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गुरुओं के गुरु गुरु नानक देव

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मुनेश त्यागी

आज सिखों के पहले गुरु नानक देव जी का 550 वां दिवस मनाया जा रहा है। उनका जन्म कार्तिक पूर्णिमा को हुआ था इसलिए इसे प्रकाश वर्ष भी कहते हैं। गुरु नानक देव जी सिखों के पहले गुरु थे। उन्होंने सभी धर्मों के तीर्थों की यात्राएं की थी और सभी धर्मों की अच्छाइयों को अपनाया और धार्मिक पाखंडों को छोड़ दिया ।
उन्होंने समाज में ऊंच-नीच और भेदभाव की आलोचना की और दोनों के दकियानूसी विचारों को छोड़ दिया। दोनों धर्मों में व्याप्त समानता एवं मानवता को अपनाया। गुरु नानक ने हिंदू धर्म के पुनर्जन्म और कर्म के सिद्धांत को अपनाया और इस्लाम के इस्लाम के एकेश्वरवाद और सामूहिक पूजा को अपनाया।
गुरु नानक हजरत मोहम्मद की भूमि मक्का गए, महात्मा बुध्द की भूमि के दर्शन करने गए, अयोध्या गए, हरिद्वार गए, गीता की स्थली कुरुक्षेत्र गए। उन्होंने सभी धर्मों को बारीकी से देखा। वह मुस्लिम सूफियों से भी मिले।

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गुरु नानक की शिक्षाओं को कायम रखते हुए गुरु अर्जुन देव ने बिना किसी भेदभाव के हिंदू और मुसलमान संतों की वाणी को “गुरु ग्रंथ साहब” में स्थान दिया। इसमें शेख फरीद और कबीर आदि के पद संकलित हैं। गुरु ग्रंथ साहब में कुल 35 कविताओं की रचनाएं संकलित हैं जिनमें 10 गुरुओं की, 10 उनके शिष्यों की तथा 15 अन्य संतों की वाणी संकलित है इसमें रविदास की वाणी भी शामिल है।
बिल्कुल स्पष्ट है कि गुरुओं के मन में मुसलमानों या हिंदुओं के प्रति किसी प्रकार की नफरत नहीं थी। वह एक दूसरे को कितना आदर करते थे इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव ने सिखों के सबसे बड़े गुरुद्वारे अमृतसर में स्वर्ण मंदिर की नींव रखने के लिए मुस्लिम सूफी “मियां मीर” को बुलाया था यानी कि स्वर्ण मंदिर की नींव सूफी मियां मीर ने रखी थी।
ध्यान देने की बात है कि सभी गुरुओं के मुसलमानों से अच्छे संबंध रहे। गुरु ग्रंथ साहब में संकलित रचनाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि मध्यकाल में हिंदू और मुसलमान एक दूसरे के निकट आ रहे थे और उसका परिणाम यह निकला कि कुछ नए धर्म और संप्रदाय शुरू हो गए जिनमें कि दोनों धर्मों की परंपराओं रिवाजों को जोड़कर दोनों धर्म के दर्शन को समन्वित करके नई संस्कृति उभर रही थी। असल में यह साझा संस्कृति के नमूने थे यह नई संस्कृति का मिलाजुला प्रभाव था।
सिख धर्म में यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। सिख धर्म में मंदिर और मस्जिद दोनों को छोड़कर गुरुद्वारे बनाए गए। इनके नक्शों में मिली-जुली संस्कृति देखी जा सकती है। गुरुद्वारे में गुंबद का प्रयोग एक तरह से मस्जिद का प्रभाव है तो शिवाले लगाना मंदिर का प्रभाव है।
सिख धर्म में सिर पर कपड़ा रख कर पूजा करने की परंपरा भी इस्लाम की पूजा पद्धति का प्रभाव कहा जा सकता है। गुरुद्वारे में मत्था टेकने की परंपरा में मुस्लिम पूजा का ही असर है और प्रसाद बांटना हिंदू परंपरा का असर है। इस तरह दोनों धर्मों के मिश्रण से ही इस तीसरे धर्म की नहीं पड़ी।इसने दोनों धर्मों की कठोरता और कट्टरता को छोड़ दिया और उदारता अख्तियार की।
गुरु नानक का मानना था की कण-कण में ईश्वर है जो कि भारतीय प्रभाव है, दूसरी ओर एकेश्वरवाद को अपनाया गया जो इस्लाम का प्रभाव है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि मध्यकाल में हिंदू और मुसलमान एक दूसरे के करीब आ रहे थे। एक दूसरे की भावना और विश्वासों का आदर करते थे जिसका परिणाम यह था कि समाज में नई नई परंपरा शुरू हो रही थी और विचारों में बदलाव आ रहे थे, इस मिलन से दोनों धर्मों की कठोरता दूर हो रही थी और एक उदार समाज बन रहा था।
गुरु ग्रंथ साहब को इसी पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए।यह साझी संस्कृति का जीता जागता नमूना है और इसकी जड़ में और इसका सबसे बड़ा श्रेय सिखों के सबसे पहले गुरु गुरु नानक को जाता है। गुरु नानक कि यह हमारे समाज को सबसे बड़ी देन है।

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