजबूर हो जातें हैं।कुछ ही समय में हमें सड़क की दुर्दशा दिखाई देने लगती है।
यथास्थितिवादियों ने लोगों को भ्रम का चश्मा पहना दिया है।
भ्रम आर्थत Illusion को समझने के लिए मृगतृष्णा का उदाहरण सटीक है।
मृगतृष्णा को तकनीकी की दृष्टि से समझना जरूरी।गुगलबाबा ने इस प्रकार समझाया है।
मृगतृष्णा एक प्रकार का वायुमंडलीय दृष्टिभ्रम है,जिसमें प्रेक्षक अस्तित्वहीन जलाश्य एवं दूरस्थ वस्तु के उल्टे या बड़े आकार के प्रतिबिंब तथा अन्य अनेक प्रकार के विरूपण देखता है।वस्तु और प्रेक्षक के बीच की दूरी कम होने पर प्रेक्षक का भ्रम दूर होता है।
साधारण भाषा में समझने के लिए मृगतृष्णा मतलब आँखों का भ्रम है,जो चीज वास्तव में न होकर भी दिखाई दे इस तरह की भ्रम की स्थिति को मृगतृष्णा कहतें हैं।
इसी से मिलता जुलता मुहवार है। ढोल की पोल इस मुहावरे का तो वर्तमान में हम प्रत्यक्ष अनुभव ले रहें हैं। दावों के साथ प्रचार माध्यम के द्वारा ढोल पीट पीट कर वादें किए गए और चुनाव बाद तमाम वादें जुमलों में परिवर्तित हो गए?
इसीतरह के जुमलों के भ्रम से सतर्क करने के लिए तिलकजी ने सार्वजिनक गणेश उत्सव की स्थापना की है।सांकृतिक गतिविधियों के माध्यम से लोगों में जागृति आए।जागृत मानव यथास्थितिवादियों के भ्रम में नहीं आता है।
यथास्थितिवादी मतलब जैसा है वैसा ही यथास्थिति में रहने दो उसमें परिवर्तन मत करों।
लोकमान्य तिलकजी ने सार्वजनिक गणेश उत्सव की स्थापना कर समाज में बहुत बड़ा परिवर्तन किया।सार्वजनिक के मतलब ही बगैर किसी भेदभाव के।मानव मानव एक समान।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें