26 नवम्बर संविधान दिवस
पर गडकरी रंगायतन,ठाणे में सुबह 11.30 बजे मंचित होगा नाटक ‘सम्राट अशोक’ !
थिएटर ऑफ रेलेवंस शुभचिंतक एवं प्रयोगकर्ता
प्रस्तुत
नाटक ” सम्राट अशोक “
नाटककार – धनंजय कुमार
निर्देशक – मंजुल भारद्वाज
कलाकार – मंजुल भारद्वाज, अश्विनी नांदेडकर
सायली पावसकर, कोमल खामकर, सुरेखा सालुंखे .
दिनांक – 26 नवंबर, 2021, सुबह 11.30 बजे
स्थल – गडकरी रंगायतन,ठाणे
नाटक ‘सम्राट अशोक’
सम्राट के आदमी होने और फिर आदर्श राजा बनने की कहानी है. अशोक पहला राजा था, जिसने धर्म को शासन पर हावी नहीं होने दिया. और सभी धर्मों
के प्रति समभाव रखते हुए धर्मनिरपेक्ष
शासन का उदाहरण दुनिया के सामने रखा ! भारतीय संविधान के मूल तत्वों को बचाने का
संकल्प है नाटक ‘सम्राट अशोक’।
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भारतीय संविधान के मूल तत्वों
को बचाने का संकल्प है धनंजय कुमार का शाहकार नाटक ‘सम्राट अशोक’ –मंजुल भारद्वाज
26 जनवरी, 1950 में संविधान को अपनाकर भारत एक
सार्वभौम राष्ट्र के रूप में अवतरित हुआ. विश्व ने भारत के इक़बाल को सलाम किया.
भारत में पहली बार जनता को देश का मालिक होने का संवैधानिक अधिकार मिला. संविधान
का मतलब है सम+विधान यानी सबको समानता का अधिकार मिला. संविधान में सबको बराबरी का
अधिकार देकर भारत मनुस्मृति के अभिशाप से प्रशासनिक रूप से मुक्त हुआ. संविधान की
बुनियाद पर वर्णभेद के दमन,शोषण,अन्याय,हिंसा की क्रूरता से मुक्ति और
मानव अधिकार के नए युग में भारत ने प्रवेश किया !
सरकार ने समाज की विभिन्न
विषमताओं से डटकर लोहा लिया और एक ‘मानवीय और सहिष्णु’ समाज के निर्माण में कार्य
किया. विकारी संघ के धर्म आधारित विध्वंसक षड्यंत्र को पनपने से रोका और गांधी
हत्या के बाद उसको कई दशकों तक सर्वधर्म समभाव की राजनैतिक ज़मीन में दफ़न रखा! भारत
के संविधान निर्माताओं ने अशोक स्तम्भ को अपने शासन की ‘राजमुद्रा’ बनाया. अशोक की
‘सर्वधर्म समभाव’ नीति को भारत के संविधान की आत्मा के रूप में स्वीकारा और किसी
भी धर्म के बहुलतावाद को ख़ारिज किया.
भारत के मूल तत्व ‘जन कल्याण और
धर्मनिरपेक्षता’ सम्राट अशोक की नीतियों से लिए गए तत्व हैं.यही सम्राट अशोक की
भारत को दी गई विरासत है जिसकी बुनियाद पर खड़ा है आज का स्वतंत्र भारत !
1990 के भूमंडलीकरण के विध्वंसक दौर ने दुनिया को तो बर्बाद किया
ही साथ में भारतीय संविधान के मूल तत्वों को भी ललकारा. भारत में आर्थिक सम्पन्नता
से पैदा हुए नए मध्यमवर्ग ने लालच के घोड़े पर सवार हो विकारी संघ के विकास के
झांसे में आकर उसे देश की सत्ता पर बिठा दिया. विकारी संघ आज संख्याबल के आधार पर
भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनाने के लिए आस्था की चिता में संविधान को जला रहा है.
विकारी संघ ‘मनुस्मृति’ को मूल प्रशासन ग्रन्थ बनाना चाहता है. वर्णवाद को
पुनःजीवित कर रहा है. धार्मिक कट्टरवाद,जातिवाद और हिंसा आज चरम है. सरकार अपने अहंकार से जनता के अधिकारों को कूचलकर
लोकतंत्र को कलंकित कर रही है !
किसी भी कीमत पर चुनाव जितना
बड़े नेता होने का प्रमाण पत्र हो गया है. ऐसे चुनौतीपूर्ण काल में नाटककार धनंजय
कुमार ने विकारवाद से लोहा लेने के लिए इतिहास के पन्नों से सम्राट अशोक को निकाल
हमारे सामने नाटक के रूप में जीवित कर दिया. नाटक ‘सम्राट अशोक’ कलिंग विजय के बाद
अशोक में हुए आमूल परिवर्तन की गाथा है. हिंसक अशोक के अहिंसक होने की यात्रा है.
लिप्साग्रस्त,एकाधिकारवादी अशोक के
प्रजातांत्रिक मूल्यों को अपनाने का नाद है. ‘प्रजा-कल्याण शासन का मूल आधार हो’ का उदघोष है.
26 नवम्बर संविधान दिवस पर गडकरी रंगायतन,ठाणे में सुबह 11.30 बजे मंचित होगा नाटक ‘सम्राट अशोक’ ! मंजुल भारद्वाज अभिनीत और निर्देशित
धनंजय कुमार के शाहकार को अपने अभिनय से मंच पर साकार कर रहे हैं अश्विनी नांदेडकर,सयाली पावसकर,कोमल खामकर,सुरेखा सालुंखे और अन्य कलाकार !
विगत 29 वर्षों से ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य सिद्धांत सतत सरकारी, गैर सरकारी, कॉर्पोरेटफंडिंग या किसी भी देशी विदेशी अनुदान के बिना अपनी प्रासंगिकता,अपने मूल्य और कलात्मकता के संवाद – स्पंदन से ‘इंसानियत की
पुकार करता हुआ जन मंच’ का वैश्विक स्वरूप ले चुका है.सांस्कृतिक चेतना का अलख
जगाते हुए मुंबई से लेकर मणिपुर तक,सरकार के 300 से 1000 करोड़ के अनुमानित संस्कृति संवर्धन बजट के बरक्स ‘दर्शक’
सहभागिता पर खड़ा है “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” रंग आन्दोलन!
“थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” ने जीवन को नाटक से जोड़कर विगत 29 वर्षों से साम्प्रदायिकता पर ‘दूर से किसी ने आवाज़ दी’,बाल मजदूरी पर ‘मेरा बचपन’,घरेलु हिंसा पर ‘द्वंद्व’, अपने अस्तित्व को खोजती हुई आधी
आबादी की आवाज़ ‘मैं औरत हूँ’ ,‘लिंग चयन’ के विषय पर ‘लाडली’ ,जैविक और भौगोलिक विविधता पर “बी-७” ,मानवता और प्रकृति के नैसर्गिक संसाधनो के निजीकरण के खिलाफ
“ड्राप बाय ड्राप :वाटर”,मनुष्य को मनुष्य बनाये रखने के
लिए “गर्भ” ,किसानो की आत्महत्या और खेती के
विनाश पर ‘किसानो का संघर्ष’ , कलाकारों को कठपुतली बनाने वाले
इस आर्थिक तंत्र से कलाकारों की मुक्ति के लिए “अनहद नाद-अन हर्ड साउंड्स ऑफ़
युनिवर्स” , शोषण और दमनकारी पितृसत्ता के
खिलाफ़ न्याय, समता और समानता की हुंकार “न्याय
के भंवर में भंवरी” , समाज में राजनैतिक चेतना जगाने
के लिए ‘राजगति’ और समता का यलगार ‘लोक-शास्त्र सावित्री’ नाटक के माध्यम से फासीवादी ताकतों से जूझ रहा है!
कला हमेशा परिवर्तन को उत्प्रेरित करती है. क्योंकि कला मनुष्य को मनुष्य बनाती है. जब भी विकार मनुष्य
की आत्महीनता में पैठने लगता है उसके अंदर समाहित कला भाव उसे चेताता है … थिएटर
ऑफ़ रेलेवंस नाट्य सिद्धांत अपने रंग आन्दोलन से विगत 29 वर्षों से देश और दुनिया में पूरी कलात्मक प्रतिबद्धता से
इस सचेतन कलात्मक कर्म का निर्वहन कर रहा है. गांधी के विवेक की राजनैतिक मिटटी
में विचार का पौधा लगाते हुए थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के प्रतिबद्ध कलाकार समाज की फ्रोजन
स्टेट को तोड़ते हुए सांस्कृतिक चेतना जगा रहे हैं.
आज इस प्रलयकाल में थिएटर ऑफ़
रेलेवंस ‘सांस्कृतिक सृजनकार’ गढ़ने का बीड़ा उठा रहा है! सत्य-असत्य के भान से परे
निरंतर झूठ परोसकर देश की सत्ता और समाज के मानस पर कब्ज़ा करने वाले विकारी परिवार
से केवल सांस्कृतिक सृजनकार मुक्ति दिला सकते हैं. थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के सांस्कृतिक
सृजनकार भारतीय संविधान के मूल तत्वों को बचाने का संकल्प लिए प्रस्तुत कर रहे हैं
धनंजय कुमार का शाहकार नाटक ‘सम्राट अशोक’ !