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*राष्ट्रनायक का पुण्य स्मरण

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शशिकांत गुप्ते

11 ऑक्टोबर को जयप्रकाश नारायणजी की जयंती है।जयप्रकाश नारायणजी को दूसरी आजादी का मसीहा कहा है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जनांदोलनों के इतिहास में जयप्रकाशजी में ही राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व क्षमता थी।
1977 के सत्ता परिवर्तन के बाद जयप्रकाशजी ने सम्पूर्णक्रान्ति का आव्हान किया था।
स्वतंत्रता सैनानी जयप्रकाशजी से फिरंगी भी डरते थे।सन 1942 में जब अंग्रेजो ने जयप्रकाशजी गिरफ्तार किया तब फ्रीप्रेस जरनल समाचार पत्र की हेडलाईन थी कांग्रेस ब्रेन अरेस्टेड( Congress brain arrested)
जयप्रकाशजी की क्षमताओं को देख राष्ट्र कवि स्व.रामधारीसिंह दिनकरजी ने सन 1946 में जयप्रकाशजी पर लिखी कविता की कुछ पक्तियां प्रस्तुत है।
माता ने पाया तुम्हें यथा, मणि पाये बड़भागिन कोई।
लौटे तुम रूपक बन स्वदेश की, आग भरी कुरबानी का,
अब “जयप्रकाश” है नाम देश की, आतुर, हठी जवानी का।
नवजवानों के प्रेरणा स्रोत जयप्रकाशजी पर लिखी दिनकर जी कविता की निम्न पंक्तियां सन 1974 के आदोंलन के दौरान गाई जाती थी
आरती लिए तू किसे ढूंढ़ता है मूरख
मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।
फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है
आज यही स्थिति बन हुई है।
लोकतंत्र की बुनियाद असहमति को दबाने की असफल चेष्ठा की जा रही है।
गांधीजी के आदर्शों को आत्म साथ कर युवाओं में जोश भरने वाले जयप्रकाशजी के नेतृत्व में दूसरी आजादी के आंदोलन के दौरान दो नारे प्रमुखता से लगाए जाते थे।
सच कहना अगर बगावत है
तो समझों हम भी बागी है
हमला चाहे जैसा होगा
हाथ हमारा नहीं उठेगा
आज की सत्ता केंद्रित राजनीति के लिए पुनः जयप्रकाशजी की जरूरत है।
क्रांति हमेशा विचारों से ही होती है।
जनांदोलनों में सक्रियता निभाने वालों के लिए राष्ट्र नायक जयप्रकाशजी के आदर्श ही मार्गदर्शक बनेंगे।
इस अकाट्य सत्य को कोई झुठला नहीं सकता है।
भारत के लोकतंत्र को और धर्मनिरपेक्षता को कोई भी कमजोर नहीं कर सकता है।
राष्ट्रनायक की 8 ऑक्टोबर को पुण्यतिथि और 11 ऑक्टोबर को जयंती है।
हम राष्ट्रनायक जयप्रकाशजी की सदर नमन करतें हैं।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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